.................एक हाल में बहुत सारे खिडकी-दरवाजों को अंदर से बार-बार बंद करने का प्रयास करतीं फिल्म की नायिका हेमामालिनी . और उन्हें सौम्यता के साथ छेड़ते और इस कालजयी गीत को गुनगुनाते देव आनंद..........
यूं तो ये फिल्म मेरे जीवन में पहली फिल्म न थी. परन्तु इस फिल्म के सारे किरदार और उसका कथानक आज भी स्मृति-पटल पर पुख्ता तरीके से अंकित है. याद पड़ता है इस फिल्म को मैंने आज तक लगभग पचास बार तो देखा ही होगा. उस समय बड़े भाई से सुना करता था की कैसे देव साहब को लाल और काले कपडे पहनने से सरकार ने रोक रखा था. पता नहीं सच था या फैंटेसी... पर बाल-मन में एक अजीब सा आकर्षण और जिज्ञासा इस चितेरे के प्रति उपजा. टेलीविजन में मात्र दूरदर्शन में रविवार को फ़िल्म आती थी. सप्ताह भर का इंतज़ार.... फिर कुछ समय बाद फिल्म शनिवार को भी आने लगी.... चित्रहार और रंगोली भी इसी तरह से लोकप्रिय और इंतज़ार का केंद्र बनते गए. ये सब देखने के लिए अम्मा से मनुहार और बड़े भाई से बाग़ी तेवर दिखाकर लगभग विद्रोही तेवर अपनाना पड़ता था. खासकर तब जब फिल्म के नायक देव आनंद हों.....
मेरे साथ उनकी भी उम्र बढ़ी. साथ ही उनका फिल्मी जगत का स्वर्णिम काल भी बीत गया.पर वो मेरे जीवन के हीरो है और रहेंगे. परदे पर वो शातिर दिमाग और सौम्य प्रस्तुति वाले नायक थे.संवादों की अदायगी की रूमानियत ऎसी की हर जवाँ लड़की का दिल फ़िदा हो जाए. वो फिल्म इंडस्ट्री में उस समय हुए जब अशोक कुमार, दिलीप कुमार, राज कुमार, राज कपूर और शम्मी कपूर जैसे दिग्गजों का वर्चस्व था. इनके हिसाब से कहानी और संगीत तक सब कुछ नियत होता था. परन्तु देव साहब ने किशोर कुमार की आवाज में ढेरों गानों पर अभिनय कर लोकप्रियता का चरम हासिल किया. फ़िल्में भी ऎसी-ऎसी कीं, जो उन्हें किसी खास परम्परा में नहीं बाँध सकती हों. उन्होंने सस्पेंस, थ्रिल, हास्य,रोमांस,ग्रे और आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत सभी प्रकार के रोल अदा किये ...
परन्तु याद है भगवान दादा नाम से एक फिल्म उन्होंने तब बनायी थी जब मैं कालेज के जमाने में था. उसके बाद उनकी तमामों फ़िल्में आई. वो फ़िल्में बनाने में लगभग एक फैक्ट्री थे. नए विचारों के साथ फ़िल्में बनाना ही उनका "युवमन" था.ऊर्जा और विचारों से लबरेज थे वो. हाल में आई फिल्म "चार्जशीट" में वो एक बार फिर दिखे. हजारों-हज़ार युवा नायक नायिकाओं को फिल्म इंडस्ट्री में लाने और स्थापित करने में वो सफल रहे और आजीवन वो इस काम में लगे रहे.कभी वो चुके नहीं. कभी वो थके नहीं. शरीर ने आज साथ नहीं दिया पर वो मन से कभी बूढ़े नहीं हुए. उनका कहना था - कल की योजना नहीं होना ही बुढापा है...... सच है देव साहब आपके पास तो कई सौ सालों की योजनाये थीं. अभी आप अपनी बालसुलभ ऊर्जा से ओतप्रोत थे....विशवास है आप हमें आसमान से राजू गाइड की तरह से देख रहे होंगे..... आपने अपने जीवन के बाद की भूमिका भी बहुत करीने से सजी थी....विशवास है ये ज्वेलथीफ आज भी यहीं-कहीं है हमारे बीच..... और रहेगा सदियों तक अपनी योजनाओं और सपनों के साथ.
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