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Showing posts from March, 2011

अब तेरा क्या होगा "सेवा"

                   कानपुर के जिलाधिकारी डा. हरिओम ने नौ मार्च को  स्वयं  अपनी पूरी टीम के साथ जाकर कानपुर के प्राथमिक  स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील उपलब्ध कराने का जिम्मा उठाये छह स्वयंसेवी संगठनों का दौरा किया था. मैंने उनके कानपुर पद-भार ग्रहण करने के बाद इस और उनका ध्यान आकृष्ट कराया था. जिसके परिणाम स्वरुप ये कार्यवाही की गयी थी.ये  शिकायत 'फेस-बुक' के माध्यम से की गयी थी.जिलाधिकारी महोदय को इन संस्थाओं में विभिन्न प्रकार की कमियां प्राप्त हुयी थी.भोजन में पोषकता की कमी सहित साफ़-सफाई और निरंतर तैयार मध्यान्ह भोजन की आपूर्ति की भी  कमियां उजागर हुयी थीं.                  कल यानी ३१ मार्च को कानपुर के बेसिक शिक्षा अधिकारी राकेश कुमार पाण्डेय ने बताया  वर्ल्ड वेलफेयर सोसाइटी,अरुणोदय ग्रामोद्योग, बापू ग्राम विकास संस्थान और युवा ग्राम विकास समिति को इस काम से हटा दिया गया है. उन्होंने बताया  वर्ल्ड वेलफेयर सोसाइटी प्रेम नगर के मदरसों और सरकारी सहायता प्राप्त केन्द्रों को, अरुणोदय ग्रामोद्योग प्रेम नगर सी.आर.सी. के परिषदीय विद्यालयों को, बापू ग्राम विकास संस्थान हरजेंदर नगर

रजिस्ट्रार कार्यालय का काला कारनामा

अट्ठाईस मार्च 2011, के " चौथी दुनिया ", अखबार में पेज - 18 पर छपी ये खबर कानपुर में एक आला अधिकारी की बदनीयती या भ्रष्टाचार के बाद भी सुरक्षित रहने खुश-फहमी का खुलासा करती है. आप की क्या राय है ? पढिये और बताइए - रजिस्ट्रार कार्यालय का काला कारनामा उत्तर प्रदेश में आज-कल भू-माफिया सक्रिय है.इसमें सरकार के आला अधिकारी भी उसका साथ दे रहे हैं. खुलेआम ऊपर तक देना होता है, का नारा आजकल वे अधिकारी भी लगाते हुए मिल जाते हैं जिनका ट्रैक रिकार्ड बहुत अच्छा माना जाता है. स्थिति यह है की प्रदेश में नियम-कायदों को ताक पर रखकर रजिस्ट्रियां की जा रही हैं. जन सूचना अधिकार अधिनियम २००५ के माध्यम से मिली जानकारी के अनुसार स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, सुपर्वैजारी हाउसिंग सोसाइटी , लिमिटेड , कानपुर को अनियमितत तरीके से भूखंडों के क्रय-विक्रय पर अपर आवास आयुक्त/अपर निबंधक वी. डी. मिश्र द्वारा ४ जनवरी,२०११ को रोक लगा दी गयी थी. ऐसा इस हाउसिंग सोसाइटी में व्याप्त भ्रष्टाचार के उजागर जो जाने के बाद कानूनी स्थिति मजबूत करने के मद्देनजर किया गया था. जांच में भूखंडों की खरीद-फरोख्त में गडबड

प्राइमरी शिक्षा विभाग में स्थानांतरण की नीति कब बनेगी ?

उत्तर प्रदेश में मायावती ने इस बार मुख्यमंत्री का पद सम्हालते ही सरकारी कर्मचारिओं और अधिकारिओं के ‘स्थानान्तरण-उद्योग’ पर रोक लगाने का काम किया. अपनी पूर्व की सरकारों में इस विशेष उद्योग के कारण खासी बदनामी झेल चुकी थीं. प्रत्येक वर्ष अप्रैल से जून के महीने सरकारी कर्मचारिओं और अधिकारिओं के स्थानान्तरण के लिए जाने जाते रहे हैं.प्रत्येक विभाग की अपनी एक खास प्रक्रिया होती है और स्थानांतरण के लिए उचित कारण बताकर प्रत्येक वर्ष लोग इधर से उधर होते रहे हैं. ‘कारण की व्याख्या’, किसी शक्तिशाली सिफारिश या फिर ‘सेवा-शुल्क’ के माध्यम से होती रही है. इन खास महीनों सरकारी कर्मचारिओं में परिवारीजनों के साथ स्वयं की बीमारिओं आदि के प्रमाण-पत्रों को आवेदन-पत्र के साथ सिफारिशों के पत्रों की भरमार होती जाती है. मंत्रिओं, विधायकों, सांसदों सत्ताधारी दल के संगठन के पदाधिकारिओं तथा बाहुबलिओं की सिफारिशें आम होती हैं.बसपा की सरकार में इस ‘सेवा-शुल्क और सिफारिशी पत्र’ के बल पर सारे काम कराने की छवि को सुधारने की गरज से मायावती ने दो सत्र स्थानान्तरण शून्य कर दिए थे. जिससे सरकारी कर्मचारिओं और अधिकारिओं में

होरियाये अंदाज में ......कुछ अनकही......

होरियाये हुए मूड में ,मेरे खालिस अंदाज में प्रवीन शुक्ल जी की पेशकश , कुछ ऎसी है , "कल चौहदवी की रात थी, शब् भर रहा चर्चा तेरा ! कुछ ने कहा ये चाँद है, कुछ ने कहा चेहरा तेरा !!" ऐसा न था की हम उन्हें चाँद न कहते थे. चौदहवी का नहीं पूरी पूर्णिमा कहते थे. पर वो अपनी हो न सकीं.अब देखो भाई ! वो कहाँ हैं , ये सब साथी जानते हैं. और ऐसा भी नहीं की 'वो' बेखबर हैं की हम आजकल कहाँ हैं और क्या कर रहे हैं.हमारी हर हरकत पर उनकी निगाह है, यही भरम बने रहने दो यारों. मित्रों मैं कहता हूँ की सबसे ज्यादा ऊर्जा होती - शब्दों में ! इसलिए इन्हें तीर भी बनाओ तो सोच-समझ कर . नहीं तो हमारी तरह से हो जाओगे. हम चाह कर भी अब आस-पास नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि हमने सारे शब्द-बेधी तीर चला दिए , वो भी एक ही साथ. और वो हैं की अपने पति की खैर-ख्वाह हो गयीं.अब वो बेचारा .......... अब उनके पल्लू में सिमटा और छुपा है. अब बताओ, हमें क्या करना चाहिए ?मर जाएगा तब भी विधवा उसी की कहलाएगी. तो भाइयों और थोड़ी सी बहनों, अब हम इसी तरह से बुढापे का इंतज़ार कर रहे हैं , जब वो किन्हीं गलिओं या बाज़ारों में अप

होली की रंगीनियाँ और मैं

तुम नहीं, गम नहीं, शराब नहीं, ऐसी तन्हाई का जवाब नहीं। गाहे गाहे इसे पढ़ा कीजै, दिल से बेहतर कोई किताब नहीं। जाने किस किस की मौत आई है, ...आज रुख पे कोई नकाब नहीं। वो करम उंगलियों पे गिनते हैं, जुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं। साभार - विष्णु त्रिपाठी मित्रों, इसे पढ़ा,तो लगा की ये लाइनें मेरे लिए ही लिखीं गयी हैं. आज होली है , और जीवन बेरंग सा है. ऐसा नहीं की मेरे जीवन में कभी रंग नहीं आये थे.पर अब वो किसी और के आँगन में अपना असर छोड़ रहे हैं. और अपने वजूद से मेरी पहचान को मिटाने में लगे हैं. प्रेम का ये गाढा रंग मिलन और विछोह के बहानों से मिलाकर बनाया गया होता है.अब वो नहीं हैं, पर होली आई है. रंगीन भी है. पर आज बिना उल्लास का मैं बहुत अकेला हूँ, सारा ज़माना है पर आज मन स्तब्ध सा है. उनके बिना बचे जीवन में कुछ शेष रंगों को समेटता हुआ मैं विवाह के लगभग बारह वर्षों के बाद फिर अकेला हूँ. पत्नी बीमार है. और साथ नहीं है.शायद, मैं उसके विशवास को जीत पाने में कहीं कहीं सफल नहीं हो सका. आज पुत्र के साथ वो अपने अपनों के साथ है. शिवमंगल सिंह 'सुमन' की कविता 'मैं अकेला

कानपुर के मीडिया-कारों का नया कारनामा "मीडिया बनी पुलिस की मुखबिर"

कानपुर. अब अपने शहर में भी देश-दुनिया में व्याप्त मीडिया की अच्छाइयां और बुराइयां आ चुकी हैं.इन्हीं में से एक हैं 'खोजी पत्रकारिता'. इसे काफी हद तक सभी जगहों पर सराहा भी गया है. चाहे वो जूलियन असान्जे के विकीलीक्स के खुलासों का मामला हो या फिर हिन्दू अखबार के द्वारा टू-जी स्पेक्ट्रम का घोटाला देश के सामने लाने का सराहनीय प्रयास ही क्यों न हो. सभी के माध्यम से मानवता और कानून के रसूख को कायम करने का प्रयास किया गया है. किन्तु कानपुर में कल की एक घटना और उसकी तह पर जाने पर मीडिया का सर शर्म से झुक गया. मामला ही कुछ ऐसा था जिसे सभी समाचार-पत्रों में इसी रूप में छापा गया पर कोई इस मामले की जड़ में जाने का प्रयास नहीं कर रहा है. आइये आपको बताते हैं की क्या मामला है और क्या हुआ था और क्या होना चाहिए था? कानपुर में मुख्य शहर से थोड़ी दूरी पर या फिर कम यातायात वाले दूरस्थ क्षेत्रों में रिसोर्ट, रेस्टोरेंटों , पार्कों आदि में प्रेमी जोड़े नहीं बल्कि पेशेवर और गैर-पेशेवर जोड़े aksar प्रेमालाप करते पाए जाने लगे हैं. आर्थिक उदारीकरण के दौर में भारतीय संस्कृति पर