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Showing posts from January, 2012

सवाल सूंड का या मंशा का

  चुनाव आयोग अपने निर्णय की समीक्षा करे                                                                           अरविन्द विद्रोही                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                          सूंड उठाये   हाथी को परदे के पीछे  ढकने का चुनाव आयोग का फैसला पक्षपात पूर्ण  ही है | बहुजन समाज पार्टी का चुनाव निशान तो  सूंड  नीचे   किये हुये हाथी है | सरकारी धन से बने और खरीद कर वितरित किये गये सभी चुनाव चिन्हों पर एक साथ एक तरह का निर्णय होना चाहिए था , मसलन साइकिल को भी सरकारी धन से खरीद कर पुरे प्रदेश में वितरित किया गया , सभी सरकारी भवनों में पंखा लगा है , बाल्टी खरीदी  गयी है , हैण्ड पम्प लगा है

छोटे राजनीतिक दलों के सहारे उत्तर प्रदेश का राजनीतिक भविष्य

                उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है.  शीघ्र ही प्रदेश के राजनीतिक भविष्य की रूपरेखा जनता के समक्ष स्पष्ट हो चुकी होगी, जिसकी नींव का निर्माण पूर्व में हो चुका है. कभी प्रदेश में केवल कांग्रेस-विरोध को सत्ता-विरोध और मजदूर-किसान-नौजवान की बात करने वालों को जन-समर्थक मानकर छोटे दलों के उदय और विकास की पहली अनिवार्य शर्त माना जाता था.  समय के साथ सत्ता पर नियंत्रण और विरोध का उद्देश्य दोनों बदले. सत्ता में भागीदारी आज की राजनीति की पहली शर्त बन गयी है. यही वजह है, प्रदेश की किसान और मजदूर राजनीति भी अपनी चमक खो बैठी है जबकि इस वर्ग की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है. मजदूर और मजलूमों की बात राजनीतिक दलों के मंचों में केवल मुद्दे को जीवित बनाए रखने के लिए की जा रही है. नए और क्षेत्रीय दलों के उदय और विकास के लिए किसी मान्य राजनीतिक विचारधारा की पृष्ठभूमि अब अनिवार्य शर्त ना रही है. जातीय और धार्मिक आधार पर बनाए गए इन राजनीतिक दलों का किसी खास क्षेत्र विशेष में प्रभाव-मात्र ही इनकी राजनीतिक धमक और चुनावी रन में उपयोगिता का परिचायक है. इसी आधार पर बने

बाबू, बादशाह,बुंदेलखंड और भाजपा

बाबू ,   बादशाह , बुंदेलखंड और भाजपा    उत्तरप्रदेश में चुनाव का बिगुल बज चुका है. कभी प्रदेश की राजनीति में हावी   ‘ एम् ’  फैक्टर उपेक्षित हुआ है. समाचार माध्यमों में आम चुनावों का मुद्दा और केंद्र रहने वाले "माया ,  मुलायम और मैडम" की टी.आर.पी. गिरी है.   कभी   “ भय ,  भूख और भ्रष्टाचार ” मिटाने का नारा देने वाली भाजपा ने जैसे-तैसे सत्ता कब्जियाने के लिए   “ बाबू ,  बादशाह और बुंदेलखंड ”  का अघोषित नारा अपना लिया है. चुनाव विश्लेषकों का मानना है पिछड़ी जातियों को अपने पाले में समेटने की जैसी हड़बड़ी गत लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह को साथ ले कर की थी ,  वैसी ही   ‘ हिमालयन भूल ’ स्वास्थ्य घोटाले में आरोपी बाबू सिंह कुशवाहा को भाजपा में शामिल कर की गयी है. इस कदम का पार्टी के अंदर और प्रबुद्ध मतदाता वर्ग के असंतोष को भांपते हुए सहयोगी दल जनता दल (यू) ने भी असंतोष जताया है. आज प्रदेश में बसपा के सारे दागी और भ्रष्टाचार के आरोप में निष्कासित नेता धीरे-धीरे भाजपा में आ रहे हैं. यही तो है हाकी का "रिवर्स गोल"......या क्रिकेट की भाषा में "हिट

आखिर क्यों पिछड़ गए “पिछड़े”

आखिर क्यों पिछड़ गए “पिछड़े”         उत्तरप्रदेश में विधान-सभा का चुनावी माहौल अब गरम होने लगा है. पहले चरण के नामांकन की तारीख नजदीक आ रही है. प्रदेश में चुनाव के मुद्दों में भटकाव जोरों पर है. विगत वर्ष चर्चा में रहे भ्रष्टाचार, महँगाई, काला-धन वापसी और अपराध के स्थान पर जातीय आधार जीत का गणित बनने लगा है. किन्तु आर्थिक और जातीय आधार पर “पिछड़ा-वर्ग” कहलाने वाला समाज सत्ता पाने और कब्जियाने में एक बड़ा भाग पाने में सक्षम होने के बावजूद छोटे-छोटे स्वार्थों के चलते बिखर सा गया है. वैचारिक गिरावट का दौर ऐसा है की समाजवादी, राष्ट्रवादी, वाम-पंथी और मध्यमार्गी सभी प्रकार की राजनैतिक विचारधाराओं के दल आज इस खास पिछड़ा वोट-बैंक को हथियाने के लिए कोई भी हथकंडा अपनाने में शर्मो-हया त्याग चुके हैं. इसके अतिरिक्त इस वर्ग में आई जातीय और राजनीतिक चेतना के परिणामस्वरूप प्रत्येक जाति का अपने क्षेत्र-विशेष में अपना राजनीतिक वजूद कायम रहे इसलिए राजनीतिक दल बन चुका है. जिनकी भूमिका “दबाव-समूह” या “उगाही-समूह” से अधिक कुछ नहीं है. बड़े राजनीतिक दलों की भूलों और उनकी खास रणनीतिक समझ से कारण भी इ