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Showing posts from March, 2023

“मूवमेंट” के लिए “मूव” तो करना ही होगा...

       बात इक्कीसवीं सदी में अन्ना हजारे के आन्दोलन के समय की है. देश में भ्रष्टाचार समाप्ति की दिशा में मजबूत और आवश्यक कदम माने जाने वाले “लोकपाल बिल” की व्यापक मांग के लिए उस समय देश की आशा का केंद्र रामलीला मैदान के तम्बू में अनशनरत अन्ना हजारे के साथ तमाम छवियाँ जुड़ रही थीं. किसी भी अत्यंत लोकप्रिय खेल के रोमांचक मैच की ही भांति लोगों की साँसें अटकी थीं. दिल्ली से आने वाली हर खबर टेलीविजन पर चर्चा का विषय थी. देश में लगभग सभी शहरों में दिल्ली की तर्ज पर तमाम रामलीला मैदान बन गए थे. साथ ही, हर मैदान के केंद्र में आन्दोलन के बहाने संभावनाओं के समंदर में विद्यमान ढेरों रत्नों में से अपने लिए चिन्हित लाभ पर नजर गड़ाए लाखों आन्दोलनकारी जमे हुए थे. पानी, किसानी और जंगल के आन्दोलनकारी भी इसी आन्दोलन में शामिल हो चुके थे. जनता उस आन्दोलन से तमाम आशा लगाए हुए थी और परम्परागत राजनीतिज्ञ उस आन्दोलन के उफान के उतरने का इंतज़ार कर रहे थे. वास्तव में, उस या उस जैसे आन्दोलनों यानी मूवमेंट में बहुत से युवा   राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में चमक बनाते हैं. यह चमक स्थाई भी हो सकती है और अस्थाई भी.