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Showing posts from July, 2022

साहब का तोता

  ................कलियुग में जम्बूद्वीप के भारतखंड में उत्तरप्रदेश नाम का एक राज्य था. वंशवाद के विरोध में एक ही परिवार की प्रमुखता वाली समाजवादी सरकार का शासन था. कलियुग के जिस काल की यह कहानी है, उस काल में कमजोर राजा के मजबूत सलाहकारों का युग था. "बाबू" टाइप के अधिकारी ही असली राजा थे, जो साहब कहलाते थे. उस राज्य में एक विशिष्ट प्रजाति का एक बादशाह जैसी शानोशौकत से जीने का शौकीन "बाबू" यानी साहब था. सत्ता की ताकत में उसे आदमी को पहचानने में दिक्कत आने लगी थी. उसने अपने घर और दफ्तर में आने-जाने वालों की फितरत को पहचानने के लिए एक "तोता" पाला. "तोता" विशिष्ट गुण वाला था. वो हर आने-जाने वाले को देखकर उसकी सबसे बड़ी खासियत के बारे में चिल्ला-चिल्लाकर साहब को सचेत कर देता था. इससे उन्हें जागरूक रहने में मदद मिलती थी. इस खामख्याली में उन्होंने आने-जाने वालों से रोक-टोक का बैरियर हटा दिया. लोग आते और तोते से अपना सर्टिफिकेट जारी करवा लेते. इस व्यवस्था में एक दिन एक समस्या खड़ी हो गयी. साहब के लिए चाँद-तारे और सारे लाने की व्यवस्था कर

शब्दों के घाव बड़े गहरे

          "शब्द" तीर, तलवार, ख़ंजर ही नहीं आज के युग के किसी भी आधुनिकतम हथियारों से भी ज़्यादा ख़तरनाक, धारदार और मारक होते हैं। समाज, राष्ट्र और व्यक्तिगत पारिवारिक सम्बन्धों को बनाने और बिगाड़ने में भी इनकी अति महत्वपूर्ण भूमिका होती है।            देश और दुनिया में निरन्तर तकनीकी प्रयोग के बढ़ने और कोरोना जैसी जानलेवा महामारी के चलते दुनिया में समाज का व्यवहार विभिन्न कारणों से निरन्तर बदल रहा है। नब्बे के दशक में इंटरनेट आम व्यक्ति की पहुँच में आया था किंतु इक्कीसवीं सदी के प्रथम दशक में कम्प्यूटर से होता हुआ मोबाइल के माध्यम से प्रत्येक नागरिक की मुट्ठी में समा गया। कभी स्टेटस सिम्बल माने जाने वाला स्मार्ट फ़ोन आम ज़रूरत की डिवाइस बन गयी है। कोरोना महामारी के दौरान स्मार्ट फ़ोन और लैपटाप को इंटरनेट के माध्यम से जोड़कर प्रत्येक बच्चे की शिक्षा का आधार बनाया गया।           "नेटिजन" अर्थात इंटरनेट प्रयोग करने वाले सिटिज़न , की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न उन्नति के द्वार खुले हैं किंतु साथ ही, बढ़ रही हैं, इसके अधिक प्रयोग से

हर रिश्ता "बिसात" का घर है, सबके सीने में पत्थर है

     कालजयी कवि प्रमोद तिवारी जी की कविता "कैसा यार कहाँ की यारी, धोखा खाओ बारी-बारी" की दूसरी पंक्ति है- हर भेजा बिसात का घर है, सबके सीने में पत्थर है . मैंने इस पंक्ति में थोड़ा सा परिवर्तन कर "भेजा" को "रिश्ते" में परिवर्तित किया है. इसकी वजह साफ़ है.      हम इक्कीसवीं सदी के साथ ही "कल-युग" में जी रहे हैं.तमाम विद्वतजन मेरी इस बात से सहमत न होंगे और कलियुग कहेंगे. मेरा अपनी बात के समर्थन में अपना यह पक्ष रखना है कि हम सभी कल-कारखानों के युग में हैं, इसलिए काल-खंड का असर हमारे जीवन में आने लगा है. हम सब भी "मशीन" और "रोबोट" बनते जा रहे हैं. सब कुछ पूर्व-निर्धारित और किताबी दिशा-निर्देशों के अनुसार.     मनुष्य के मशीनी बन जाने का सबसे खराब असर "मानवीय रिश्तों" पर पड़ रहा है. शायद आप सबने इस बात को मेरी तरह सोंचा होगा या नहीं. मैं मानवीय रिश्तों के मशीनी होते जाने को इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आप सभी प्रतिदिन रिश्तों की मर्यादा को तार-तार करती हुयी अपराधिक घटनाओं को मीडिया में देखते रहते हैं. केवल और केवल धन-सम्

ग्रामोदय और अन्त्योदय हो लक्ष्य

  आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, ऐसे में राष्ट्र की उन्नति का मूल आदर्श ग्राम की संकल्पना है, जिसके माध्यम ग्रामोदय और अन्त्योदय के लक्ष्य पूर्ति की जानी है. इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए निम्न सुझाव हैं- v "आदर्श ग्राम" अर्थात "पूर्ण रोजगार संतृप्त गाँव " की परिकल्पना के सम्बन्ध में सामाजिक और आर्थिक मानकों के आधार पर अवधारणा-पत्र विकसित करना. v गाँव में उपलब्ध मानव-श्रम को पर्यावरण-पूरक धंधों में उपयोग करने के लिए खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग और योजना विभाग के साथ समन्वय स्थापित कर प्रत्येक ग्राम पंचायत क्षेत्र का अर्थ-चक्र विकसित करने के लिए पत्र प्रेषित किया जाए. v विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध तकनीकी और प्रबंधन कालेजों के सहयोग से आवश्यकता-आधारित आदर्श ग्राम के माडल विकसित करने का निवेदन किया जाए और उसको प्रत्येक वित्तीय वर्ष में प्रत्येक जनपद में 100 आदर्श गाँव विकसित करने का लक्ष्य किया जाए. v ग्राम पंचायत स्तर पर विकसित मंडियों को एक वेब-साईट के माध्यम से जोड़कर कृषि-उपज के सही मूल्य और मार्केटिंग के लिए तंत्र विकसित करना. v प्रत्येक वर्ष आदर्