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Showing posts from June, 2011

आई जलेबी बाई

लो कल्लो बात. फिर से बीच मैदान आखिर वो आ ही गयीं. जब वो नहीं थीं तो शीला की जवानी और मुन्नी की बदनामी से देश काम चला रहा था. चुलबुल पांडे भी कैरेक्टर ढीला किये हुए थे. देश अन्ना और रामदेव में व्यस्त था. की तभी उन्होंने बड़ी झन्नाटेदार एंट्री मारी है. ज्यादा मत सोचिये ? और कौन होंगी ? अपनी पांच साल पुरानी 'मर्डर' फिल्म ... से हिट हुयी, वही देश की प्यारी-दुलारी ,नंगी-पुंगी-मल्लिका शेरावत हैं . अपने देश के सारे पुरुष अपनी पत्निओं से छुपाकर उनकी कामना करते हैं. चुपके-चुपके उसके फोटो देख ही लेते हैं जैसे बैन होने के बाद भी देश के सारे पत्रकार "भड़ास" देख लेते हैं. वैसे अगर मैं स्त्री सौदर्य की व्याख्या में तल्लीन हो जाऊं तो बुरा मत मानियेगा . ये सुंदरता होती ही ऎसी चीज है , बस किसी में भी लगने लगती है. फिर वो तो हैं ही ऎसी की मन उनका नाम आते ही 'गिली-गिली-कम्पट' हो जाता है. दोस्तों, अभी एक फिल्म में वो जलेबी बाई बनी हैं और एक गाने में थिरकी हैं . अजी , क्या कमाल का थिरकी हैं ! काश आज 'एम्. एफ.' होते ! खैर, कोई बात नहीं,हम भी एक हाथ में कूंचा-कूंची लिए ए

... और फिर जूता चल गया.

रोज-रोज जूता । जिधर देखिये उधर ही "जूतेबाजी" । जूता नहीं हो गया, म्यूजियम में रखा मुगल सल्तनत-काल के किसी बादशाह का बिना धार (मुथरा) का जंग लगा खंजर हो गया । जो काटेगा तो, लेकिन खून नहीं निकलने देगा । बगदादिया चैनल के इराकी पत्रकार मुंतज़र अल ज़ैदी ने जार्ज डब्ल्यू बुश के मुंह पर जूता क्या फेंका ? दुनिया भर में "जूता-मार" फैशन आ गया ।... न ज्यादा खर्च । न शस्त्र-लाइसेंस की जरुरत । न कहीं लाने-ले जाने में कोई झंझट । एक अदद थैले तक की भी जरुरत नहीं । पांव में पहना और चल दिये । उसका मुंह तलाशने, जिसके मुंह पर जूता फेंकना है । जार्ज बुश पर मुंतज़र ने जूता फेंका । वो इराक की जनता के रोल-मॉडल बन गये । जिस कंपनी का जूता था, उसका बिजनेस घर बैठे बिना कुछ करे-धरे बढ़ गया । भले ही एक जूते के फेर में मुंतज़र अल ज़ैदी को अपनी हड्डी-पसली सब तुड़वानी पड़ गयीं हों । क्यों न एक जूते ने दुनिया की सुपर-पॉवर माने जाने वाले देश के स्पाइडर-मैन की छवि रखने वाले राष्ट्रपति की इज्जत चंद लम्हों में खाक में मिला दी हो । इसके बाद तो दुनिया में जूता-कल्चर ऐसे फैला, जैसे जापान का जलजला । जिधर

लखनऊ के सी.एम्.ओ. की ह्त्या-कांड की खबर

सोशल ऑडिट का परीक्षण - असहयोग और उपेक्षा उजागर

चौथी दुनिया साप्ताहिक समाचार पत्र के ६ जून से १२ जून के अंक में प्रकाशित समाचार.

भूजल भंडारों और नदियों के रिश्ते

भारत की नदियों में बहने वाला सतही जल का अधो-भूजल के साथ गहरा रिश्ता रखता है. अधो-भूजल के  भण्डार जब खाली होते हैं तो नदियों की सतह पर बहने वाले जल का दर्शन नहीं होता.नदियाँ  अधो-भूजल भण्डार भरने पर छोटे-छोटे झरनों से निकलने वाली जल धाराओं  से निर्मित होती है. गंगा, यमुना, कृष्णा, गोदावरी, कावेरी आदि  सभी  नदियों में अब जहां अधो-भूजल का प्रवाह है, वहीँ वह नदी बची है. अन्यथा देश भर की सभी नदिया नाला बन गयी हैं या जल के प्रवाह के बिना सूखकर मर गयी हैं. अब इक्कीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में भारत में बहुत सी छोटी नदियाँ सूखकर मिट गयी हैं. उनके प्रवाह स्थल पर खेती, उद्योग और आवास अब जगह-जगह बनते जा रहे हैं. नदियों के मरने और सूखने की घटनाओं से अब भारतीय समाज और सरकारें चिंतित नहीं दिखती हैं. एक ज़माना था जब नदियों के प्रवाह को देखकर समाज उसके संरक्षण के सपने संजोता था. जहर और अमृत की धाराओं को अलग-अलग रखने की विधियां सोचकर उन्हें सम्हालकर रखता था. आजकल हममें अमृत-वाहिनी  नदियों में मिला और जहर मिलाने की हिचक तक मिट गयी है. अब नदियों में मिला और जहर मिलाने वाले बड़े बन गए हैं.ऐ