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Showing posts from June, 2022

तेरे जैसा यार कहाँ.........

  ... . . जमाने में दोस्ती-यारी के हजार रंग और बहाने होते हैं । हमने पौराणिक युग में निषादराज गुह्य, हनुमान, सुग्रीव, विभीषण, सुदामा, कर्ण और अश्वत्थामा जैसे दोस्त देखे हैं, जिन्होंने अपने मित्र के लिए सर्वस्व न्योछावर करने में कतई हिचक नहीं दिखाई। इसी प्रकार प्रत्येक युग और काल में दोस्ती की भावना और उच्चादर्शों को निभाने की परंपरा रही है। भारतीय हिन्दी फिल्मों में दोस्ती के कई उदाहरण स्थापित किये गए हैं। श्याम-श्वेत फिल्मों के दौर में “दोस्ती ” का कथानक ही इसी भावना पर आधारित था, जिसने कम बजट में अच्छा मुनाफ़ा कमाकर सफलता स्थापित की थी। शोले, याराना, काला-पत्थर, दोस्ताना, तेज़ाब, 3 इडियट, मुन्ना भाई एम बी बी एस, फुकरे, धमाल, छिछोरे आदि दोस्ती की भावना पर आधारित नवीन कथानकों पर बनी ऐसी फ़िल्में हैं, जो समय-समय पर गुदगुदाती और प्रतिमान स्थापित करती रही हैं। अब युग बदल रहा है। OTT प्लेटफार्म और वेब-सीरिज का युग आ गया है। कोरोना काल में इसे बढ़ावा मिला है। हाल में, एक वेब-सीरीज “आश्रम” के सीजन-3 का लांच हुआ। बॉबी देओल ने इसमें मुख्य किरदार निभाया है, जिसमें उसके दोस्त “भोप

अग्निपथ - कुंदन तो आग में तप कर ही बनेगा

  हाल में घोषित की गयी "अग्निपथ" योजना के माध्यम से चार वर्ष के लिए सेना में होने वाली "अग्निवीरों" की भर्ती की घोषणा ने एक तूफ़ान खड़ा कर दिया है। सोशल मीडिया पर लगभग हर दूसरा व्यक्ति इस मुद्दे पर अपनी व्याख्या और समीक्षा में लगा हुआ है। सेना और देश की रक्षा से जुदा मामला होने के कारण इस मुद्दे की संवेदनशीलता है ही इतनी अधिक कि प्रत्येक प्रज्ञावान व्यक्ति शांत रह भी नहीं सकता। सबके अपने-अपने नज़रिए हैं। एंटी-सोशल मीडिया यानी टेलीविजन पर विगत दिनों की भाँति जिस प्रकार टोपी, दाढ़ी और तिलक-चंदन लगाए लोगों को धर्म-विशेषज्ञ के रूप में काम मिल गया, ठीक उसी प्रकार आजकल प्रत्येक चैनल पर रक्षा विशेषज्ञ के नाम पर तमाम पूर्व सैन्य अधिकारियों को बयानवीर होने का काम मिल गया है। देश में एक बार रक्षा-सौदों में घोटाले के आरोप में सरकार भी बदल चुकी है, इसलिए वर्तमान सरकार रक्षा से जुड़े मामले में किसी प्रकार की ग़लती का दोहराव नहीं करेगी। चीन, पाकिस्तान, नेपाल, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार से जुड़ी सीमा-रेखा और उनकी सुरक्षा के मामले में किसी प्रकार की कोताही बरती भी नही

.....पत्थर, तेरे रंग हजार

      इक्कीसवीं सदी में मीडिया के लिए खबर है - जो कभी होता न हो और होता हुआ प्रतीत हो जाए. जैसे- पत्थर का मूल स्वभाव जड़ता है नाकि उड़ता. अगर किसी भी पत्थर में थोड़ी भी जुम्बिश आई, तो सोशल और एंटी-सोशल मीडिया तूफ़ान खड़ा कर देती है. इस तूफ़ान में धूल-गर्द और तमाम पत्थरों को फिर से गति देने की ताकत पैदा होती है. इस प्रकार बारम्बार ये पत्थर उड़ते जा रहे हैं, जोकि   महत्वाकांक्षाओं की अट्टालिकाओं के निर्माण के लिए कच्चा-माल के रूप में उपयोग किये जा सकेंगे, लेकिन इन ‘उड़ते पत्थरों’ ने मानवता को लहूलुहान करने में कोई चूक नहीं की है.      विद्वान शायर और कुशल प्रशासक डा0 हरिओम की कुछ पंक्तियाँ इसी मद्देनजर   निम्नवत प्रस्तुत है- धुंध के उस पार देखा कीजिए, रोशनी की धार देखा कीजिए. हाथ दीखते हैं सभी एक से, हाथ के हथियार देखा कीजिए.      इन ‘उड़ते पत्थरों’ का अपना कोई जाति या धरम नहीं है पर इनमें ‘क्षमता’ बहुत है. असल क्षमता है- निर्माण की. लेकिन अज्ञात दानवीय शक्ति से संचालित इन पत्थरों को उपयोग किया जा रहा है - खून बहाने के लिए. जाने-अनजाने पत्थरों को उड़ने की शक्ति को टी0 आर0 पी0 के

.................अच्छाई की मजबूरी

  देवानन्द-हेमा की हिट फिल्म थी-जानी मेरा नाम । जिसमें खूंखार विलेन प्रेमनाथ ने अपने सगे भाई को कैद कर रखा था और तरह-तरह की यातनाएं दिया करता था । जुल्म बर्दाश्त से बाहर होने पर बन्दी जीवन जी रहे भाई ने एक दिन फिल्म के डायरेक्टर को सेट करके ऑन-कैमरे पूंछा कि “आखिर, मेरा कुसूर क्या है?” अचानक सवाल आने से हड़बड़ाए हुए प्रेमनाथ ने दहाड़ कर कहा- “तुम्हारा दोष ये है कि तुम बेहद शरीफ आदमी हो, बेहद ईमानदार हो और तुम्हारी इस शराफत ने बचपन से ही मेरा जीना हराम कर रखा है। शराब तुम नहीं पीते। जुआ तुम नहीं खेलते। अय्याशी भी तुम नहीं करते। तुम्हारी ये अच्छाई मुझे बुरा बनाती है। अगर तुम भी बुरे होते तो मुझे कोई परेशानी न होती।” इसी सन्दर्भ में एक पुराना सिद्धांत याद आ गया, जिसे ब्रिटिश रॉयल एक्सचेंज के आदि संस्थापक थामस ग्रेशम द्वारा दिया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार- "यदि किसी अर्थव्यवस्था में अच्छी और बुरी मुद्राएँ एक साथ प्रचलन में हैं , तो बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को प्रचलन से बाहर कर देती है।" ग्रेशम के सिद्धान्त को प्रेमनाथ के शब्दों से समझा जा सकता है। ग्रेशम ने कभी भी यह