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Showing posts from May, 2011

फेसबुक बनी फेकबुक

फेसबुक बनी फेकबुक  भाइयों और बहनों, भारतीयों की युवाशक्ति के समय को बर्बाद करने का गोरों का खेल जारी है. क्रिकेट, फ़ुटबाल,बालीबाल, टेनिस,टेबिल टेनिस  जैसे खेल वे हमारे देश में लाये. हमारे देश के इतिहास में इन और ऐसे बहुत से खेलों के बारे में कोई आख्यान या विवरण नहीं मिलता है. अभी क्रिकेट का आई.पी.एल. चल रहा है. हज़ारों करोड़ रुपया विज्ञापन और विभिन्न मदों में बहाया गया. देश का सैकड़ों घंटे का बहुमूल्य समय बर्बाद हुआ. बिजली सहित तमाम संसाधन जो देश के विकास में व्यय होने चाहिए व्यर्थ के शौक में बेकार हुए. मैच-फिक्सिंग और सट्टा से ये मैच ओत-प्रोत रहे. अब एनी खेलों को भी इसी तरह से आगे लाया जाएगा. अभी भारतीय जन-मानस राष्ट्र-मंडल खेलों में हुए घपले-घोटाले को भूला नहीं है.उसके नायक जेल में हैं. क्रिकेट के राष्ट्रनायकों का तिलिस्म भी आम जनता में आना बाकी है. वास्तव में हमारे देश के लोगों के पास खेलों के लिए कभी समय ही नहीं रहा. हमारे देश के संस्कार में श्रम मूलक सभ्यता का सर्व-मान्य होना इसका एक ख़ास कारण रहा है. ब्रिटिश काल में ही भारतीय समाज ने सिनेमा के बारे में जाना. शुरुआत में सिनेम

बेदर्द जमाने में इन्द्र भूषण रस्तोगी किसे याद हैं?

      ये इन्द्र भूषण रस्तोगी, कोई गुमनामी बाबा नहीं हैं जो देश-भर में इनको कोई जानने वाला न हो! राजेश श्रीनेत जी के अमर उजाला , बरेली में सीनिअर रह चुके श्री रस्तोगी देश भर में पत्रकारिता जगत खासकर संपादक मंडली में कभी परिचय के मोहताज नहीं रहे. उनका एक भरा-पूरा सम्पादकीय जीवन का इतिहास रहा है, यदि अभी भी उनके शेष जीवन का संरक्षण हो गया तो देश के भविष्य के निर्माण में इनका महत्वपूर्ण योगदान होगा. आज जब देश भर में अक्षय तृतीया को कार्पोरेटीय अवसर बनाते हुए सोने की खरीद में सारे पूंजीपति व्यस्त थे तब मैं अपने वरिष्ठ साथी राजेश श्रीनेत जी के साथ आज के हृदयहीन समाज के लिए इस गुमनाम हो चुके व्यक्ति के खंडहरनुमा घर में दस्तक दे रहे थे. उनसे जब मिला तो लगा उनमें अभी पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने की आग ज्वालामुखी के फूटने के ठीक पहले की जैसी अपने चरम पर विद्यमान है. बातों में ऊष्मा का स्तर ऐसा जैसे अभी उनका श्रेष्ठ कार्य आना बाकी है. परन्तु आज का समाज क्या उन्हें इस काबिल मानता है. एक तरफ इसी कानपुर से निकल कर राज्यसभा के सदस्य बने पत्रकार और मालिकान हैं और दूसरी तरफ अपने निवास स्थल पर ट

भ्रष्टाचार हिंसा, सदाचार अहिंसा है. राजेन्द्र सिंह अध्यक्ष,तरुण भारत संघ. एवं जल-बिरादरी

लूट से बचने या मानवीय और प्राकृतिक हालात को बेहतर बनाने का विचार ही क्रान्ति है. बदलाव लाने का विश्वास और एहसास लोक मानस में क्रान्ति शुरुआत है. यह क्रान्ति शांतिमय और रचनात्मक होती है.तो प्रकृतिमय जीवन की समृद्धि करता और अहिंसा को आगे बढ़ाती है. हिंसक क्रान्ति होने के बाद विकास का रास्ता पकडती है. विकास की शुरुआत तो विस्थापन से ही होती है. फिर गैरबराबरी आती है. अंत में धरती का बुखार और मौसम का मिजाज़ बिगाड़ने वाला हिंसक विनाश होता है. यही जापान और रूस में हुआ था. अब चीन, अमेरिका और यूरोप में यही हो रहा है. भारत में शांतिमय संघर्ष से क्रान्ति हुयी है. शान्ति से आजादी मिली थी. इसलिए यहाँ के ज्ञान का विस्थापन ,विकृति और विनाश अपेक्षाकृत कम है. अहिंसक क्रान्ति से आजादी मिलने का परिणाम हमारा लोकतंत्र आज भी सुरक्षित है. नदी कूच, जनसत्याग्रह और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन या सत्याग्रह जहां ग्रूरत है, वहाँ चल पाते हैं. व्यवस्था में बदलाव भी करते हैं. हमारी संवेदनशील सरकारें भी समय से निर्णय लेती हैं. जहां समय से जनदबाव को सम्मान देकर निर्णय नहीं लिया जाता है; वहीँ भारत में भी हिंसक आंदोलन होते ह