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Showing posts from April, 2011

केंद्र सरकार का "गंगा संरक्षण सप्ताह" मनाने का निर्णय

               गंगा नदी को राष्ट्रीय महत्व की नदी घोषित करवाने और गंगा के पहले चरण (गोमुख से उत्तरकाशी तक के 145 किलोमीटर) को "इको सेंसिटिव जोन" घोषित करवाने की सफलता के बाद रेमन मैग्सेसे प्रस्कार विजेता राजेन्द्र सिंह 'जल-पुरुष' की एक और पुरानी मांग को केंद्र सरकार ने स्वीकृति दे दी है. हिन्दू धर्म की परम्पराओं में ज्येष्ठ माह की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है. जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा स्नान करते हैं. उनकी श्रद्धा और आस्था को ध्यान में रखते हुए राजेन्द्र सिंह ने केंद्र सरकार से विगत कई वर्षों से इन अवसर पर नदी के प्रवाह में जल-राशि की पर्याप्तता की मांग की थी, जिसे 26 अप्रैल को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह की स्वीकृति के बाद मान लिया है. इस आदेश को सभी सम्बंधित गांगेय राज्यों में  मुख्यमंत्रियों को भेज दिया गया है.              विगत वर्ष नयी दिल्ली के विश्व युवा केंद्र में हुयी २१ जून की बैठक में देश भर से आये जल और पर्यावरण विशेषज्ञों की बैठक में पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की उपस्थिति में राजेन्द्र सिंह की तरफ स

पढ़ो किताब, खोदो तालाब

  इलाहाबाद के कमिश्नर मुकेश मेश्राम ने 'जल-संरक्षण और वर्षा जल-संचयन' के मुद्दे पर आयोजित  एकदिवसीय कार्यशाला में आये मंडल के सभी मुख्य विकास अधिकारिओं और ब्लाक विकास अधिकारिओं  को संबोधित करते हुए "किताब पढने और तालाब खुदवाने' पर जोर दिया.इस कार्यक्रम का आयोजन 25 अप्रैल को कमिश्नरी इलाहाबाद के 'गांधी सभागार' में हुआ था.कार्यशाला में  मनरेगा और वन निभाग के मंडलीय अधिकारिओं के अतिरिक्त  जल-संरक्षण के विशेषज्ञ के रूप में जल-बिरादरी के अरविन्द त्रिपाठी उपस्थित रहे.        अपने स्वागत भाषण  में  श्री मेश्राम ने मानव के जीवन में पानी की महत्ता पर जोर देते हुए रहीम द्वारा रचित पंक्तियों को आज भी सर्वथा सत्य बताया.उन्होंने कहा एक वृक्ष अपने जीवन और जीवन के बाद भी मानव के जीवन के ब्व्हाले के लिए काम करता है. शास्त्रों में एक वृक्ष को दस पुत्रों से अधिक श्रेष्ठ बताया गया है. जल और जंगल के बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं है. उन्होंने सरकारी अधिकारिओं को मंडल में तालाबों के संरक्षण को प्रथम प्राथमिकता पर रखने पर जोर देते हुए प्रख्यात गांधीवादी डा. अनुपम मिश्र की पुस्तक &q

फिर से जीवित होंगी ग्रीनबेल्ट, हटेंगे कब्जे

      कानपुर कमिश्नर पी. के. महान्ति ने कानपुर की सबसे बड़ी ग्रीन-बेल्ट सहित शहर की सभी 43 ग्रीन-बेल्टों को अवैध कब्जों से मुक्ति दिलाने और सघन वृक्षारोपण का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा शहरीकरण के बढ़ते दबाव के कारण प्राण-वायु आक्सीजन की कमी की समस्या बढ़ने लगी है जिससे दमा सहित श्वास की सभी बीमारियाँ आज आम होती जा रही हैं . इस समस्या को दूर करने के लिए शहरी क्षेत्रों में नियोजित की गयीं सभी ग्रीन-बेल्टों में वैज्ञानिक तरीके से वृक्षारोपण किया जाएगा. ऐसे पेड़ों को अधिक संख्या में लगाया जाएगा जो ध्वनि और वायु प्रदूषण से आम आदमी को निजात दिलाएं.         हेलो कानपुर संवाददाता से वार्ता में श्री महान्ति ने कहा कानपुर विकास प्राधिकरण की महायोजना-२०२१ में चकेरी एयरफोर्स के पीछे प्योंदी सहित 13 गावों की जमीन को ग्रीनबेल्ट घोषित किया गया है. बताते चलें  ,  इन गावों को कानपुर नगर निगम की परिधि में ले लिया  गया था जिससे यहाँ की जमीन की खरीद-फरोख्त अत्यंत  महेंगी  हो  गयी  थी  क्योंकि नए बढे हुए डी. एम्. सर्किल रेट के कारण रजिस्ट्री की दर जमीन की कीमत से काफी अधिक है. ऐसे में कम उपजाऊ होती इन जमी

भ्रष्टाचार से संग्राम है मूल मुद्दा

Edit भ्रष्टाचार से संग्राम है मूल मुद्दा by Arvind Tripathi on Friday, April 22, 2011 at 2:42pm            भष्टाचार के विरुद्ध लड़ने वालों से केंद्र और राज्य की सरकारें बहुत सुनियोजित और संगठित तरीके से लड़ रही हैं.आज भी देश में लोकतंत्र स्थापित हुए साथ से अधिक सालों के बाद भी "जन-वाद" स्थापित नहीं हो सका है. आवाज उठाने वालों की कुंडली तैयार कर आन्दोलन को कमजोर करने का भरसक प्रयास ब्रिटिश सरकार की तर्ज पर ही किया जा रहा है.बात इस सिविल सोसाइटी के सदस्यों की रक्षा नहीं कर पाने  की नहीं है. ये भी संसारी लोग हैं, इन्होने भी इसी देश में जन्म लिया है यहाँ वे आसमान से अवतरित नहीं हुए हैं .उन्होंने कब कौन सा फल खाया और कौन सा चखा था,इसे मिर्च-मसाले के साथ पेश करने में लगा मीडिया भी संदेह को जन्म दे रहा है. ऐसे में जबकि देश के अति जिम्मेदार  इलेक्ट्रोनिक मीडिया का पोषण विदेशी धन से हो रहा है.आम जन की समझ में कुछ नहीं आ रहा है. विदेशी ताकतें इस मीडिया कर्म के माध्यम से जनता में अन्ना सहित सरकारों के विरोध को और चरम तक पहुंचाने में लगी हैं.           लगता है की सरकारें फिर आपात-कालीन

कानपुर प्रेस क्लब पर भारी, "अन्ना गिरी का इफेक्ट"

 जैसा की माना जा रहा था "चौथा कोना" का धरना हो तो रहा था अन्ना हजारे के समर्थन  में पर उसके परिणाम  बहुत ही दूरगामी होने थे . ये आम चर्चा उस धरने में चलती रही थी. कानपुर प्रेस क्लब के पदाधिकारिओं के द्वारा पर्याप्त दूरी बनाए रखना ये बताने और जताने के लिए पर्याप्त था की अब वो पत्रकार होने के बावजूद पत्रकारों के सवालों और बहस-मुबाहिसों से अपने मुह चुराने लगे हैं. कानपुर के पत्रकारों के पास कोई भी सर्वमान्य मंच का न होना एक बड़ी समस्या होती जा रही थी. इसका कारण दस साल के रुके-थके लोगों के द्वारा संगठन पर किया गया अति नियंत्रण था. रोशनी की कोई किरण कहीं से आ नहीं सकती थी. जिसने भी विरोध किया वो अकेले में समझा लिया गया और वही विद्रोही अगले ही पल फिर से इसी प्रेसक्लब की सड़ी-गली कमेटी के अद्वितीय कार्यकाल की महिमा का गान करने लगता था.ऐसे  मैनेज होता रहा सब-कुछ और सालों-साल बीतते रहे .                            धरने का नेतृत्व करने वाले प्रमोद तिवारी कह बैठे की देखना इस तम्बू का उखाड़ना होगा और प्रेस क्लब जैसे बहुत सारे तम्बू भी उखड जायेंगे. सही भी था.प्रमोद जी से जब सभी अपनी और प

मीडिया के दम पर भ्रष्टाचार से लड़ने में मारे गए गुलफाम

          देश - भर में चलने वाले भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना हजारे के आन्दोलन में बढ़ - चढ़कर हिस्सा लेने और यश लूटने के लिए कानपुर के   समाजसेविओं   में भी होड़   चल   रही है . वो चुके नहीं हैं ये बताने और जताने के लिए तरह - तरह के उपक्रम और उपाय किये जाते   रहते हैं .  कभी   फटेहाल और आज मालामाल हो चुके इनके साथ   अब जनता   नहीं   रही है . ये बात उनकी समझ   में आ   चुकी है . कुछ   कालेज   के छात्रों को   साथ   लेकर   आन्दोलन चलाकर असफल हो चुके इन   समाजसेविओं ने अब नया फंडा   निकाला है . या यूं कहो की अब  " सभी , सभी के लिए " के सूत्र   को जान - समझ लिया है . अब ऐसे   सभी दगे हुए   कारतूसों   ने एक बार फिर सक्रियता बढानी शुरू कर दी है .  ये काम अन्ना   हजारे   के आन्दोलन शुरू करने के साथ   की गयी है . कारण साफ़ था   की   " कानपुर रत्न " जैसे सम्मानों से अलंकृत होने और करने वाले इन सभी   को ये लग रहा था की क्या हम इस बार के   आन्दोलन में पीछे रह जाये