भ्रष्टाचार से संग्राम है मूल मुद्दा
by Arvind Tripathi on Friday, April 22, 2011 at 2:42pm
भष्टाचार के विरुद्ध लड़ने वालों से केंद्र और राज्य की सरकारें बहुत सुनियोजित और संगठित तरीके से लड़ रही हैं.आज भी देश में लोकतंत्र स्थापित हुए साथ से अधिक सालों के बाद भी "जन-वाद" स्थापित नहीं हो सका है. आवाज उठाने वालों की कुंडली तैयार कर आन्दोलन को कमजोर करने का भरसक प्रयास ब्रिटिश सरकार की तर्ज पर ही किया जा रहा है.बात इस सिविल सोसाइटी के सदस्यों की रक्षा नहीं कर पाने की नहीं है. ये भी संसारी लोग हैं, इन्होने भी इसी देश में जन्म लिया है यहाँ वे आसमान से अवतरित नहीं हुए हैं .उन्होंने कब कौन सा फल खाया और कौन सा चखा था,इसे मिर्च-मसाले के साथ पेश करने में लगा मीडिया भी संदेह को जन्म दे रहा है. ऐसे में जबकि देश के अति जिम्मेदार इलेक्ट्रोनिक मीडिया का पोषण विदेशी धन से हो रहा है.आम जन की समझ में कुछ नहीं आ रहा है. विदेशी ताकतें इस मीडिया कर्म के माध्यम से जनता में अन्ना सहित सरकारों के विरोध को और चरम तक पहुंचाने में लगी हैं.
लगता है की सरकारें फिर आपात-कालीन हालात तैयार कर रही हैं.अपने स्वच्छ छवि के प्रधानमन्त्री को इस मौके को आगे बद्गकर हाथोहाथ लेना चाहिए था. वो इस मौके को गवा बैठे. सोनिया को लिखी अन्ना की चिट्ठी ने बहुत कुछ साफ़ कर दिया है. अन्ना शहरी लोगों से घिरे हुए मूल ग्रामीण मानसिकता के भारतीय हैं. रही बात हेगड़े, केजरीवाल,भूशनों की तो गलत लोगों से भी ठीक काम क्यों नहीं कराये जा सकते, जबकि हम सालोंसाल से इन भ्रष्ट और गलत लोगों के हुजूम जिन्हें राजनीतिज्ञ कहते हैं, को अपना राष्ट्रनायक और महानायक मानते चले आ रहे हैं.
पर मूल प्रश्न ये है,जब बात सुचिता की हो ही रही है , तो क्या अपने इतने विशाल देश में हमारे पास पांच अदद ईमानदार लोग भी नहीं रहे ? जिन्हें निर्विवाद रूप से स्वीकार किया जाए ? क्या ऐसे पांच लोग भी एनी लोगों की तरह ही निरीह हैं.पद के लिए ये लोलुपता का चरम नहीं की वे इस्तीफा न देकर जैसे-तैसे बिल के ड्राफ्ट के निर्माण में अपनी भूमिका अदा कर के ही दम लेंगे. ऐसे में अन्ना को भी सोचना पडेगा. क्या इस कमेटी में शामिल होना उनका मूल उद्देश्य है या फिर था ? अमर सिंह और दिग्विजय सिंह जैसे लोग किसी इतने विशाल जन-समर्थन वाले आन्दोलन की हवा ऐसे निकाल देंगे ये सोचना भी हास्यास्पद है, परन्तु विचारणीय अवश्य है. देश का विपक्ष स्तब्ध है.राष्ट्र के पुनर्निर्माण का आह्वान करने वाले आज शांत हैं.आम-जनता नेतृत्व हीन है. और भ्रष्टाचार का राक्षस अपने अदम्य साहस के साथ देश को लीलने की तैयारी में है. राजनेता और नौकरशाह कारोबारिओं के साथ मिलकर उसका पोषण करने में लगे हैं.ऐसे में मित्रों , जब महाभारत शुरू हो ही गयी है तो शास्त्र हाथ में लेकर न चलाना भी तो कायरता का परिचायकहोगा.
अतः, आइये सार्थक और सकारात्मक दिशा में राष्ट्रहित में चिंतन करें.अन्ना को तब नहीं अब आपकी ज्यादा जरूरत है. आज आम सवाल है की इससे क्या होगा ?चुनाव आयोग,सतर्कता आयोग,मानवाधिकार आयोग और सूचना आयोग की ही तरह एक और संवैधानिक पद बन जाएगा.एक और विभाग और क्लर्कों का जमावड़ा हो जायेगा.आज ऎसी बातें करने वाले सही भी हो सकते है.पर आप सभी का कर्त्तव्य है की आप यदि इस क़ानून का महत्व और उद्देश्य को समझ गए हैं तो , आइये ज्यादा से ज्यादा लोगों से बात करें की इससे क्या होगा.
लगता है की सरकारें फिर आपात-कालीन हालात तैयार कर रही हैं.अपने स्वच्छ छवि के प्रधानमन्त्री को इस मौके को आगे बद्गकर हाथोहाथ लेना चाहिए था. वो इस मौके को गवा बैठे. सोनिया को लिखी अन्ना की चिट्ठी ने बहुत कुछ साफ़ कर दिया है. अन्ना शहरी लोगों से घिरे हुए मूल ग्रामीण मानसिकता के भारतीय हैं. रही बात हेगड़े, केजरीवाल,भूशनों की तो गलत लोगों से भी ठीक काम क्यों नहीं कराये जा सकते, जबकि हम सालोंसाल से इन भ्रष्ट और गलत लोगों के हुजूम जिन्हें राजनीतिज्ञ कहते हैं, को अपना राष्ट्रनायक और महानायक मानते चले आ रहे हैं.
पर मूल प्रश्न ये है,जब बात सुचिता की हो ही रही है , तो क्या अपने इतने विशाल देश में हमारे पास पांच अदद ईमानदार लोग भी नहीं रहे ? जिन्हें निर्विवाद रूप से स्वीकार किया जाए ? क्या ऐसे पांच लोग भी एनी लोगों की तरह ही निरीह हैं.पद के लिए ये लोलुपता का चरम नहीं की वे इस्तीफा न देकर जैसे-तैसे बिल के ड्राफ्ट के निर्माण में अपनी भूमिका अदा कर के ही दम लेंगे. ऐसे में अन्ना को भी सोचना पडेगा. क्या इस कमेटी में शामिल होना उनका मूल उद्देश्य है या फिर था ? अमर सिंह और दिग्विजय सिंह जैसे लोग किसी इतने विशाल जन-समर्थन वाले आन्दोलन की हवा ऐसे निकाल देंगे ये सोचना भी हास्यास्पद है, परन्तु विचारणीय अवश्य है. देश का विपक्ष स्तब्ध है.राष्ट्र के पुनर्निर्माण का आह्वान करने वाले आज शांत हैं.आम-जनता नेतृत्व हीन है. और भ्रष्टाचार का राक्षस अपने अदम्य साहस के साथ देश को लीलने की तैयारी में है. राजनेता और नौकरशाह कारोबारिओं के साथ मिलकर उसका पोषण करने में लगे हैं.ऐसे में मित्रों , जब महाभारत शुरू हो ही गयी है तो शास्त्र हाथ में लेकर न चलाना भी तो कायरता का परिचायकहोगा.
अतः, आइये सार्थक और सकारात्मक दिशा में राष्ट्रहित में चिंतन करें.अन्ना को तब नहीं अब आपकी ज्यादा जरूरत है. आज आम सवाल है की इससे क्या होगा ?चुनाव आयोग,सतर्कता आयोग,मानवाधिकार आयोग और सूचना आयोग की ही तरह एक और संवैधानिक पद बन जाएगा.एक और विभाग और क्लर्कों का जमावड़ा हो जायेगा.आज ऎसी बातें करने वाले सही भी हो सकते है.पर आप सभी का कर्त्तव्य है की आप यदि इस क़ानून का महत्व और उद्देश्य को समझ गए हैं तो , आइये ज्यादा से ज्यादा लोगों से बात करें की इससे क्या होगा.
Comments
Post a Comment