Skip to main content

Posts

Showing posts from May, 2020

यही महाभारत है......

हम कौन हैं, कहाँ हैं, किस के लिए हैं और जाना कहाँ है, यह जानने का प्रयत्न करें। साथ ही, यह भी कि राजनीति और सरकार मूलतः समाज की सेवा और रचना के लिए है अथवा राजनीति में लगे सभी लोगों की भोग-वृत्ति के लिए हैं। हम में से सभी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सभी के बारे में जानते हैं, परन्तु अर्थ, पद या झूठी प्रतिष्ठा के लिए विवश होकर इस चक्रव्यूह में फँसे हुए हैं। यही विवशता कभी महाभारत का कारण बनी थी। आज जाति और सम्प्रदाय से भी ज़्यादा विनाशकारी रूप राजनैतिक जातीयता और साम्प्रदायिकता ने ग्रहण कर लिया है।  यद्यपि अंग्रेज़ों को हमने अपना शासक मान लिया था, परन्तु उनके साथ बैठकर खान-पान और चरित्र को स्वीकार नहीं किया। भारत की जाति-प्रथा के कारण अंत्यजों में भंगी और डोम को सबसे निम्न श्रेणी में रखकर गाँव के बाहर रखा गया। सार्वजनिक तालाब और कुएँ से पानी लेने में भी रोक लगाकर रखा। उन्हें मंदिर में जाने से भी वंचित किया गया। फिर भी, धन्य हैं वे लोग जिन्होंने इस अपमान और प्रताड़ना को सहते हुए भी ख़ुद को हिंदू कहना स्वीकार किया और मुग़लों और अंग्रेज़ों के सामाजिक समता के प्रलोभन के बावजूद धर्म-परि

मजदूर नहीं मजबूर दिवस कहिए

..........ईस्ट के मैनचेस्टर कहलाने वाले "कानपुर" में मेरा जन्म हुआ था। जब होश सम्हाला तो मिलों और फैक्टरियों के सायरन, चिमनियों के धुएँ और ट्रेनों की आवाजाही का शोर चाहे-अनचाहे कानों में पड़ता रहता था। पिता रेलवे मेल सर्विस में ट्रेड यूनियन के लीडर थे, अतः मजदूरों की हक़ की बातें और संघर्ष का असर घुट्टी के रूप में मिला था। मजदूर आंदोलन के नाम पर राजनीति करने वाले धंधेबाज़ राजनेताओं की मिलीभगत से कानपुर के श्रम-मूलक उद्योग समाप्ति की ओर थे। नब्बे के दशक में पिता जी ने वर्कर यूनियन की राजनीति से त्यागपत्र दे दिया था।    स्नातक की पढ़ाई में इतिहास, अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र विषय के होने के कारण दुनिया के भूत, वर्तमान और भविष्य में इन सभी का असर समझ आया और अपने इर्द-गिर्द घट रही घटनाओं में साम्यता स्थापित करने में आसानी रही। लेकिन इस बीच देश की राजनीति में मुद्दे और विषय बदल रहे थे। हम युवा हिंदू और मुसलमान बन रहे थे। मंदिर और मस्जिद के मुद्दे ने आपसी दूरी बढ़ानी शुरू कर दी थी।  इक्कीसवीं सदी की पहली सुबह किताबों से मिले ज्ञान के अनुरूप कानपुर न था।  एक बड़ा परिवर्