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Showing posts from 2016

विभीषण का पुनर्जन्म

समयकाल - बीसवी सदी में नब्बे का दशक. स्थान - उत्तरप्रदेश की राजधानी, लखनऊ. प्रसंग - त्रेतायुग वाले प्रभु राम का अपने बंधु-बांधवों सहित आजाद भारत में पुनर्जन्म हो चुका है. परन्तु उनके राज्य अवध और मुगलकालीन आगरा को मिलाकर नया राज्य उत्तरप्रदेश बन चुका है. राम को इस राज्य की सत्ता सम्हालनी है यानी मुख्यमंत्री पद हेतु कल बहुमत साबित करना है. ............पार्टी कार्यालय के एक बड़े हाल भूमि में बिछी दरी में समाजवादी या अफगान राजशाही के अनुसार प्रभु राम, अपने प्रमुख सलाहकार जाम्बवंत, हनुमान, सुग्रीव, अंगद, नल-नील, भरत, शत्रुघ्न, लव, कुश और तमाम बंधू-बांधवों के साथ गहन चिंतनीय मुद्रा में बैठे हैं..... लम्बी चुप्पी तोड़ते हुए जाम्बवंत बोले- "सब तरफ से गिन लिया है, लेकिन बहुमत का इंतजाम नहीं हो पा रहा है...... कुछेक विधायकों की कमी पड़ जा रही है...." प्रभु राम लम्बी सांस लेते हैं......रामादल में गहरा सन्नाटा पसरा है..... तभी प्रभु राम की जय हो कहकर हनुमान का प्रवेश होता है..... उनके चेहरे का हर्ष और जोश देखकर सबके चेहरों में चैतन्यता आ जाती है. प्रभु राम ने हर्ष का कारण पूछ

कितना विज्ञापन हो ???

दोस्तों, उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनावों की आहट सुनाई देते ही यहाँ देशभर के राजनेताओं और राजनीतिक दलों ने अपना प्रचार-प्रसार प्रारम्भ कर दिया है. सुशासन बाबू पहले ही अपने दल को राष्ट्रीय रूप देने के लिए उत्तरप्रदेश के दौरे पर हैं. यदि पंजाब के अकालीदल को आगामी चुनावों में सफलता मिलती है तो वो भी उत्तरप्रदेश में हाथ आजमाएगी. कई बार शिवसेना ने यहाँ अपने कट्टर हिन्दूवाद के नाम पर चुनावों में प्रत्याशी उतारे हैं, किन्तु उल्लेखनीय सफलता नहीं प्राप्त की. हैदराबाद के ओवैसी भी 2017 में आने वाले हैं. दिल्ली राज्य वाले अरविन्द केजरीवाल भी अभी नहीं तो कभी भी उत्तरप्रदेश की तरफ निगाहें जमाये हैं. यहाँ का एक ख़ास शहरी वर्ग उनके स्वागत में उद्विग्न है. उनके विज्ञापन भी अक्सर हिन्दी और अंग्रेजी के समाचारपत्रों में शोभा बढाते रहते हैं. उत्तरप्रदेश में क्षेत्रीय इलेक्ट्रोनिक चैनलों में भी उनका विज्ञापन आता रहता है. अभी हाल में देश के प्रधान-सेवक के दो साल के कार्यकाल की उपलब्धियों को विज्ञापित करने में देश के लगभग एक हजार करोड़ को फूंक दिया गया. अब बात तेलंगाना के मुख्यमंत्री के इस विज्ञापन की, उ

साहब का "तोता"

................कलियुग में जम्बूद्वीप के भारतखंड में उत्तरप्रदेश नाम का एक राज्य था. वंशवाद के विरोध में एक ही परिवार की प्रमुखता वाली समाजवादी सरकार का शासन था. कलियुग के जिस काल की यह कहानी है, उस काल में कमजोर राजा के मजबूत सलाहकारों का युग था. "बाबू" टाइप के अधिकारी ही असली राजा थे, जो साहब कहलाते थे. उस राज्य में एक बंगाली प्रजाति का एक बादशाह जैसी शानोशौकत से जीने का शौकीन "बाबू" यानी साहब था. सत्ता की ताकत में उसे आदमी को पहचानने में दिक्कत आने लगी थी. उसने अपने घर और दफ्तर में आने-जाने वालों की फितरत को पहचानने के लिए एक "तोता" पाला. "तोता" विशिष्ट गुण वाला था. वो हर आने-जाने वाले को देखकर उसकी सबसे बड़ी खासियत के बारे में चिल्ला-चिल्लाकर साहब को सचेत कर देता था. इससे उन्हें जागरूक रहने में मदद मिलती थी. इस खामख्याली में उन्होंने आने-जाने वालों से रोत-टोक का बैरियर हटा दिया. लोग आते और तोते से अपना सर्टिफिकेट जारी करवा लेते. इस व्यवस्था में एक दिन एक समस्या खड़ी हो गयी. साहब के लिए चाँद-तारे और सारे लाने की व्यवस्था करने वाले
संसद में चिल्ल-पों Posted On May 11, 2012 Tags : . A A A  -अरविन्द त्रिपाठी आज एक बार फिर संसद हंगामे के भेंट चढ गयी. इसकी वजह संसद के अंदर मल-मूत्र की बदबू ना थी, वरन दलित-सम्मान और दलित-वोट-बैंक पर अधिकाधिक काबिज होने के लिए राजनेताओं की ऎसी गतिविधि थी जिसे विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकेल लगाने का प्रारम्भ है. वजह एक “कार्टून” है. देश को धार्मिक आधार पर साफ़-साफ़ बाँट चुके राजनेताओं ने समाज को जातीय आधार पर खेमेबंद करने के लिए राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है. उक्त हंगामाखेज कार्टून ना तो मोहम्मद  साहब पर था और ना ही हिन्दू देवी-देवताओं का था. पांच साल पहले छपी कक्षा-11 में नागरिक शास्त्र विषय की पुस्तक में छपे इस कार्टून को प्रकाशित किया गया था.  जिसमें आजादी के बाद संविधान के निर्माण में ज्यादा समय लगने से नाराज नेहरू जी को हाथ में हंटर लिए और घोंघे पर सवार बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर को दिखाया गया है. बाबा साहब पहली बार निशाने पर नहीं थे. अरुण शौरी की “वर्शिपिंग फ़ाल्स गाड” पुस्तक के प्रकाशित होने के बाद भी दलित सम्मान के प्रश्न पर देश-व्यापी हंगामा हु
जब लिखना और दिखना हो...... ....अरसे बाद फिर से ब्लॉग-मंच पर उपस्थित हुआ हूँ. वजह साफ़ है की जब विचारों की धारा सूख गयी सी लगती हो तो नया कुछ भी उत्पन्न नहीं हो पाता. मन पर यह व्यामोह भी हावी होता है की किसे और कितना लिखा जाए ???? फिर भी अवचेतन मन में चलनी वाली वैचारिक आंधियां कुछ बेहतरी की दिशा में काम करती ही रहती हैं. चलिए, फिर से एक नयी शुरुआत हो........ साफ़ मन और मष्तिष्क के साथ.......