जब लिखना और दिखना हो......
....अरसे बाद फिर से ब्लॉग-मंच पर उपस्थित हुआ हूँ.
वजह साफ़ है की जब विचारों की धारा सूख गयी सी लगती हो तो नया कुछ भी उत्पन्न नहीं हो पाता.
मन पर यह व्यामोह भी हावी होता है की किसे और कितना लिखा जाए ????
फिर भी अवचेतन मन में चलनी वाली वैचारिक आंधियां कुछ बेहतरी की दिशा में काम करती ही रहती हैं.
चलिए, फिर से एक नयी शुरुआत हो........
साफ़ मन और मष्तिष्क के साथ.......
....अरसे बाद फिर से ब्लॉग-मंच पर उपस्थित हुआ हूँ.
वजह साफ़ है की जब विचारों की धारा सूख गयी सी लगती हो तो नया कुछ भी उत्पन्न नहीं हो पाता.
मन पर यह व्यामोह भी हावी होता है की किसे और कितना लिखा जाए ????
फिर भी अवचेतन मन में चलनी वाली वैचारिक आंधियां कुछ बेहतरी की दिशा में काम करती ही रहती हैं.
चलिए, फिर से एक नयी शुरुआत हो........
साफ़ मन और मष्तिष्क के साथ.......
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