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Showing posts from November, 2011

कानपुर में न्यूज-24 चैनल के पत्रकार गुफ़रान नकवी का गिरफ़्तारी

कानपुर. हाल में फर्जी और कथित का आरोपी बनाकर दो पत्रकारों गुफ़रान नकवी और उसके कैमरामैन शिव वर्मा को गिरफ्तार किया गया. ये दोनों कानपुर के ग्वालटोली थाने में गिरफ्तार किये गए.तुलसी हॉस्पिटल के मालिक से वसूली का आरोप इसकी वजह बताया गया है. उनके पास से पांच अखबारों के परिचय पत्र और एक नेशनल चैनल न्यूज-२४ की आई.डी. सहित तमामों महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बरामद किये गए.        बात सिर्फ इतनी सी नहीं है. “पत्रकारिता के नाम पर उगाही”, ये एक ऎसी प्रवृत्ति का उदय और विकास है,जिससे नकवी जैसे तमाम नए-पुराने पत्रकार प्रभावित हैं. कारण नकवी भी इसी समाज का व्यक्ति है. और पत्रकारिता की चकाचौंध से इस ओर आये लोगों में से एक आम आदमी है. पत्रकार बनने वाला व्यक्ति अपने गुण-दोष कहाँ छोड़ कर आये ? सभी सांसारिक लोग हैं. ये मसला किसी नकवी की गिरफ्तारी से सुलझने वाला भी नहीं है. कमजोर आदमी जल्दी-से-जल्दी वो सब पाना चाहता है जिसे पाने में सफल कहलाने वालो ने तमाम रातें काली की हैं. जिन रातों की गणना संभव नहीं है. पत्रकारिता के कारण परिवार के विकास और निजी समाज के तमाम क्षण साझा नहीं कर सके. बदले में समाज द्व

दिल्ली, बाई-ट्रेन

दो-दिवसीय दिल्ली  की यात्रा से वापसी के समय पांच  घंटे की यात्रा के पन्द्रह घंटे में पूरी होने पर प्रमोद तिवारी जी द्वारा लिखा गया ये लेख याद आया. इसे मैं साभार उनके ब्लॉग से लिया है. शीघ्र ही मैं भी अपनी यात्रा का अनुभव आप सब से साझा करूँगा, तब तक इसका रसास्वादन करें. धन्यवाद . ..................................................................................................................................... मेरी दिल्ली जाने की तैयारी थी। न जाने कहाँ से मैने यह बात दुनिया लाल को बता दी। दुनिया लाल मेरे मित्र हैं। उन्होंने पूछा, 'काहे से जा रहे हो...?' मैंने बता दिया, बाई-ट्रेन। बस, फिर क्या था... पूरा इलाका जान गया कि मैं बाई-ट्रेन दिल्ली जा रहा हूँ। मैं दूध लेने निकला था। चौराहे पर पन्ना लाल पनवाड़ी के पास रुक गया। उन्होंने एक जोड़ा पान मेरी ओर बढ़ा दिया। मैं पान दबाकर आगे बढऩे ही वाला था कि वह बोले, 'भैया! सुना है, आप बाई-ट्रेन दिल्ली जा रहे हो।' मैने कहा, 'हाँ ! लेकिन तुम्हें कैसे पता ...?'  वह बोले 'दुनिया लाल आये थे।

टोपी और बन्दर

            एक पुरानी दंतकथा है. बचपन में शायद पंचतंत्र में पढ़ी थी. अब तो बचपन में ये सब पढ़ा नहीं जाता. शायद अब तो वैसा बचपन भी नहीं आता. उसमें भी मशीन आ घुसी है. मशीनी और वर्चुअल स्पीडी खेलों वाले खिलौने तथा कार्टून फ़िल्में  आ चुके हैं जो कामिक्स बुक्स को भी खा चुकी हैं, इन्होंने देशी खिलौनों और  देशी नैतिक कथाओं वाले साहित्य को चलन से हटा दिया है.              मैं  भी, क्या ले बैठा ?? चलिए कोई बात नहीं, आपको सीधे कथा  सुनाता हूँ. एक व्यापारी था. व्यापारी था तो कुछ बेचता भी होगा न. हाँ, वो टोपियाँ बेचता था. एक बार वो कई डिजाइन की टोपियाँ सैम्पल में लेकर जंगल के रास्ते किसी दूर के बाज़ार में जा रहा था.पैदल चलने के कारण हुयी  थकान से उसने एक घने पेड़ के नीचे थोड़ी देर आराम करने की सोंची. जल्दी ही उसे झपकी लग गयी. जब उठा तो उसने देखा की उसके झोले में रखी सभी टोपियाँ गायब थीं. इधर-उधर देखने पर उसे पता चला की बंदरों ने उसकी टोपियाँ पहन ली है.उसने उनसे विनती की, रोया, गिडगिडाया, चीखा-चिल्लाया. बंदरों ने भी उसकी हर नक़ल की , पर टोपियाँ नहीं लौटाईं. थक-हार कर उसने अपनी टोपी उतार कर जमीन में

पत्रकार प्रमोद तिवारी की फेसबुक और जीमेल आई.ड़ी. का पासवर्ड चोरी "इक आग लगा ली है, इक आग बुझाने में......"

                कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार ,कवि और कानपुर में अन्ना अनशन के समय के सबसे बड़े आन्दोलन स्थल के व्यूह्कार प्रमोद तिवारी के साथ एक हादसा घट गया है. आज की तकनीकी की दुनिया में उनकी कोई चूक उन्हें कितनी महेंगी पड़ेगी ये उन्हें उम्मीद न थी. पिछले दिनों जब वो कवि-सम्मलेन के सिलसिले में कानपुर से बाहर गए हुए थे तब ये घटना घटी. यद्यपि वो इंटरनेट की दुनिया को बनावटी और नकली दुनिया मानते हैं परन्तु इस दुनिया के द्वारा की गयी उनके साथ इस हसीन शरारत को लेकर वो काफी तनाव में हैं. वो सोच नहीं पा रहे हैं की उनके साथ ये और ऐसा हादसा क्यों , कैसे और किसने किया है ??               हुआ यूं की जब वो पिछले सप्ताह  कवि-सम्मलेन में कानपुर से बाहर गए हुए थे तो उस रात वो  मुझ सहित तमाम दोस्तों को देर रात आनलाइन दिखे. सभी जानते हैं की वो देर रात कम्प्युटर पर काम नहीं करते हैं. शक होने पर जब बात की गयी तो दूसरी तरफ से बात नहीं की गयी. दुसरे दिन भी सुबह बहुत जल्दी उनकी आई.डी. आनलाइन हो गयी. बात का जवाब फिर नहीं मिला. दिनभर की व्यस्तता के बाद शाम को जब बात हुयी तो उन्होंने बताया की शायद किसी ने उनका

देव दीपावली समिति की बैठक संपन्न

कानपुर. बनारस की तर्ज पर कानपुर में भी कार्तिक पूर्णिमा को भव्य रूप से मनाने की कानपुर नगर आयुक्त की कोशिश ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है. इस अवसर को भव्यतम रूप देने के लिए बनाई गई समिति की बैठक आज नगर निगम,सभागार में संपन्न हुयी. जिसमें प्रेसवार्ता के माध्यम से कार्यक्रम की रूपरेखा और उद्देश्य को स्पष्ट किया गया. गंगा के घाटों की सफाई और आम जनता के साथ सरकारी मशीनरी के सहयोग को बढाने की दिशा में बात की गयी. भगवान् शिव की नगरी कहलाने वाली काशी, वाराणसी में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा के सभी घाटों पर दीपदान और दीप-प्रज्ज्वलन किये जाने को विश्व में एक अलग तरह से जाना जाता है.कानपुर नगर आयुक्त आर. विक्रम सिंह ने बताया की वाराणसी में अपनी तैनाती के दौरान एक स्थानीय जोशीले युवक और एक संन्यासी की मदद से शुरू किया गया ये दीप प्रज्ज्वलन का अभियान अब पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना चुका है. कानपुर भी गंगा के तट पर बसा है तथा कानपुर में भी धर्म के प्रति पर्याप्त रूचि है. शहर में युवा शक्ति और धार्मिक व्यवसाइयों की मदद से ये अवसर शहर की शान बनने की क्षमता रखता है. इस अवसर पर