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कानपुर में न्यूज-24 चैनल के पत्रकार गुफ़रान नकवी का गिरफ़्तारी


कानपुर. हाल में फर्जी और कथित का आरोपी बनाकर दो पत्रकारों गुफ़रान नकवी और उसके कैमरामैन शिव वर्मा को गिरफ्तार किया गया. ये दोनों कानपुर के ग्वालटोली थाने में गिरफ्तार किये गए.तुलसी हॉस्पिटल के मालिक से वसूली का आरोप इसकी वजह बताया गया है. उनके पास से पांच अखबारों के परिचय पत्र और एक नेशनल चैनल न्यूज-२४ की आई.डी. सहित तमामों महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बरामद किये गए.
       बात सिर्फ इतनी सी नहीं है. “पत्रकारिता के नाम पर उगाही”, ये एक ऎसी प्रवृत्ति का उदय और विकास है,जिससे नकवी जैसे तमाम नए-पुराने पत्रकार प्रभावित हैं. कारण नकवी भी इसी समाज का व्यक्ति है. और पत्रकारिता की चकाचौंध से इस ओर आये लोगों में से एक आम आदमी है. पत्रकार बनने वाला व्यक्ति अपने गुण-दोष कहाँ छोड़ कर आये ? सभी सांसारिक लोग हैं. ये मसला किसी नकवी की गिरफ्तारी से सुलझने वाला भी नहीं है. कमजोर आदमी जल्दी-से-जल्दी वो सब पाना चाहता है जिसे पाने में सफल कहलाने वालो ने तमाम रातें काली की हैं. जिन रातों की गणना संभव नहीं है. पत्रकारिता के कारण परिवार के विकास और निजी समाज के तमाम क्षण साझा नहीं कर सके. बदले में समाज द्वारा दिए गए सम्मानस्वरूप कुछ पल ही उनके जीवन भर के संघर्ष का पारिश्रमिक या पारितोषिक नहीं हो सकता. परन्तु कमजोर आदमी को वो सम्मान नहीं “उगाही” लगती है, जो उसकी नासमझी और भूल है.  
       इस घटना के दो पहलू मैं देखता हूँ. पहला तो ये, नकवी की गिरफ्तारी की खबर  रिपोर्टिंग के स्तर पर “खबर का गलत प्रस्तुतिकरण” है. अगले दिन तमाम अखबारों में खबर थी की फर्जी पत्रकार की गिरफ्तारी और पिटाई. मेरा मानना है, कभी भी पत्रकार फर्जी नहीं होता. उसका काम पत्रकारिता के स्थान पर जब “कुछ और” हो जाता है तो वो फर्जीवाड़ा गैर-कानूनी है. जिसे हर हालत में गैर-कानूनी माना ही जाना चाहिए. इसकी जद में नकवी क्या कोई भी हो उसे क़ानून सज़ा तय करे. कहना ये है की खबर की प्रस्तुति ये होनी चाहिए- फर्जीवाड़ा करते पत्रकार को पीटा और गिरफ्तार किया गया. निश्चित ही वो पत्रकार है. उसकी समस्या बस इतनी निकली की जिस अखबार और चैनल के नाम पर वो काम कर रहा था उसने उसके फसने के बाद उसे पहचानने से इनकार कर दिया.ये मीडिया खासकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया की आज की सबसे बड़ी समस्या है. जिस नामी चैनल की आई.डी. लिए शहर में घूम रहे हैं कब उन्हें पहचानने से इनकार कर दें. हद तो तब हो जाती है जब साथ के ही पत्रकार बिरादरी के लोग भी हादसे या दुर्घटना के बाद अपने साथी मदद के बजाय अपने बेहतर प्रशासनिक संबंधों का फायदा उठाते हुए प्रस्तुत होते हैं.पी—सेवेन चैनल के कैमरामैन संतोष चौरसिया की सड़क दुर्घटना की मौत के बाद उसके साथी पत्रकारों में से ही कुछ लोग उस घटना के लिए जिम्मेदार ट्रक और ट्रक मालिक को थाने से बारी करवाने में लिप्त हो गए थे. तो साथियों, अगर चैनल या मालिक विपत्ति के समय नहीं पहचानता तो आप सभी तो एक दुसरे को ठीक से पहचानते हो.
      दूसरा पहलू ये है, मैं व्यक्तिगत तौर पर नकवी को इस अपराध का कम दोषी मानता हूँ.क्योंकि बहुत जरूरी है इस बात की तह पर जाना की उसके इस काम के करने के पीछे क्या वजह थी ? निस्संदेह धन आज सभी की जरूरत है. बताया जाता है की जिस चैनल न्यूज-२४ की आई.डी. उसके पास पाई गयी है उस चैनल में वो कानपुर ग्रामीण क्षेत्र का वो “स्ट्रिंगर” है. ये “स्ट्रिंगर” नाम का प्राणी आजकल पूरे देश में इलेक्ट्रोनिक मीडिया के उदय के साथ फल-फूल रहा है. तमामों नामी नेशनल स्तर के चैनलों में बहुत कम या शून्य पारिश्रमिक पर काम करने वाले ये लोग अपने साथ एक कैमरामैन रखते हैं या उसे भी ठेके पर काम दिए हुए हैं. तमामों माफिया टाइप के स्ट्रिंगर अपने बेहतर संबंधों के दम पर कई चैनलों की आई.डी. रखते हैं और उन्हें ठेके पर बांटते हैं. इसका पैसा वसूलते हैं. कहा जाता है की चैनलों में भी इस तरह क्षेत्र की बंटाई के लिए पैसा देना होता है. ऐसा भी हो सकता है की किसी शहर में किसी खास चैनल के कई स्ट्रिंगर भी हों. जिन्हें सबसे पहले खबर भेजने के आधार पर नियुक्त किया जाता है. बताया जाता है की न्यूज-२४ के मालिक के बड़े भाई और वरिष्ठ पत्रकार की मदद से उसे ये आई.डी. मिली थी, जिसकी कीमत वसूलने में नकवी लगा था.पर फंसने पर उन्होंने भी इसे पहचानने से इनकार कर दिया. अब उन वजहों को जानने पर जोर देना ही होगा की क्या वजह है की जब भी कोई पत्रकार किसी लूट, ह्त्या या फिर उगाही में पकड़ा जाता है तो इन्हीं के चैनल का नाम सामने आता है.
     ये इलेक्ट्रोनिक मीडिया में गिरावट का अजीम दौर है...जिसे मेरे साथी समझने का प्रयास करें और अपने चैनलों में अपनी स्थिति को और मजबूत करने के तौर पर लें, जिससे कोई दूसरा नकवी के हाल को न प्राप्त हो.मैंने बहुत पहले कानपुर के पत्रकारों में नर्सिंग होमों में उगाही की बात लिखी थी. नाम और स्थान नहीं बताया था, पर पाप की वृद्धि हुयी और कानपुर में बड़ा नाम रखे वाले तुलसी हॉस्पिटल में ये सामने आ ही गयी.  

Comments

  1. नजिरया तो शानदार है , आपका लेकिन इस नजरिये पर मेरी तरफ से भी दो सवाल है १ पहल सवाल तो यह की की आपको कथित स्ट्रिंगर में तमाम दोष दिखाई दिए लेकिन कानपूर की इस स्वास्थ मंडियों (कुकुरमुत्तो की तरह पैदा हुए नर्सिंग होम )में कोई दोष नज़र नहीं आया आपने कहा की आपने कानपूर के पत्रकारों द्वारा नर्सिंग होम से उगाही की बात लिखी थी लेकिन आपने ये नहीं बताया की इन पाक साफ़ नर्सिंग होम में उगाही किस लिए होती है आखिर उन्हें डर किस बात का है जो वो आपके कहे अनुसार पत्रकारों को पैसा दे देते है ! अब दूसरा सवाल और वो ये है की आप स्ट्रिंगर (संवादाता )को ऐसे पेश करा रहे है जैसे वो पत्रकार न होकर पत्रकारीता की नाजायज ओलाद है ! पाक साफ़ और पूर्ण निष्ठावान पत्रकारिता का ठेका तो वेतन भोगी पत्रकारों ने ही ले रक्खा हो को अरविन्द जी आप को कानपुर के पत्रकारों को गरियाना हो तो खूब गरियाइये लेकिन पुरे देश के स्ट्रिंगरो को मत उनके साथ जोडीये...आप की लेखनी को देख कर लगता है कही न कही आपके मासूम दिल को किसी टी.वी.पत्रकार (स्ट्रिंगर) ने कोई बहुत बड़ी चोट दी है ! कही भूल से अगर कोई बदजुबानी इस नाचीज़ से हो गयी हो तो छमा चाहता हू ...प्रणाम

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