Skip to main content

देव दीपावली समिति की बैठक संपन्न


कानपुर. बनारस की तर्ज पर कानपुर में भी कार्तिक पूर्णिमा को भव्य रूप से मनाने की कानपुर नगर आयुक्त की कोशिश ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है. इस अवसर को भव्यतम रूप देने के लिए बनाई गई समिति की बैठक आज नगर निगम,सभागार में संपन्न हुयी. जिसमें प्रेसवार्ता के माध्यम से कार्यक्रम की रूपरेखा और उद्देश्य को स्पष्ट किया गया. गंगा के घाटों की सफाई और आम जनता के साथ सरकारी मशीनरी के सहयोग को बढाने की दिशा में बात की गयी.
भगवान् शिव की नगरी कहलाने वाली काशी, वाराणसी में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा के सभी घाटों पर दीपदान और दीप-प्रज्ज्वलन किये जाने को विश्व में एक अलग तरह से जाना जाता है.कानपुर नगर आयुक्त आर. विक्रम सिंह ने बताया की वाराणसी में अपनी तैनाती के दौरान एक स्थानीय जोशीले युवक और एक संन्यासी की मदद से शुरू किया गया ये दीप प्रज्ज्वलन का अभियान अब पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना चुका है. कानपुर भी गंगा के तट पर बसा है तथा कानपुर में भी धर्म के प्रति पर्याप्त रूचि है. शहर में युवा शक्ति और धार्मिक व्यवसाइयों की मदद से ये अवसर शहर की शान बनने की क्षमता रखता है. इस अवसर पर श्री सिंह  ने बताया की केंद्रीय देव दीपावली,कानपुर नगर का गठन किया गया है. परमट के आनन्देश्वर मंदिर के महंत रमेश पूरी जी महराज को इस समिति का संरक्षक, अरुण पुरी जी महराज को अध्यक्ष बनाया गया है. इस समिति में कानपुर के सभी गंगा घाटों के चुने हुए लोग इस समिति में शामिल किये गए हैं. कानपुर नगर निगम के द्वारा आम जनता से अपील की गयी है शहरी जनता इस अवसर में बढ़-चढ़कर भाग ले. प्रशासन ने सभी घाटों की सफाई का काम आज से प्रारम्भ कर दिया है. इस समिति में गंगा से जुड़े पण्डे, मल्लाह,नाविक, पुजारी आदि लोगों को शामिल किया गया है. आज बैठक में प्रवीण शुक्ला, सुनीत पाण्डेय ,हरिओम पाण्डेय,राजीव शुक्ला,सुनील मांझी , मदनलाल भाटिया आदि उपस्थित रहे.

Comments

Popular posts from this blog

दशानन को पाती

  हे रावण! तुम्हें अपने  समर्थन में और प्रभु श्री राम के समर्थकों को खिझाने के लिए कानपुर और बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाक़ों में कही जाने वाली निम्न पंक्तियाँ तो याद ही होंगी- इक राम हते, इक रावन्ना।  बे छत्री, बे बामहन्ना।। उनने उनकी नार हरी। उनने उनकी नाश करी।। बात को बन गओ बातन्ना। तुलसी लिख गए पोथन्ना।।      1947 में देश को आज़ादी मिली और साथ में राष्ट्रनायक जैसे राजनेता भी मिले, जिनका अनुसरण और अनुकृति करना आदर्श माना जाता था। ऐसे माहौल में, कानपुर और बुंदेलखंड के इस परिक्षेत्र में ऐसे ही, एक नेता हुए- राम स्वरूप वर्मा। राजनीति के अपने विशेष तौर-तरीक़ों और दाँवों के साथ ही मज़बूत जातीय गणित के फलस्वरूप वो कई बार विधायक हुए और उन्होंने एक राजनीतिक दल भी बनाया। राम स्वरूप वर्मा ने उत्तर भारत में सबसे पहले रामायण और रावण के पुतला दहन का सार्वजनिक विरोध किया। कालांतर में दक्षिण भारत के राजनीतिक दल और बहुजन समाज पार्टी द्वारा उच्च जातीय सँवर्ग के विरोध में हुए उभार का पहला बीज राम स्वरूप वर्मा को ही जाना चाहिए। मेरे इस नज़रिए को देखेंगे तो इस क्षेत्र में राम म...

गयासुद्दीन गाजी के पोते थे पंडित जवाहर लाल नेहरू

    जम्मू-कश्मीर में आए महीनों हो गए थे, एक बात अक्सर दिमाग में खटकती थी कि अभी तक नेहरू के खानदान का कोई क्यों नहीं मिला, जबकि हमने किताबों में पढ़ा था कि वह कश्मीरी पंडित थे।  नाते- रिश्तेदार से लेकर दूरदराज तक में से कोई न कोई नेहरू खानदान का तो मिलना ही चाहिए था। नेहरू  राजवंश कि खोज में सियासत के पुराने खिलाडिय़ों से मिला लेकिन जानकारी के नाम पर मोतीलाल नेहरू  के पिता गंगाधर नेहरू का नाम ही सामने आया। अमर उजाला दफ्तर के नजदीक बहती तवी के किनारे  पहुंचकर एक दिन इसी बारे में सोच रहा था तो ख्याल आया कि जम्मू-कश्मीर वूमेन कमीशन की सचिव  हाफीजा मुज्जफर से मिला जाए, शायद वह कुछ मदद कर सके। अगले दिन जब आफिस से हाफीजा के  पास पहुंचा तो वह सवाल सुनकर चौंक गई। बोली पंडित जी आप पंडित नेहरू के वंश का पोस्टमार्टम करने  आए हैं क्या? कश्मीरी चाय का आर्डर देने के बाद वह अपने बुक रैक से एक किताब निकाली, वह थी रॉबर्ट  हार्डी एन्ड्रूज कि किताब "ए लैम्प फार इंडिया- द स्टोरी ऑफ मदाम पंडित।" उस किताब मे तथाकथित...

प्रेम न किया, तो क्या किया

     ..... "प्रेम" और "रिश्तों" के तमाम नाम और अंदाज हैं, ऐसा बहुत बार हुआ कि प्रेम और रिश्तों को कोई नाम देना संभव न हो सका. लाखों गीत, किस्से और ग्रन्थ लिखे, गाए और फिल्मों में दिखाए गए. इस विषय के इतने पहलू हैं कि लाखों-लाख बरस से लिखने वालों की न तो कलमें घिसीं और ना ही उनकी स्याही सूखी.        "प्रेम" विषय ही ऐसा है कि कभी पुराना नहीं होता. शायद ही कोई ऐसा जीवित व्यक्ति इस धरती पे हुआ हो, जिसके दिल में प्रेम की दस्तक न हुयी हो. ईश्वरीय अवतार भी पवित्र प्रेम को नकार न सके, यह इस भावना की व्यापकता का परिचायक है. उम्र और सामाजिक वर्जनाएं प्रेम की राह में रोड़ा नहीं बन पातीं, क्योंकि बंदिशें सदैव बाँध तोड़ कर सैलाब बन जाना चाहती हैं.     आज शशि कपूर और मौसमी चटर्जी अभिनीत और मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर का गाया हुआ हिन्दी फिल्म "स्वयंवर" के एक गीत सुन रहा था- "मुझे छू रही हैं, तेरी गर्म साँसें.....". इस गीत के मध्य में रफ़ी की आवाज में शशि कपूर गाते हैं कि - लबों से अगर तुम बुला न सको तो, निगाहों से तुम नाम लेकर बुला लो. जिसके ...