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Showing posts from October, 2011

लो आया खतो-किताबत का मौसम

     ........क्या ख़ाक इक्कीसवीं सदी आई है ? ज़माना आज भी नहीं बदला . कहते हैं की आदमी चाँद को पार कर मंगल सहित दुसरे ग्रहों में जाने और बसने की फिराक में है.अचानक चचा चकल्लसी बडबडाते हुए गली के कुन्ने से निकले. उनकी बातों में एक अजीब सा दंभ और दर्प था. ऐसा लगा की भले ही हम अब दीपावली में सौ रुपये के मिट्टी के ही बने गणेश-लक्ष्मी की पूजा क्यों न करने लगे हों, पर हैं पूरी तरह से पिछड़े हुए ही. हिम्मत करके टोंका तो वो फुलझडी जैसे फुसफुसाए और मुस्कराते हुए बोले क्या ख़ाक प्रोग्रेस की है तुम सबने ? तुम सबसे अच्छे तो हमारे जमाने थे.     मैं घबराते हुए बोला की ऐसा क्या जुलुम हो गया हमारे जमाने में ? कहीं ये कट्टो गिलहरी बनी श्वेता तिवारी को तो नहीं देख आये ? या फिर रा-वन फिल्म के बहुत तकनीकी तरह से बने होने से उसका भोजपुरी एडिशन न निकल पाने से बौराये हों.पर सोंच नहीं पाया तो डरते-सहमते फिर पूछने का साहस जुटाने लगा. तभी वो बोले की वाह वो भी क्या दिन थे जब हम खतोकिताबत करते थे. उस प्रेम लायक उम्र में हम कलम से कागज़ पर कलेजा निकाल कर रख देते थे. फिर बुरा हो कुरियर के जमाने का. चिट्ठी और ख

आज के परिप्रेक्ष्य में अन्ना आंदोलन और मेरे कन्फ्यूजन

दोस्तों, अभी-अभी मेरी मेमोरी लौटी है... सोच रहा हूँ जल्दी से शेअर कर लूं... जबरदस्त "कन्फ्यूज" हूँ. आप सभी इस कन्फ्यूजन को कम करने में मदद करें - कन्फ्यूजन १. अन्ना ने अनशन में कहा था की जनता के समर्थन से मुझे ऊर्जा मिलती है. पन्द्रह अक्टूबर को कहा की मुझे मौन से ऊर्जा मिलती है. अन्ना, सच-सच बताओ की ऊर्जा कहाँ से और कैसे मिलती है ? देखो , मजाक मत करो... देश का युवा बहुत सीरियस है तुम्हें लेकर . इसलिए सच बताओ.... बहुत कन्फ्यूज हूँ..... ......... कन्फ्यूजन २. अठारह अक्टूबर को टी.वी. देखकर जाना की टीम अन्ना राहुल से मिलने दिल्ली में. दूसरी तरफ कानपुर में भी इसी दिन टीम अन्ना के आगमन की बात कही गयी. अन्ना मौन टूटने के तत्काल बाद ये जरूर बताना की तुम्हारी टीम कौन सी है ??? मुझे तो लगा की ये टीम केजरीवाल थी , जो कानपुर आयी थी. जो अगले चुनाव में टिकट-विकट बांटने आयी थी. पोलिटिकल पार्टियों की तरह दौरा कर गयी या फिर डाक्टरों की तरह भ्रष्टाचार की नब्ज जांचने आयी थी. बहुत कन्फ्यूज हूँ..... कन्फ्यूजन ३. अरविन्द केजरीवाल ने कानपुर में हुयी प्रेस कांफ्रेंस में कहा

छोड़ आये हम "अन्ना"

आज कानपुर में अन्ना को छोड़ कर सभी थे..... वास्तव में इनमें अन्ना नहीं थे... अन्ना जैसा भी कोई नहीं था.. ये सभी अन्ना को छोड़कर ही तो आये थे.. ..... ....... आज अरविन्द केजरीवाल ने कानपुर में कहा की यदि कांग्रेस संसद के शीतकालीन सत्र में लोकपाल बिल लाती है तो उसका विरोध नहीं किया जाएगा. अब मामला जन-लोकपाल बिल की मांग का भी नहीं रहा. कैसा भी ..... कहीं से भी..... बस "चंद्र खिलौना लाओ" नहीं तो हम ऐसे ही सडकों पर फ़ैल जायेंगे. सोचो, देश सोचो, इनका मंतव्य जानो और सोचो........ इनका वास्तव में देश सुधारने का कोई इरादा नहीं है. आप सब भी तो कुछ सोंचो....... मेरा दिमाग तो आज जड़ हो गया है... देश को अपने इशारों पर नचाने वाले शूरमाओं बस अब बहुत हो गया.. जब सब हमें ही करना है तो हमारे हाल पर छोड़ दो.. तुम सब तो राजनारायण से भी बड़े विदूषक साबित हो रहे हो. खालिस जुमलेबाजी और शेरोशायरी से देश का निर्माण कैसे करोगे???? अब इस जागी जनता को और लूटने का ढूंग सही नहीं . जब राजनीति करनी नहीं तो उसकी बात भी ठीक नहीं... जो काम आता है वही करो तो ज्यादा ठीक होगा.... आगे तुम्हारी औ

कानपुर में अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के लुटेरों का राज-फाश

कानपुर में भी अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी  अनशन से हम-कदम करते हुए धरने-प्रदर्शन हुए थे.इस सब के बीच गांधी-प्रतिमा फूलबाग में शहर का सबसे ज्यादा आकर्षक और जन-प्रिय धरना हुआ. इसकी खासियत ये थी की शहर के कीई भी क्षेत्र में होने वाले धरना-प्रदर्शन  और मार्च का समापन यहीं होता था. प्रतिदिन दो दर्ज़न से अधिक ऐसे धरनाकारी  अपने जुलूस लेकर यहाँ आते रहे. पर क्या कहिये शहर में इण्डिया अगेंस्ट करप्शन नाम की कम्पनी के स्थानीय सी.ऐ.ओ. की  सक्रियता की? उन्होंने इस जन-आंदोलन को सहयोग करने की बजाय इसे लूटने की हरकतें की. एक ऐसा ही वाकया आप सभी से बांटना चाहता हूँ. कानपुर में पत्रकारपुरम में रोमी अरोड़ा नामक वरिष्ठ पत्रकार के पति राजेश अरोड़ा ने आंदोलन के अगुआ प्रमोद तिवारी के लिखे हुए पर्चे छपवाने का जिम्मा  लिया. वो पर्चे अपने छात्र जीवन में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने वाले आजकल टाइगर इलेक्ट्रोनिक्स चला रहे सतीश सबीकी  के धन से छपवाए गए.इन पर्चों पर राजेश अरोड़ा का  नाम  छपवाया गया था. ये पर्चे इन सी.ऐ.ओ. महोदय को कार्यकर्त्ता की भांति बांटने को दिए गए थे क्योंकि नेतृत्व की क्षमत

कानपुर आई.ऐ.सी.यूनिट या मज़ाक

कानपुर. अन्ना के भ्रष्टाचार के विरोध की मुहिम  देशव्यापी और विचारवान बनाने में कानपुर का योगदान है. "मैं हूँ अन्ना"और "हम हैं अन्ना" की मुहिम को इस बार देश के समक्ष लाने का काम कानपुर के आंदोलन कारियों में से एक प्रमोद तिवारी  के द्वारा किया गया.पूर्व में पांच अप्रैल के अन्ना आंदोलन में हुए इण्डिया अगेंस्ट करप्शन के धरने में कुल मौजूद लोगों में से सबसे अधिक संख्या आई.आई.टी. के छात्रों की थी. उनकी ये हताशा थी  साठ लाख से अधिक की आबादी के शहर में से कोई ठोस नेतृत्व और कार्यक्रम का जन्म नहीं हुआ.तब के गांधी प्रतिमा के धरने का मैं गवाह था जिसमें नाम और प्रेस रिलीज जारी करने वाले संगठनों  की संख्या पैंतीस से अधिक थी जिनमें सबसे कम लोग इण्डिया अगेंस्ट करप्शन  के स्वघोषित जिला संयोजक कहलाने वाले व्यक्ति अशोक जैन के पास थे.तब मुद्दा बडा था. अन्ना का नाम बड़ा था. सब भ्रष्टाचार के विरोध में था. इसलिए आंदोलन के हित में इस कमी को छुपाया गया.शहर के आंदोलन कारी और समाज सेवी छवि के लोगों ने इस कमी को महसूस किया. और सोचा कि अगली बार के संभावित आंदोलन में इस निर्वात को भरने का प्रय