कानपुर में भी अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी अनशन से हम-कदम करते हुए धरने-प्रदर्शन हुए थे.इस सब के बीच गांधी-प्रतिमा फूलबाग में शहर का सबसे ज्यादा आकर्षक और जन-प्रिय धरना हुआ. इसकी खासियत ये थी की शहर के कीई भी क्षेत्र में होने वाले धरना-प्रदर्शन और मार्च का समापन यहीं होता था. प्रतिदिन दो दर्ज़न से अधिक ऐसे धरनाकारी अपने जुलूस लेकर यहाँ आते रहे.
पर क्या कहिये शहर में इण्डिया अगेंस्ट करप्शन नाम की कम्पनी के स्थानीय सी.ऐ.ओ. की सक्रियता की? उन्होंने इस जन-आंदोलन को सहयोग करने की बजाय इसे लूटने की हरकतें की. एक ऐसा ही वाकया आप सभी से बांटना चाहता हूँ.
कानपुर में पत्रकारपुरम में रोमी अरोड़ा नामक वरिष्ठ पत्रकार के पति राजेश अरोड़ा ने आंदोलन के अगुआ प्रमोद तिवारी के लिखे हुए पर्चे छपवाने का जिम्मा लिया. वो पर्चे अपने छात्र जीवन में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने वाले आजकल टाइगर इलेक्ट्रोनिक्स चला रहे सतीश सबीकी के धन से छपवाए गए.इन पर्चों पर राजेश अरोड़ा का नाम छपवाया गया था.
ये पर्चे इन सी.ऐ.ओ. महोदय को कार्यकर्त्ता की भांति बांटने को दिए गए थे क्योंकि नेतृत्व की क्षमता इनमें नहीं दिख रही थी. इन्होने अपनी कमजोर मानसिक स्थिति को दर्शाते हुए उन्हीं प्रमोद तिवारी को पर्चे ये कह कर दिए की मैंने छपवाए हैं. यही पर्चे शहर में इनके सहयोगियों ने इनके नाम से बांटे. जिनमें वो लोग भी थे जो अपना कोई वजूद नहीं रखते हैं.आंदोलन की मुख्या धारा में आने की अपेक्षा इनका ऐसा चरित्र सामने आना अति-आवश्यक हो गया है. संभव है की कल को कानपुर आने वाले अन्ना के टीम के लोगों से लोग पूछ बैठें की जो आंदोलन कानपुर में हुआ था उसके कथित नेताओं के पास टेंट-तम्बू, माइक, दरी आदि की पर्चियां है क्या ????यदि नहीं हैं तो असली आंदोलनकारी कहाँ हैं ????
अन्ना का ये भ्रष्टाचार विरोधी राष्ट्र निर्माण का आंदोलन है न की कोरी छपास की राजनीति करने वालों के जमावडा को सफल करने का खेल. ये कोई सत्ता पाने का चोर रास्ता नहीं है जो जनता के ठुकराए हुए दलों के नेता टाइप के लोग मंच पर आसीन हो जाएँ.
पर क्या कहिये शहर में इण्डिया अगेंस्ट करप्शन नाम की कम्पनी के स्थानीय सी.ऐ.ओ. की सक्रियता की? उन्होंने इस जन-आंदोलन को सहयोग करने की बजाय इसे लूटने की हरकतें की. एक ऐसा ही वाकया आप सभी से बांटना चाहता हूँ.
कानपुर में पत्रकारपुरम में रोमी अरोड़ा नामक वरिष्ठ पत्रकार के पति राजेश अरोड़ा ने आंदोलन के अगुआ प्रमोद तिवारी के लिखे हुए पर्चे छपवाने का जिम्मा लिया. वो पर्चे अपने छात्र जीवन में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने वाले आजकल टाइगर इलेक्ट्रोनिक्स चला रहे सतीश सबीकी के धन से छपवाए गए.इन पर्चों पर राजेश अरोड़ा का नाम छपवाया गया था.
ये पर्चे इन सी.ऐ.ओ. महोदय को कार्यकर्त्ता की भांति बांटने को दिए गए थे क्योंकि नेतृत्व की क्षमता इनमें नहीं दिख रही थी. इन्होने अपनी कमजोर मानसिक स्थिति को दर्शाते हुए उन्हीं प्रमोद तिवारी को पर्चे ये कह कर दिए की मैंने छपवाए हैं. यही पर्चे शहर में इनके सहयोगियों ने इनके नाम से बांटे. जिनमें वो लोग भी थे जो अपना कोई वजूद नहीं रखते हैं.आंदोलन की मुख्या धारा में आने की अपेक्षा इनका ऐसा चरित्र सामने आना अति-आवश्यक हो गया है. संभव है की कल को कानपुर आने वाले अन्ना के टीम के लोगों से लोग पूछ बैठें की जो आंदोलन कानपुर में हुआ था उसके कथित नेताओं के पास टेंट-तम्बू, माइक, दरी आदि की पर्चियां है क्या ????यदि नहीं हैं तो असली आंदोलनकारी कहाँ हैं ????
अन्ना का ये भ्रष्टाचार विरोधी राष्ट्र निर्माण का आंदोलन है न की कोरी छपास की राजनीति करने वालों के जमावडा को सफल करने का खेल. ये कोई सत्ता पाने का चोर रास्ता नहीं है जो जनता के ठुकराए हुए दलों के नेता टाइप के लोग मंच पर आसीन हो जाएँ.
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