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Showing posts from March, 2012

गुंडा, पत्रकार, पुलिस और अवैध उगाही

            भारत देश में बड़ी और छोटी गाड़ियों को फाइनेंस से खरीदना कोई जुर्म है क्या ?? आज देश भर में आसान किस्तों पर ऋण देने और दिलाने वाले सक्रिय हैं. सरकारी और गैर-सरकारी सभी प्रकार के बैंक और उनके दलाल इस काम में लगे हैं. इसके बावजूद अपने देश में इसके बाद भी माइक्रो फाइनेंसिंग की बहुत कमजोर स्थिति है. सरकार बनाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दल अक्सर ऋण माफी का वायदा करते हैं. उत्तर प्रदेश को पुत्तर प्रदेश बनाने के लिए इस बार मुलायम सिंह यादव ने भी पचास हज़ार से कम के सभी कृषि ऋण माफ करने का वायदा किया था. जनता ने बेरोजगारी भत्ता की ही तरह इस वायदे को भी हाथो-हाथ लिया और समाजवादी पार्टी के गुंडा पार्टी के इतिहास होने के बावजूद पूर्ण बहुमत दिलाने में कोई गुरेज नहीं की. पर बैंकों में घटती भीड़ और सेवायोजन कार्यालयों में बढती भीड़ में सह-सम्बन्ध खोजने की जरूरत है. इसके विपरीत बैंकों ने वसूली के नाम पर “वसूली गुरूओं” को सक्रिय कर दिया है, जो बिना किसी नियम-क़ानून और अधिकार के सड़क पर चलती गाड़ियों को खींचने का काम पुलिस और मीडिया में बड़े बैनर के नाम पर काम करने वाले दलाल टाइप के चिंटुओं क

युवाओं के बहाने खुद का भविष्य बनाने में मस्त ‘दलाल’

    कानपुर छात्र-छात्राओं के सुनहरे भविष्य के निर्माण के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं कि तैयारी कराने के केंद्र के रूप में देश-भर में विख्यात हो चुका है. कानपुर में आई. ई. टी. और एच. बी. टी. आई. सहित बीस से अधिक इंजीनियरिंग संस्थानों और गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कालेज सहित तीन मेडिकल कालेज हैं. हाल में पाँच से अधिक एम.बी.ए. कालेज भी उत्तर प्रदेश प्राविधिक शिक्षा विभाग से संबद्ध हो चुके हैं. देश भर से लगभग बीस से पच्चीस हज़ार प्रतियोगियों को यहाँ के कोचिंग संस्थान तैयारी करवाते हैं. छह से आठ घंटे की कोचिंग में पढाई और उसके बाद घर पर आठ-दस घंटे कि तैयारी के बाद इन युवाओं को अपने भविष्य को सुनहरा बनाने वाले संस्थानों में प्रवेश मिल पाता है. किन्तु अच्छी रैंकिंग ना पा सकने वालों कि बड़ी संख्या के कारण एक खास वर्ग लाभ उठाता है जो दलाली से शुरू हुआ था और अब कोचिंग संचालक और   संस्थान चलने वाला भी बन चुका है. इस तरह युवाओं में अपने सपनों को पूरा करने भारी कीमत उनके अभिभावक इस दलालों को अदा करते हैं. जिसकी बदौलत ये लगातार उन्नति करते जा रहे हैं. पहले दलाली कहा जाने वाला ये व्यवसाय अब कंसल

मीडिया की पैदाइश है निर्मल बाबा

        टेलीविजन सहित तमाम संचार माध्यमों का मूल काम समाज में फैली कुरीतियों और बुराइयों को उजागर करना होता है. जिस से भोली-भाली आम जनता इन सब के चक्कर में ना पड़े.जनता की मेहनत की कमाई को लूटे जाने से बचाया जा सके. झूठे वादे और भ्रम फ़ैलाने वाले विज्ञापन के कार्यक्रमों पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए केंद्र की सरकार के द्वारा कई   नियम और विनियम बनाए गए है. परन्तु इनकी उपयोगिता के अति महत्वपूर्ण होने के बावजूद   प्रभाविता का असर प्रयोग ना किये जाने के कारण नहीं देखा जाता है.        तमामों भ्रामक विज्ञापन दृश्य और श्रव्य संचार माध्यमों के साधनों में प्रसारित हो रहे हैं. उनमें से एक है ये किन्ही " निर्मल बाबा का दरबार" ..... देश भर में विख्यात दूसरे सामान्य और विशिष्ट संतों के उलट ये खुद में ही देवत्व का दावा   करते हैं. उनका कहना है की जिस भी व्यक्ति में निष्ठा के साह समर्पण किया जाए उसमें भगवान का अंश यानी देवत्व आ जाता है. शादी-ब्याह में प्रयोग की जानी वाली भव्य कुर्सी में बैठने के   शौकीन ये निर्मल बाबा किसी एयरकंडीशंड हाल में बैठे कुछ लोगों को बिना उनका अस

अविरल-निर्मल गंगा के लिए एक और निगमानंद

     गंगा को प्रदूषण मुक्त करने और कुंभ क्षेत्र को प्रदूषण से मुक्त करने की मांग को लेकर अनशन कर रहे मातृसदन के स्वामी निगमानंद की 2011 में मौत तक हो चुकी है। इतना ही नहीं , मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद भी नवंबर 2011 में गंगा को खनन मुक्त करने की मांग को लेकर लंबा अनशन कर चुके हैं। अवैध खनन रोकने की मांग को लेकर निगमानंद पूरे 114 दिनों तक मृत्युपर्यंत अनशन पर रहे , फिर भी उनकी मांग सुनी नहीं गई। अब बारी देश के महान तकनीकी विशेषज्ञ आई.आई.टी. कानपुर में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के संस्थापक संत ज्ञानस्वरूप सानन्द कहलाने वाले पर्यावरणविद प्रो. जी. डी. अग्रवाल के आमरण अनशन की है. जिसकी अनदेखी केंद्र की सरकार कर रही है. सात मार्च से उन्होंने जल भी त्याग दिया है. अस्सी से अधिक की आयु में बिना जल के जीवन की आशा नहीं रह जाती है. उनके साथी राजेन्द्र सिंह, रवि बोपारा और प्रो. राशिद हयात सिद्दीकी ने राष्ट्रीय गंगा बेसिन ऑथोरिटी की अनुपयोगिता और गंगा की दशा में सुधार के लिए जारी श्री अग्रवाल के “गंगा तपस्या” की निरंतर  उपेक्षा का आरोप

क्या राजनीति का गुण्डाकरण रुकेगा ??

                 राजनीति और सामाजिक जीवन में शुचिता के तमाम प्रयासों की बहस के बीच अंततः उत्तर प्रदेश में एक बार फिर में समाजवादी पार्टी की सरकार बन गयी है. इस दल की सबसे बड़ी कमी आपराधिक तत्वों को बढ़ावा देने की बतायी जाती रही है. समस्त विरोधी दलों के मुख्य वक्ताओं का सीधा आरोप यह रहा है की यह दल समाजवादी नहीं अपराधवादी पार्टी है.इस चुनाव के पूर्व विख्यात समाजसेवी अन्ना हजारे ने सभी प्रमुख दलों के प्रमुखों को अपराधियों को चुनाव में प्रत्याशी ना बनाए जाने के लिए एक पत्र लिखा था. यह राजनीति में अपराधी तत्वों के घुस जाने और रम जाने की पहली चिंता नहीं है. इसके पहले भी देश में कई बार इस मुद्दे पर गहन विचार किया गया है.उत्तर प्रदेश की राजनीतिक घटनाक्रमों पर नजर रखने वालों के मनो-मस्तिष्क में  रामशरण दास और मायावती का “गुंडा-गुंडी प्रकरण” अभी भी ताज़ा है. दूरदर्शन में नलिनी सिंह की एंकरिंग में चल रहे सीधे प्रसारण में उठा विवाद कई दिनों तक अखबारों की सुर्खियाँ रहा था. ‘राजनीति के अपराधीकरण’ और ‘अपराधियों के राजनीतिकरण’ से ज्यादा गंभीर ‘गुण्डों के राजनीतिकरण’ का मुद्दा युवा मुख्

एक अदद क्रान्ति को तरसता देश

दिलीप कुमार खून को आसमान पर उछाल कर जोर से चिल्ला रहे थे, "हम इस खून से आसमान पे इन्कलाब लिख देंगे..... क्रान्ति लिख देंगे......"... तालियों की गडगडाहट के साथ "हीर पैलेस" के परदे पर सिक्कों की बौछार...... याद आ गयी ये फ़िल्मी क्रान्ति. ..... ....... मैं नहीं एक "लाल क्रान्ति" के समर्थक आज बोले इस देश में कोई क्रान्ति अब नहीं हो सकती. वो बेलौस बोले जा रहे थे,......अब क्या कभी नहीं हुयी है.... मैंने कहा क्या बात करते हो दादा ???? अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रान्ति याद करो !!! लगता है, सब भूल गए हो .......उसके बाद गांधी की क्रान्ति के बदौलत आज तुम्हारी राजनीतिक और आर्थिक आधार बराबर करने वाली वाली साम्यवादी क्रान्ति हुयी है.... इनके बाद जे. पी. का आन्दोलन और सम्पूर्ण क्रान्ति का आह्वान क्या कम क्रान्ति थी ???? .....बस फिर क्या था??? दादा हत्थे से उखाड़ते हुए बोले - माना की बंगाल सहित तमाम देश में हमारा लाल रंग कमजोर और फीका पड़ा है पर इसका ये मतलब नहीं की अब तुम जो कहेगा हम उसको मान ही लेगा.... तुम क्या जानो क्रान्ति??? फ्रांस में हुयी थी

गब्बर सिंह सपने में आये

    आज अलसुबह एक सपना देखा. कहते हैं सुबह का सपना सच हो जाता है, ये सोंचकर सारा दिन परेशान रहा. पत्नी के बार-बार परेशानी का कारण पूछने पर मैंने बताया ,आज गब्बर सिंह सपने में आया था. वास्तव में ' गब्बर ' बहुत परेशान था. शोले की तरह ही मुझसे बार-बार पूछने लगा -"कब है होली ? कब है होली ??" मैंने कहा ," क्या गब्बर सिंह जी ! हर साल एक ही बात पूछा करते हो ! और दूसरे त्यौहार कभी नहीं पूछते हो ! किसी कंपनी का जूता भी अगर ख रीद लेते तो एक कैलेण्डर मिल जाता. मुफ्तखोरी की भी हद है. क्या करोगे इत्ता पैसा और इत्ता अनाज ??"      अब गब्बर ने तुनककर कहा , " चिरकुट लेखक, तुम भी ना बस , बाल की खाल निकालते रहते हो ???  अभी भी रामगढ़ की पहाडियों में रह रहा हूँ. पत्थरों में कील तक तो गड़ती नहीं , जो कैलेण्डर के लिए जूते खरीद लाऊँ... अब तुमसे क्या छिपाना, मैं वास्तव में   6 मार्च की मतगणना का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा हूँ. तुम्हें क्या पता !! कालिया और साम्भा के चेलों के चेले मुन्ना बजरंगी , अतीक , अखिलेश सिंह,ब्रजेश सिंह, राजा भैया और अंसारी जैसे ना जाने कितने