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Showing posts from December, 2022

तेरा क्या होगा "कटप्पा"

 ...... देश में शायद ही कोई होगा जिसने बाहुबली सीरीज की दोनों फ़िल्मों में से एक भी न देखी होगी और उसके कैरेक्टर "कटप्पा" को न जानता हो. वो एक वीर और साहसी योद्धा था, जो राज-सिंहासन से बंधा हुआ था. तमाम सक्षमता के बावजूद उसकी खुद की कोई महत्वाकांक्षा न थी. राजा के आदेश को पालन के लिए अपने प्रिय भांजे की हत्या जैसा जघन्य कृत्य करने में उसने सेकण्ड का भी समय न लगाया था. राजनीति को "कटप्पा" बहुत भाते हैं, जिसके पास खुद की इच्छा ना हो और राजगद्दी के लिए सबसे ज्यादा समर्पण हो. प्रभु राम के लिए बिना तर्क-वितर्क किये सर्वस्व न्योछावर करने का समर्पण रखने वाले प्रभु हनुमान, महाभारत काल में भीष्म पितामह ऐसी ही भूमिका में रहे हैं. आधुनिक राजनीति भी इस तरह के चरित्रों से भरी पड़ी है, जिनके बिना राज और दल संचालित किया जा सकना मुमकिन नहीं रहा है. ऐसा किरदार खोजना और उससे काम लेना भी एक चुनौती ही है. हाल में , प्रदेश के एक राजनीतिक दल के मुखिया के न रहने के बाद पारिवारिक एका हो गया है और मुखिया जी के "कटप्पा" ने उनके "बेटाजी" में मुखिया जी की छवि खोज कर कटप्प

प्रेम न किया, तो क्या किया

     ..... "प्रेम" और "रिश्तों" के तमाम नाम और अंदाज हैं, ऐसा बहुत बार हुआ कि प्रेम और रिश्तों को कोई नाम देना संभव न हो सका. लाखों गीत, किस्से और ग्रन्थ लिखे, गाए और फिल्मों में दिखाए गए. इस विषय के इतने पहलू हैं कि लाखों-लाख बरस से लिखने वालों की न तो कलमें घिसीं और ना ही उनकी स्याही सूखी.        "प्रेम" विषय ही ऐसा है कि कभी पुराना नहीं होता. शायद ही कोई ऐसा जीवित व्यक्ति इस धरती पे हुआ हो, जिसके दिल में प्रेम की दस्तक न हुयी हो. ईश्वरीय अवतार भी पवित्र प्रेम को नकार न सके, यह इस भावना की व्यापकता का परिचायक है. उम्र और सामाजिक वर्जनाएं प्रेम की राह में रोड़ा नहीं बन पातीं, क्योंकि बंदिशें सदैव बाँध तोड़ कर सैलाब बन जाना चाहती हैं.     आज शशि कपूर और मौसमी चटर्जी अभिनीत और मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर का गाया हुआ हिन्दी फिल्म "स्वयंवर" के एक गीत सुन रहा था- "मुझे छू रही हैं, तेरी गर्म साँसें.....". इस गीत के मध्य में रफ़ी की आवाज में शशि कपूर गाते हैं कि - लबों से अगर तुम बुला न सको तो, निगाहों से तुम नाम लेकर बुला लो. जिसके