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Showing posts from October, 2018

अहम का वहम है क्या??

हम और हमारा अहम एक तरफ़ और जीवन की वास्तविकताएँ दूसरी तरफ़। अपने इस "अहम" को 'वहम" कहें तो ज़्यादा ठीक होगा, क्योंकि जीवन के प्रत्येक कार्य, उसके कारण और परिणाम में हमारी भूमिका केवल दर्शनार्थी जैसी ही होती है। ईश्वर और दर्शन के व्याख्याता और हम जैसे क्षुद्र प्राणी भी इसी अहम के वहम में जी रहे हैं। आज आम आदमी को मोह-त्याग, तपस्या और विरक्ति की सीख देने वाले विद्वान भी मोटी फ़ीस वसूलने के बाद ही यह ज्ञान दे पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में एक भोला-भाला आदमी, जिसका लक्ष्य सनमार्ग की खोज करनी है, किस पर, क्यों और कैसे भरोसा करे? यह स्थिति तब और भी ख़तरनाक हो रही है जब अहम के वहम में फँसे लोगों को मार्ग दिखाने का भ्रम रखने वाले लोगों का असली और फ़र्ज़ी रूप सामने आता जा रहा हो।  तो जीवन ख़ुद के बनाए प्रश्न-व्यूह और आवरण से उबरने का नाम है, नाकि किसी अतृप्त और व्यामोह में फँसे व्यक्ति के अनुसरण की भेड़-चाल का।

मुफ़्त का इंटरनेट और किशोर मन

भारत ठहरा अनेक धर्मों, बोलियों और विविध वैशिष्ट्य वाला रंग-रंगीला परजातंतर, जिसमें सबसे अधिक बाशिंदे किशोरवय के हैं। किशोर वय में मनोमस्तिष्क में तमाम विचार बादल और तूफ़ान से भी तेज़ी से आते हैं। वह कभी रहा होगा पीपल के नीचे बैठा चुपचाप, पर आज उपग्रह के माध्यम से आने वाले द्रुतगामी अन्तर्जाल (इंटरनेट) ने किशोर वय को असीम उड़ान दी है। साथ ही, एक ऐसा व्यामोह का मायाजाल भी दिया, जिससे निकलना उसके वश में नहीं दीखता। अब तो पहले जैसे काका-मामा भी नहीं मिलते तो सगे होने या नहीं होने के फेर से दूर घरेलू और नज़दीकी रिश्तेदारों से ज़्यादा प्रभावी तरीक़े से संरक्षण और मार्ग-निर्देशन किया करते थे। आज की इस जिज्ञासु पीढ़ी के लिए यह अन्तर्जाल उसकी ज़रूरत भी है, तो समस्या भी बन रहा है। अपने स्कूली दिनों में हमारी पीढ़ी के लोग “विज्ञान-वरदान या विनाश” विषय जब भी निबंध लिखते थे, तो शायद सोंच पाए थे कि आज के समय तक आते-आते ज्ञान और विज्ञान का क्या रूप और प्रभाव होगा? ईमानदारी से मानिए, तो आज के समय में विज्ञान का जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आने वाले प्रभाव को मापना या कहिए की विज्ञान के हमले के प्र