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मुफ़्त का इंटरनेट और किशोर मन

भारत ठहरा अनेक धर्मों, बोलियों और विविध वैशिष्ट्य वाला रंग-रंगीला परजातंतर, जिसमें सबसे अधिक बाशिंदे किशोरवय के हैं। किशोर वय में मनोमस्तिष्क में तमाम विचार बादल और तूफ़ान से भी तेज़ी से आते हैं। वह कभी रहा होगा पीपल के नीचे बैठा चुपचाप, पर आज उपग्रह के माध्यम से आने वाले द्रुतगामी अन्तर्जाल (इंटरनेट) ने किशोर वय को असीम उड़ान दी है। साथ ही, एक ऐसा व्यामोह का मायाजाल भी दिया, जिससे निकलना उसके वश में नहीं दीखता। अब तो पहले जैसे काका-मामा भी नहीं मिलते तो सगे होने या नहीं होने के फेर से दूर घरेलू और नज़दीकी रिश्तेदारों से ज़्यादा प्रभावी तरीक़े से संरक्षण और मार्ग-निर्देशन किया करते थे। आज की इस जिज्ञासु पीढ़ी के लिए यह अन्तर्जाल उसकी ज़रूरत भी है, तो समस्या भी बन रहा है।
अपने स्कूली दिनों में हमारी पीढ़ी के लोग “विज्ञान-वरदान या विनाश” विषय जब भी निबंध लिखते थे, तो शायद सोंच पाए थे कि आज के समय तक आते-आते ज्ञान और विज्ञान का क्या रूप और प्रभाव होगा? ईमानदारी से मानिए, तो आज के समय में विज्ञान का जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आने वाले प्रभाव को मापना या कहिए की विज्ञान के हमले के प्रति हम सब कभी भी इतना अधिक प्रभावी जानकार नहीं हो सके थे। आज ऐसी बहुत से शोध और प्रयोग जारी हैं, जिनका विचार भी विगत सदी में नहीं किया जा रहा था। इसे मानने में कतई गुरेज़ नहीं किया जाना चाहिए कि आज का किशोर और युवा पीढ़ी पिछली सदी के अपनी उम्र के मानसिक स्तर से काफ़ी उन्नत क़िस्म का है।
वास्तव में, विज्ञान के तकनीकी प्रसार ने आज दुनिया में सबसे ज़्यादा जिन्हें प्रभावित किया है- वो किशोर हैं। असल में यही तो वो उम्र होती है जब बालापन से उबरे प्रत्येक बच्चे को लगता है कि उसके शरीर असीम ताक़त और समझ विकसित हो रही है। उसे अपने विवेक और सामर्थ्य पर भी गुमान होना प्रारम्भ होता है। ज्ञान और विज्ञान इस आयुवर्ग में सबसे अधिक प्रभाव डालता है। स्कूल और समाज में नवीन और आधुनिक तकनीक की जानकारी और उसके प्रति आकर्षण इसी दौरान होता है। दुनिया की प्रत्येक बात और रहस्य पर से पर्दा उठाने की जिज्ञासा का कीड़ा बड़ा होकर डायनासोर हो चुका होता है। ऐसे में परिवार के संरक्षण और निर्देशन की अत्यधिक आवश्यकता होती है, ताकि तकनीकी मदद अर्जित ज्ञान का सदुपयोग किया जा सके।
विगत वर्षों में इंटरनेट की सुविधा-सम्पन्न स्मार्ट फ़ोन का प्रयोग आम बात हो गया है, विशेषकर युवा और किशोर पीढ़ी में इसके प्रति आकर्षण में तेज़ी आयी है। शहरी और ग्रामीण खाँचे के बंधन को इसने तोड़ दिया है। सूचनाओं की बाढ़ और तूफ़ान ने स्मार्ट-फ़ोन के उपभोक्ता-वर्ग को पूर्व निर्धारित मान्यताओं और परंपराओं की उपादेयता के प्रति विमुख किया है। आज इंटरनेट ख़ुद ही शिक्षक की भूमिका में है। सबसे ख़तरनाक पहलू यह है कि आज के दौर में जीवन की आपा-धापी में व्यस्त परिवार और अभिभावक किशोर पीढ़ी से सतत सम्पर्क स्थापित नहीं कर पा रहे हैं, जिससे उन्हें मिली उड़ान को संतुलित नहीं किया जा पा रहा है। हाल में, देश की तमाम टेलीकाम कम्पनियों ने इंटरनेट डाटा की दर को अत्यधिक कम या लगभग शून्य कर दिया है। किशोरों का ब्लू-हवेल जैसे जानलेवा खेलों के जाल में फँसना और अपनी जान गँवा देने के क़िस्से अब आम हो गए हैं। तमाम विदेशी ताक़तें हमारी इसी किशोर पीढ़ी के कोमल मन में पोर्न वेबसाइटों के माध्यम से संस्कारहीन और मेधाहीन बनाने में तुली हैं। ज्ञान-विज्ञान का सटीक उपयोग हमारी आवश्यकता है नाकि अनियंत्रित दुरुपयोग। समाज और सरकार को मुफ़्त के इंटरनेट के माध्यम से किशोर पीढ़ी में फैले अपसंस्कार के दीमक को समाप्त करने की पहल अत्यावश्यक हो गयी है वरना इसके दुष्परिणाम अत्यंत घातक होंगे। इंटरनेट का मुफ़्त का डाटा भविष्य के सृजन में घातक साबित हो सकता है।
https://www.redeyestimes.com/internet-teenagers-mind-story-by-arvind-tripathi-kanpur/

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