................कलियुग में जम्बूद्वीप के भारतखंड में उत्तरप्रदेश नाम का एक राज्य था.
वंशवाद के विरोध में एक ही परिवार की प्रमुखता वाली समाजवादी सरकार का शासन था.
कलियुग के जिस काल की यह कहानी है, उस काल में कमजोर राजा के मजबूत सलाहकारों का युग था.
"बाबू" टाइप के अधिकारी ही असली राजा थे, जो साहब कहलाते थे.
उस राज्य में एक बंगाली प्रजाति का एक बादशाह जैसी शानोशौकत से जीने का शौकीन "बाबू" यानी साहब था.
सत्ता की ताकत में उसे आदमी को पहचानने में दिक्कत आने लगी थी.
उसने अपने घर और दफ्तर में आने-जाने वालों की फितरत को पहचानने के लिए एक "तोता" पाला.
"तोता" विशिष्ट गुण वाला था.
वो हर आने-जाने वाले को देखकर उसकी सबसे बड़ी खासियत के बारे में चिल्ला-चिल्लाकर साहब को सचेत कर देता था.
इससे उन्हें जागरूक रहने में मदद मिलती थी.
इस खामख्याली में उन्होंने आने-जाने वालों से रोत-टोक का बैरियर हटा दिया.
लोग आते और तोते से अपना सर्टिफिकेट जारी करवा लेते.
इस व्यवस्था में एक दिन एक समस्या खड़ी हो गयी.
साहब के लिए चाँद-तारे और सारे लाने की व्यवस्था करने वाले उनके तीन-चार ख़ास मातहतों ने उनके पास आने से मना कर दिया और फोन पर ही रोने लगे.
साहब के ज्यादा जोर देने पर उन्होंने बताया कि वो जैसे ही घर-दफ्तर आते हैं तोता चिल्लाता है- "देखो!!! दल्ला आया, दल्ला आया, ताजा-ताजा माल लाया!!!" ऐसे में वो अपनी बेइज्जती बर्दाश्त कैसे करें???
साहब ने उसका दर्द समझा और तोते को डांटा कि किसी को ऐसे नहीं कहते...
अब अगले दिन उनमें से एक भीमकाय शरीर का मातहत एक ताजा माल लेकर आया पर तोते ने फिर चिल्लाया-"दल्ला नहीं आया,दल्ला नहीं आया, पर ताजा मुलायम माल लाया!!!"
वो अन्दर जाकर साहब से रोया.
साहब को भी बहुत गुस्सा आया.
उन्होंने तोते को डांटा और कहा की तुम कुछ भी नहीं बोलेगे.
तोता आज्ञाकारी था, उसने साहब की बात पूरी तरह मान लेने का वायदा किया.
फिर अगले दिन वही मातहत आया.
गेट से अन्दर आया और मुड़कर तोते को देखा, पर आज तोता चुप था.
वो थोड़ा आगे बढ़ा..........फिर पीछे मुड़कर देखा पर तोता अभी भी चुप था............
साहब के दरवाजे के पास पहुंचता तब तक उसने एक बार फिर तोते को देखा.
तोता बोला, जा-जा, समझ तो तू गया ही है.
वंशवाद के विरोध में एक ही परिवार की प्रमुखता वाली समाजवादी सरकार का शासन था.
कलियुग के जिस काल की यह कहानी है, उस काल में कमजोर राजा के मजबूत सलाहकारों का युग था.
"बाबू" टाइप के अधिकारी ही असली राजा थे, जो साहब कहलाते थे.
उस राज्य में एक बंगाली प्रजाति का एक बादशाह जैसी शानोशौकत से जीने का शौकीन "बाबू" यानी साहब था.
सत्ता की ताकत में उसे आदमी को पहचानने में दिक्कत आने लगी थी.
उसने अपने घर और दफ्तर में आने-जाने वालों की फितरत को पहचानने के लिए एक "तोता" पाला.
"तोता" विशिष्ट गुण वाला था.
वो हर आने-जाने वाले को देखकर उसकी सबसे बड़ी खासियत के बारे में चिल्ला-चिल्लाकर साहब को सचेत कर देता था.
इससे उन्हें जागरूक रहने में मदद मिलती थी.
इस खामख्याली में उन्होंने आने-जाने वालों से रोत-टोक का बैरियर हटा दिया.
लोग आते और तोते से अपना सर्टिफिकेट जारी करवा लेते.
इस व्यवस्था में एक दिन एक समस्या खड़ी हो गयी.
साहब के लिए चाँद-तारे और सारे लाने की व्यवस्था करने वाले उनके तीन-चार ख़ास मातहतों ने उनके पास आने से मना कर दिया और फोन पर ही रोने लगे.
साहब के ज्यादा जोर देने पर उन्होंने बताया कि वो जैसे ही घर-दफ्तर आते हैं तोता चिल्लाता है- "देखो!!! दल्ला आया, दल्ला आया, ताजा-ताजा माल लाया!!!" ऐसे में वो अपनी बेइज्जती बर्दाश्त कैसे करें???
साहब ने उसका दर्द समझा और तोते को डांटा कि किसी को ऐसे नहीं कहते...
अब अगले दिन उनमें से एक भीमकाय शरीर का मातहत एक ताजा माल लेकर आया पर तोते ने फिर चिल्लाया-"दल्ला नहीं आया,दल्ला नहीं आया, पर ताजा मुलायम माल लाया!!!"
वो अन्दर जाकर साहब से रोया.
साहब को भी बहुत गुस्सा आया.
उन्होंने तोते को डांटा और कहा की तुम कुछ भी नहीं बोलेगे.
तोता आज्ञाकारी था, उसने साहब की बात पूरी तरह मान लेने का वायदा किया.
फिर अगले दिन वही मातहत आया.
गेट से अन्दर आया और मुड़कर तोते को देखा, पर आज तोता चुप था.
वो थोड़ा आगे बढ़ा..........फिर पीछे मुड़कर देखा पर तोता अभी भी चुप था............
साहब के दरवाजे के पास पहुंचता तब तक उसने एक बार फिर तोते को देखा.
तोता बोला, जा-जा, समझ तो तू गया ही है.
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