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शब्दों के घाव बड़े गहरे

        "शब्द" तीर, तलवार, ख़ंजर ही नहीं आज के युग के किसी भी आधुनिकतम हथियारों से भी ज़्यादा ख़तरनाक, धारदार और मारक होते हैं। समाज, राष्ट्र और व्यक्तिगत पारिवारिक सम्बन्धों को बनाने और बिगाड़ने में भी इनकी अति महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 
        देश और दुनिया में निरन्तर तकनीकी प्रयोग के बढ़ने और कोरोना जैसी जानलेवा महामारी के चलते दुनिया में समाज का व्यवहार विभिन्न कारणों से निरन्तर बदल रहा है। नब्बे के दशक में इंटरनेट आम व्यक्ति की पहुँच में आया था किंतु इक्कीसवीं सदी के प्रथम दशक में कम्प्यूटर से होता हुआ मोबाइल के माध्यम से प्रत्येक नागरिक की मुट्ठी में समा गया। कभी स्टेटस सिम्बल माने जाने वाला स्मार्ट फ़ोन आम ज़रूरत की डिवाइस बन गयी है। कोरोना महामारी के दौरान स्मार्ट फ़ोन और लैपटाप को इंटरनेट के माध्यम से जोड़कर प्रत्येक बच्चे की शिक्षा का आधार बनाया गया।
        "नेटिजन" अर्थात इंटरनेट प्रयोग करने वाले सिटिज़न, की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न उन्नति के द्वार खुले हैं किंतु साथ ही, बढ़ रही हैं, इसके अधिक प्रयोग से होने वाली स्वास्थ्य, मानसिक और नैतिकता के संरक्षण की विकट समस्याएँ। टेक्स्ट पेन, टेनिस एल्बो और फ़्रोजेन शोल्डर जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ  इन्हीं समस्याओं में से एक समस्या है जो आम हो रही है। लगातार मोबाइल या लैपटाप स्क्रीन देखते रहने के कारण गर्दन से लेकर कंधे, कोहनी और कलाइयों की पेशियों की जकड़न एक असह्य दर्द का कारण बन रही है, जोकि लाइलाज बीमारी में बदलने में ज़रा भी देरी नहीं करती है। इसी तरह नेटिजंस में निरंतर इंटरनेट के प्रयोग से एकाकी-जीवन के प्रति बढ़ता अगाध-प्रेम आज सभी आयु वर्ग के नागरिकों में आम हो चुका है। अनिद्रा, मानसिक तनाव और अज्ञात के प्रति भय जैसी मानसिक बीमारियाँ आम हो रही हैं।
        इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न चैटिंग ऐप द्वारा निरंतर टेक्स्ट मैसेज के माध्यम से लड़ना अर्थात "फेक्स्टिंग (Fight through Texting)" एक नवीनतम समस्या बन गयी है। एक ही छत के नीचे रहने वाले कर्मचारी और परिवारी जन भी परस्पर टेक्स्ट मैसेजिंग करना पसंद करने लगे हैं। चैटिंग ऐप के माध्यम से ग्रुप बनाकर मैसेजिंग करना और किसी भी छोटी बात पर तुनकमिज़ाजी दिखाते हुए ग्रुप छोड़ना या ग्रुप को समाप्त कर देना इसी टेक्स्ट मैसेजिंग की आदत से उत्पन्न हुआ मनोविकार फेक्स्टिंग है। कुछ मनोवैज्ञानिक इसे अच्छा कहते हैं क्योंकि जिन लोगों में अपने अंतर्मुखी व्यक्तित्व के कारण अपना पक्ष रखने की समस्या होती है, उनके लिए ये उपयोगी साधन है। परंतु अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा इसकी समस्या पर इशारा करने के बाद मनोवैज्ञानिकों में इस नई समस्या के प्रति जागरूकता बढ़ी और इसे एक समस्या माना गया है। लिखित मैसेज अर्थात शब्द कभी भी मिटाए नहीं जा सकते। ये शब्द आपसी मधुर सम्बन्धों की चीर-फाड़ करने में दुरुपयोग किए जा सकते हैं। अनावश्यक वाद-विवाद बढ़ाने वाली चैटिंग से पारिवारिक, व्यापारिक और कार्यालयी जीवन में ख़ट-पट बढ़ने लगी है। शक और साज़िशों को बल मिल रहा है। अतः आवश्यक है कि "फेक्स्टिंग" से बचिए अन्यथा इससे उपजी कलुषता के चलते कुछ भी शेष ना बचेगा।
        आप सभी देखिए, कहीं आप या आपका कोई साथी इस "फेक्स्टिंग" का शिकार तो नहीं.......
        
        

 

Comments

  1. शिकार और शिकारी दोनो आमने-सामने है

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  2. जीवनशैली आधारित भविष्य की समस्याओं के प्रति जागरूक करने का पुनीत कार्य आपके द्वारा किया जा रहा है।

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