चुनाव आयोग अपने निर्णय की समीक्षा करे अरविन्द विद्रोही
सूंड उठाये हाथी को परदे के
पीछे ढकने का चुनाव आयोग का फैसला पक्षपात पूर्ण ही है |बहुजन समाज पार्टी का चुनाव निशान तो सूंड नीचे किये हुये हाथी है |सरकारी धन से बने
और खरीद कर वितरित किये गये सभी चुनाव चिन्हों पर एक साथ एक तरह का निर्णय होना
चाहिए था ,मसलन साइकिल को भी सरकारी धन से खरीद कर पुरे प्रदेश में वितरित
किया गया ,सभी सरकारी भवनों में पंखा लगा है ,बाल्टी खरीदी गयी है ,हैण्ड पम्प लगा है जिसको आम जनता उपयोग भी कर रही है और देख भी रही
है |सिर्फ और सिर्फ सनातन धर्म में समृधि के सूचक सूंड उठाये हुये हाथी जो कि बहुजन समाज पार्टी का चुनाव निशान भी नहीं
है को परदे में ढकने का आदेश देना चुनाव आयोग के एकतरफा -मनमाने और गैर व्यावहारिक फैसले की बानगी मात्र है | उत्तर प्रदेश में चुनावी जंग में बहुजन समाज पार्टी जब नेपथ्य में
जाने लगी थी तभी चुनाव आयोग ने एकदम से अपना यह फैसला दे दिया और चारो तरफ चुनाव
आयोग के इसी निर्णय के कारण बसपा सरकार की सभी की गयी गलतियो की चर्चा होनी बंद हो गयी तथा सिर्फ हाथी और
उस पर पर्दा यह चर्चा आम हो गयी | हाथी को चुनाव आयोग
ने स्वतः संज्ञान में लिया और उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति को अपने एक ही फैसले
से बदल दिया |बहुजन समाज पार्टी का अपना काडर वोट ,कट्टर समर्थक तक मायूस था ,चुनाव आयोग के इस निर्णय ने उनको एकदम से संजीविनी दे दी है |दलित बस्तिओ में एक जगह चुप-चाप
एक साथ बैठ कर प्रति दिन हाथी पे पर्दा डाल कर क्यूँ ढका गया इस
पर मंथन किया जाना जारी है |सूंड उठाये
हाथी को बहुजन समाज पार्टी का चुनाव निशान बता कर उस पर पर्दा डालने को अपने स्वाभिमान से सीधा जोड़ रहा है दलित समाज |बसपा के वे लोग भी जो किसी
कारण वश स्थानीय बसपा विधायक से नाराज़
थे, इस प्रकरण के बाद जी जान से पार्टी के प्रचार में जुट गये है |चुनावी राजनीति में समाजवादी पार्टी से पिछड़ रही बहुजन समाज पार्टी को चुनाव आयोग ने जाने -अनजाने पुनः मजबूती देने का अद्भुत काम किया है |भारत-भूमि के सनातन समाज
के दलित वर्ग को चुनाव आयोग का यह निर्णय अपनी भावनाओ पे कुठाराघात सरीखा प्रतीत हो रहा है ,बाकी दलों के चुनाव चिन्हों की तरफ चुनाव आयोग की ख़ामोशी उनके घावो
को बरक़रार रखे है |
चुनाव आयोग का यह फैसला गलत है , जिस हाथी को ढका गया वो बसपा का चुनाव चिन्ह नहीं है ,और सूंड उठाये हुये हाथी सनातन
धर्म में समृधि का सूचक है उसको ढकना भावनाओ पे कुठाराघात है ,यह बात तेजी से आम जन मानस में घर करती जा रही है |मतदान की तारीख तक अगर हाथी पर पर्दा प्रकरण इसी प्रकार हावी
रहा तो इसमें कोई संदेह नहीं कि बहुजन समाज पार्टी को विधान सभा
२०१२ के आम चुनावो में बढ़त मिल जाये और वो
सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे |
उत्तर प्रदेश जी
राजधानी में जब बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ था और मायावती ने प्राथमिकता के आधार पर राजधानी लखनऊ में विभिन्न
पार्को व पार्को में जगह जगह हाथी की प्रतिमा की स्थापना का काम शुरु करवाया तब भी
बहुत कोहराम मचा था | राजनीतिक बयानबाजी
और आरोप प्रत्यारोप के साथ साथ माननीये न्यायलय में भी मायावती सरकार द्वारा
करवाए जा रहे पार्को के निर्माण कार्य व हाथी की प्रतिमा की स्थापना पर रोक
की याचिका दायर हुई | माननीये
न्यायलय के ही फैसले के बाद ही पार्क का निर्माण
कार्य - सौंदर्यी करण हुआ और हाथी
की प्रतिमा भी
लगी रही | माननीये न्यायलय ने इस बात को माना कि पार्को
में लगाया जा रहा सूंड उठाये हाथी की ये प्रतिमाएं बहुजन समाज पार्टी
का चुनाव निशान नहीं है ,और सूंड
उठाये हुये हाथी की प्रतिमा को लगाने में कोई
दिक्कत नहीं है |
और अब चुनावी बेला में अचानक चुनाव
आयोग ने लखनऊ में लगी इन्ही सूंड उठाये हाथी की प्रतिमाओ को परदे में ढ़कने का निर्णय दे दिया कि इससे
बहुजन समाज पार्टी के चुनाव निशान हाथी का प्रचार -प्रसार हो रहा है |इन हाथियो को बनाने और लगाने से लेकर ढकने तक में आम जनता
का ही धन लगा है |आम जनता के धन से बनी चीजो को देखने से ,उपयोग करने से रोकना किस लिहाज़ से उचित है ? क्या माननीये न्यायलय का
पार्को में सूंड उठाये हाथी की प्रतिमा
लगने देने का निर्णय गलत था ? समाजवादी विचारक
-नेता डॉ राम मनोहर लोहिया तात्कालिक अन्याय का विरोध करने में यकीन रखते थे और
समाजवादियो से ,अपने
अनुयायिओ
से तात्कालिक अन्याय का विरोध करने को
कहते थे | शरद यादव -अध्यक्ष जनता
दल यू ने इस मामले में चुनाव आयोग के निर्णय को गलत करार देकर
सही ही किया और एक सच्चे समाजवादी नेता के चरित्र को निभाया | भारत की सभी संवैधानिक संस्थानों को निष्पक्ष भाव से काम करना
चाहिए लेकिन चुनाव आयोग के इस निर्णय पर सवालिया निशान लगने और बसपा सुप्रीमो व
मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश द्वारा चुनाव आयोग को दलित विरोधी करार देने से
चुनाव आयोग के जिम्मेदारो को मंथन करके अपने निर्णय पर गंभीरता पूर्वक पुनर्विचार करना चाहिए | स्वागत के लिए लगाए जाने वाले समृद्धि सूचक सूंड उठाये हाथी को परदे
से ढकना न्याय संगत नहीं है यह बात दलित समाज ही
नहीं सभी निष्पक्ष जनों को समझ में आ चुकी है |
हे रावण! तुम्हें अपने समर्थन में और प्रभु श्री राम के समर्थकों को खिझाने के लिए कानपुर और बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाक़ों में कही जाने वाली निम्न पंक्तियाँ तो याद ही होंगी- इक राम हते, इक रावन्ना। बे छत्री, बे बामहन्ना।। उनने उनकी नार हरी। उनने उनकी नाश करी।। बात को बन गओ बातन्ना। तुलसी लिख गए पोथन्ना।। 1947 में देश को आज़ादी मिली और साथ में राष्ट्रनायक जैसे राजनेता भी मिले, जिनका अनुसरण और अनुकृति करना आदर्श माना जाता था। ऐसे माहौल में, कानपुर और बुंदेलखंड के इस परिक्षेत्र में ऐसे ही, एक नेता हुए- राम स्वरूप वर्मा। राजनीति के अपने विशेष तौर-तरीक़ों और दाँवों के साथ ही मज़बूत जातीय गणित के फलस्वरूप वो कई बार विधायक हुए और उन्होंने एक राजनीतिक दल भी बनाया। राम स्वरूप वर्मा ने उत्तर भारत में सबसे पहले रामायण और रावण के पुतला दहन का सार्वजनिक विरोध किया। कालांतर में दक्षिण भारत के राजनीतिक दल और बहुजन समाज पार्टी द्वारा उच्च जातीय सँवर्ग के विरोध में हुए उभार का पहला बीज राम स्वरूप वर्मा को ही जाना चाहिए। मेरे इस नज़रिए को देखेंगे तो इस क्षेत्र में राम म...
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