बाबू, बादशाह,बुंदेलखंड और भाजपा
उत्तरप्रदेश में चुनाव का बिगुल बज चुका
है. कभी प्रदेश की राजनीति में हावी ‘एम्’ फैक्टर उपेक्षित हुआ
है. समाचार माध्यमों में आम चुनावों का मुद्दा और केंद्र रहने वाले "माया, मुलायम और मैडम" की टी.आर.पी. गिरी है. कभी “भय, भूख और भ्रष्टाचार”मिटाने का नारा देने वाली भाजपा ने जैसे-तैसे सत्ता कब्जियाने के
लिए “बाबू, बादशाह और बुंदेलखंड” का अघोषित नारा अपना लिया है. चुनाव विश्लेषकों का मानना है पिछड़ी
जातियों को अपने पाले में समेटने की जैसी हड़बड़ी गत लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह
ने कल्याण सिंह को साथ ले कर की थी, वैसी ही ‘हिमालयन भूल’स्वास्थ्य घोटाले में आरोपी बाबू सिंह कुशवाहा को भाजपा में शामिल
कर की गयी है. इस कदम का पार्टी के अंदर और प्रबुद्ध मतदाता वर्ग के असंतोष को
भांपते हुए सहयोगी दल जनता दल (यू) ने भी असंतोष जताया है. आज प्रदेश में बसपा के
सारे दागी और भ्रष्टाचार के आरोप में निष्कासित नेता धीरे-धीरे भाजपा में आ रहे
हैं. यही तो है हाकी का "रिवर्स गोल"......या क्रिकेट की भाषा में
"हिट विकेट".ऐसे समय जब अन्ना हजारे बीमार थे, सपाई बेदम थे,कांग्रेसी बेजार थे और अन्य छोटे दल दिशाहीन थे तब सत्ता पाने के लिए
भाजपाई इतने बेकरार थे की अपनी ही देश-व्यापी भ्रष्टाचार-विरोधी मुहिम को पलीता
लगा बैठे.
देश में
जब अन्ना हजारे के जन-लोकपाल के आंदोलन के माध्यम से शहरी मध्य वर्ग में
भ्रष्टाचार के विरुद्ध चेतना का विकास हो चुका था. स्वयं भाजपा के किरीट सोमैया को
यू.पी. सरकार के काले कारनामों और घोटालों का खुलासा करने में लगे थे.बहुचर्चित
एन.एच.आर.एम्. घोटाले और दो सी.एम्.ओ. की ह्त्या की जांच कर रही सी.बी.आई. को दिए
गए दस्तावेजों में बाबू सिंह कुशवाहा और उनके परिवारीजनों की फर्जी कंपनियों का
नाम जोर-शोर से किरीट सोमैया ने उजागर किया था. पार्टी का शहरी और प्रबुद्ध मतदाता
तब स्तब्ध रह गया जब सुबह की प्रेस कांफ्रेंस में मुख्तार अब्बास नकवी ने लखनऊ में
बाबू सिंह को घोर भ्रष्टाचारी बताया और दोपहर बाद दिल्ली में हुयी प्रेस कांफ्रेंस
में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही और वरिष्ठ भाजपा नेता विनय कटियार की
उपस्थिति में न केवल बाबू सिंह कुशवाहा वरन एक और बसपा से निकाले गए “दबंग” छवि पूर्व मंत्री
बादशाह सिंह को शामिल कर लिया गया.
मायावती
ने कभी अपनी सरकार में रहते चुनाव नहीं लड़ा था. हर बार चुनाव से ठीक पहले वो
सत्ता त्यागकर खड़ी हो जाती थीं. इससे “सत्ता-विरोधी रुख” सदैव बाद में सत्ता सम्हालने वाले को झेलना पड़ा. इससे बसपा हर बार
बढती जाती थी.इस बार तय था की जन-मत बसपा के विरोध में होगा.किन्तु घोर भ्रष्ट
शासन के बावजूद जनता का सारा गुस्सा सिर्फ मायावती और बसपा के प्रति नहीं रह गया
है. उन्होंने तमाम आरोपी और संभावित बागी प्रत्याशियों, विधायकों और मंत्रियों की टिकट काट कर ये संकेत दिया की वो अब
पाक-साफ़ हो गयी हैं. ये कठिन था की जनता में यही सन्देश जाता . परन्तु बसपा के
अपने खास ‘दलित वोट-बैंक’ में कोई दरकन नहीं थी.ये उसके लिए शुभ संकेत था. किन्तु नसीमुद्दीन
सिद्दीकी, दद्दू प्रसाद, बाबू सिंह कुशवाहा, बादशाह सिंह,पुरुषोत्तम द्विवेदी, हरिओम उपाध्याय के काले कारनामों से बुंदेलखंड में बसपा की चट्टान जैसी मजबूती
में कमी आई थी. दूसरी तरफ खाली हाथ भाजपा को बुंदेलखंड में अपनी हैसियत फिर से
स्थापित करने की जरूरत थी. इस हड़बड़ी में भाजपा ने बाबू सिंह कुशवाहा और बादशाह
सिंह को शामिल कर मायावती को ‘सेफ कार्ड’ खेलने का मौक़ा दे दिया है.
प्रदेश
में पिछडों के सबसे बड़े नेता मुलायम सिंह यादव खासकर यादवों और अन्य पिछड़ी
जातियों के साथ मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करते हैं. परन्तु बेनी प्रसाद वर्मा
के अलग हो जाने से और अपना दल के उदय से कुर्मी बिरादरी में सेंध लग चुकी है.इसे
और कमजोर करने के लिए विनय कटियार और संतोष गंगवार जैसे भाजपाई नेता सक्रिय
है.इनके अतिरिक्त जाट बाहुल्य पश्चिमी उत्तरप्रदेश में अजीत सिंह और कांग्रेस के
गठ-बंधन ने“साइकिल” के लिए उलटी हवा बहा रखी है. लोधी वोट आज भी कल्याण सिंह और उमा
भारती में बंटा है.मुख्यमंत्री रहते राजनाथ सिंह ने अति-पिछडा और अति-दलित कार्ड
खेला था.बाबू सिंह को भाजपा में शामिल किया जाना उसका ही परिणाम है. संघ के
सूत्रों की माने इन तीन प्रमुख पिछड़ी जातियों के अतिरिक्त काछी,कुम्हार, सैनी, बिंद, मल्लाह आदि जातियों को
शामिल कर एक और वोट-बैंक तैयार करने की रणनीति के तहत ये निर्णय लिया गया है.
बुंदेलखंड में इन जातियों का प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में दस से तीस हज़ार तक
वोट-बैंक है. भाजपा रणनीतिकार स्वीकारते हैं पिछले विधानसभा चुनाव में तैंतीस
सीटें पांच हज़ार के अंतर से गंवायी थी जिनकी भरपाई करने का प्रयास किया गया है.
केंद्र
की कांग्रेस सरकार के द्वारा सरकारी नौकरियों में दिया गया अल्पसंख्यकों को आरक्षण
में पिछडों का अहित हुआ है. इसे सपा प्रमुख मुलायम सिंह स्वीकारते हैं परन्तु
विरोध की जगह कहते हैं मुसलामानों को और आरक्षण दिया जाना चाहिए. पिछडों के इस
अहित को भाजपा हिन्दू-विरोधी कदम बताते हुए बाबू सिंह
कुशवाहा को साथ लेकर बुंदेलखंड के दम पर उत्तर प्रदेश पर काबिज होना चाह रही
है.ऐसा अनुमान है, बादशाह सिंह की दबंग छवि भी इसमें सहायक होगी.मध्यप्रदेश के
बुंदेलखंड पर उमा भारती के प्रभाव का प्रयोग यहाँ भी किया जा रहा है. जिससे
संभावित प्रदेश विभाजन की स्थिति में भाजपा मजबूती से खड़ी हो सके.परतु मात्र चार
से नौ प्रतिशत वोटों के लिए शहरी मतदाताओं के समक्ष हुयी किरकिरी का लाभ केंद्र की
कांग्रेस और प्रदेश की माया सरकार को अवश्य मिलेगा. प्रदेश की सरकार के
भ्रष्टाचारी कारनामों की सफाई अब भाजपा देती घूमेगी और बसपा फिर आक्रामक शैली में
होगी.और बिना किसी जुर्म के किये ही भाजपा अपराध बोध से ग्रसित रहेगी. भाजपा ने
निलंबन का नाटक कर बाबू सिंह विरोधियों को पार्टी के अंदर शांत करने का असफल
प्रयास किया है परन्तु अब ये कदम नाकाफी साबित होगा. इसकी वजह बाबू सिंह का भविष्य
है, जिसके तहत उसे जेल के
पीछे जाना तय है.इस स्थिति में भाजपा की स्थिति और बदतर हो जायेगी. किसी विद्वान
का कथन है – स्थिति कभी भी इतनी नहीं बिगड़ती की और बदतर न हो सके. संभवतः भाजपा के
शीर्ष नेतृत्व ने इसे तामील में लाने का संकल्प उत्तर प्रदेश के विधान-सभा चुनावों
में कर लिया है,जिसके परिणाम स्वरुप “ब” फैक्टर की राजनीति की जा रही है.
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