उत्तर प्रदेश में मायावती ने इस बार मुख्यमंत्री का पद सम्हालते ही सरकारी कर्मचारिओं और अधिकारिओं के ‘स्थानान्तरण-उद्योग’ पर रोक लगाने का काम किया. अपनी पूर्व की सरकारों में इस विशेष उद्योग के कारण खासी बदनामी झेल चुकी थीं. प्रत्येक वर्ष अप्रैल से जून के महीने सरकारी कर्मचारिओं और अधिकारिओं के स्थानान्तरण के लिए जाने जाते रहे हैं.प्रत्येक विभाग की अपनी एक खास प्रक्रिया होती है और स्थानांतरण के लिए उचित कारण बताकर प्रत्येक वर्ष लोग इधर से उधर होते रहे हैं. ‘कारण की व्याख्या’, किसी शक्तिशाली सिफारिश या फिर ‘सेवा-शुल्क’ के माध्यम से होती रही है. इन खास महीनों सरकारी कर्मचारिओं में परिवारीजनों के साथ स्वयं की बीमारिओं आदि के प्रमाण-पत्रों को आवेदन-पत्र के साथ सिफारिशों के पत्रों की भरमार होती जाती है. मंत्रिओं, विधायकों, सांसदों सत्ताधारी दल के संगठन के पदाधिकारिओं तथा बाहुबलिओं की सिफारिशें आम होती हैं.बसपा की सरकार में इस ‘सेवा-शुल्क और सिफारिशी पत्र’ के बल पर सारे काम कराने की छवि को सुधारने की गरज से मायावती ने दो सत्र स्थानान्तरण शून्य कर दिए थे. जिससे सरकारी कर्मचारिओं और अधिकारिओं में खासा तनाव रहा है.
बेसिक शिक्षा विभाग में हुयी विशिष्ट बी. टी. सी. के तहत हुयी भर्तिओं
में पूरे प्रदेश में शिक्षक-शिक्षिकाओं की तैनाती उच्च शिक्षित अभ्यार्थिओं की हुयी है. इस सरकार के अतिरिक्त पूर्व में कल्याण सिंह और मुलायम सिंह की सरकारों ने भी भर्तियाँ की थीं. उन सरकारों ने भर्ती को प्रदेश स्तर पर करते हुए प्रदेश स्तर की मेरिट बना कर किया था. किसी विशेष जनपद में पद रिक्त न होने की दशा में मंडल के दूसरे जिले में तैनाती दी गयी था और ये आश्वासन दिया गया था, पद रिक्त होने पर विभागीय कार्यवाही कर प्राथमिकता के आधार पर पहले महिलाओं और फिर पुरुष अध्यापकों के स्थानांतरण गृह-जनपद में हो सकेंगे. इस वर्तमान सरकार ने जिला स्तरीय भर्तियाँ कीं और नव-चयनितों को दूरस्थ और एकल विद्यालयों में कम-से-कम पांच साल की तैनाती का नियम लागू किया गया.बेरोजगारी की मार खाए महिला और पुरुष उच्च शिक्षित इस भीड़ ने पहले किसी तरह से ट्रेनिंग और तैनाती पायी, परन्तु कार्य-व्यवहार और संस्कृति में परिवर्तन के कारण ये शहरी पीढ़ी स्वयं को व्यवस्थित न कर सकी. कार्य की उपेक्षा की शिकायतें आम हैं. दूसरी तरफ ये सभी शिक्षा अधिकारिओं को दुधारू गाय लगते हैं.इन अधिकारिओं के द्वारा किया जाने वाला आर्थिक और शारीरिक शोषण अब खुलकर सामने आने लगा है. गाँव के लोग भी अक्सर छिटा-कशी करते रहते हैं. सीतापुर में एक महिला अध्यापिका के बलात्कार के बाद ह्त्या का मामला विगत वर्ष सामने आया था. छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के कारण इनका वेतन गाँव के एक-एक बच्चे को ज्ञात है. किन्तु जीवन में सुरक्षा और आशाओं में कमी और कुंठा के जन्म के कारण पर्याप्त हैं. ऐसे में इनके लिए अपने गृह जनपद में स्थानांतरण ही अंतिम उपाय है.
प्राथमिक शिक्षकों एवं शिक्षिकाओं का स्थानान्तरण सचिव,बेसिक शिक्षा परिषद. इलाहाबाद के माध्यम से होता है.अर्थात स्थानान्तरण के कारण की व्याख्या का काम उनका है पर ऐसा किया नहीं गया. इस पद पर तैनात श्री इन्द्र पाल शर्मा की दक्षता और क्षमता का ये उदाहरण काफी है की वे पूरे प्रदेश में ऐसे महत्वपूर्ण पद पर तैनात एकमात्र ऐसे आला अधिकारी हैं जो पूर्व की मुलायम सरकार में भी इसी पद पर तैनात थे.आज भी वे माया सरकार के लाडले हैं.स्थानान्तरण के इच्छुक अध्यापकों का कहना है की यदि उनकी इस पद पर विगत वर्षों की तैनाती के काल की संपत्ति की जांच कराई जाए तो उनके कृतित्व और व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ साफ़ हो जायगा.
अभी हाल में ही फर्रुखाबाद के एक प्राइमरी विद्यालय में सहायक अध्यापिका के पद पर तैनात कानपुर की मूल निवासी उमा यादव के पति विनय यादव ने अपनी पत्नी के सस्पेंड किये जाने और कानपुर स्थानांतरण में आने वाली परेशानिओं से आजिज आ कर आत्महत्या कर ली.विनय की पत्नी को वहाँ के एक शिक्षा अधिकारी
ने बिना-वजह निलंबित कर दिया था. बताया जाता है एक स्थानीय सत्ताधारी दल के नेता ने बहाली के लिए दस हज़ार रुपये भी लिए थे. पति-पत्नी रुपये देने के बावजूद बहाली न होने और कानपुर स्थानांतरण न होने से काफी परेशान थे. इसी तनाव में एक दिन विनय ने आत्म-ह्त्या कर ली. उसने अपने सुसाइड नोट में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अनंत कुमार मिश्रा को भी अपनी आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए उनका स्पष्ट नामोल्लेख किया था . जबकि मंत्रीजी अपने विभाग से सम्बंधित मामला न होने से अपनी इस जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते रहे. विनय का मानना था कि उसकी पत्नी की इस स्थिति के लिए मंत्री जी भी जिम्मेदार हैं. प्रदेश कि राजनैतिक स्थिति में गर्माहट लाने वाले इस प्रकरण में आंदोलित वकील बहुत लंबे समय तक अपने रुख पर कायम न रह सके. इसका कारण स्पष्ट करते हुए सुसाइड नोट में आरोपों की स्पष्टता न होने की बात वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश कुमार शुक्ला कहते हैं. श्री शुक्ल मानते हैं अधिवक्ता विनय यदि स्पष्टतः अनंत मिश्रा के बारे में लिख गए होते कि मंत्री जी क्यों और किस तरह से जिम्मेदार हैं तो उसके परिवार को कानूनी मदद आसानी से की जा सकती थी और मंत्री जी को कानूनी दायरे में लाया जा सकता था. दूसरी तरफ भयभीत और निराश्रित उमा पति को खोने के बाद कोर्ट-कचहरी के बवालों में नहीं पड़ना चाहती थीं .यद्यपि वो सुसाइड नोट को आधार बना कर शासन और न्यायालय से स्वयमेव न्याय करने कि आशा लगाए हैं. लगभग इसी प्रकार के अन्य मामले में एक लेखपाल कि आत्महत्या के मामले में नाम आने पर उसके आला अधिकारिओं पर मुकदमा दर्ज कराये जाने और दूसरी तरफ इस मामले में प्रदेश सरकार के मंत्री से मामला जुड़े होने के कारण प्रशासन का भेदभावपूर्ण रवैया रसूखदारों को बचाने का प्रतीत होता है.
परन्तु मंत्रीजी का नाम सुर्खिओं में आने के बाद उमा का उस दिन बहाल किया जाना जिस दिन उसने अपना स्पष्टीकरण भी नहीं दिया था, उसका बिना विभागीय प्रक्रिया पूरी किये कानपुर नगर में स्थानान्तरण कर दिया जाना ये अवश्य स्पष्ट करता है कि सब कुछ मंत्रीजी के संज्ञान में था. इस मामले से अपना पीछा छुडाने के लिए नियमों और प्रक्रिआओं को किसी भी स्तर तक बदलवाने में वे पूरी तरह से सक्षम हैं. शिक्षक नेता सुनील कटियार कहते हैं बसपा सरकार में पिछड़ी जातिओं का काम न होने कि घोषणा करने वाले मंत्री जी की इस दरियादिली का कारण उनका इस मामले में लिप्त होने के लिए पर्याप्त प्रमाण है.शीलू प्रकरण की ही तरह से इस मामले में भी हाई कोर्ट , इलाहाबाद को संज्ञान लेते हुए मंत्री अनंत मिश्र पर मुकदमा कायम कराना चाहिए.चारों तरफ व्याप्त भ्रष्टाचार से होने वाले संग्राम की वेदी पर बलिदान हुए विनय यादव को देश में सदा से याद किया जाएगा.श्री कटियार कहते हैं इस भ्रष्ट सरकार में बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षकों को अन्तर्जनपदीय स्थानान्तरण के लिए मंत्री के नाम सम्बोधित पत्र फैक्स कर आत्महत्या करना ही सही तरीका है तो अपने पति-पत्निओं के स्थानातरण के लिए प्रदेश में लाखों आत्महत्याएं हो जायेंगी. दूसरी तरफ इस घटना से सबक न लेते हुए पूरे प्रदेश के शिक्षा विभाग में बाबू और अधिकारिओं के स्तर पर भ्रष्टाचार कि हद होने लगी है.जिसके परिणाम स्वरुप ऐसी घटनाएं होने लगी हैं.इसी तरह से एक बार फिर फर्रुखाबाद जिले में एक और महिला अध्यापिका ने अपने स्थानांतरण की समस्या से ग्रस्त हो कर नींद की गोलियाँ खाकर आत्महत्या का प्रयास किया.जिसकी मांग को जिलाधिकारी ने तत्काल पूरी कर दी.प्रदेश सरकार ने भी ऐसे मामलों को संज्ञान में लेते हुए महिला अध्यापिकाओं का स्थानांतरण के लिए आदेश जारी किया है परन्तु पुरुष अध्यापकों के गृह-जनपद में स्थानांतरण का रास्ता अभी बंद है.
प्रश्न ये है की , यद्यपि मौत सच है. सभी के साथ घटने वाली घटना है. परंतु क्या प्रदेश की वर्तमान सरकार की संवेदन-शून्यता का ये चरम है की प्राथमिक अध्यापक और अध्यापिकाओं के स्थानांतरण के लिए उनका या उनके परिजनों की आत्म-ह्त्या ही अंतिम रास्ता रह गया है ? सरकार क्यों नहींतैनाती की तिथि अर्थात वरिष्ठता के आधार पर एक विकल्प-पत्र के माध्यम से सभी की मांग को जानकर यथा-संभव स्थानान्तरण की एक स्पष्ट नीति का निर्माण करती. जिससे इन्द्र पाल शर्मा जैसे ‘कारण की व्याख्या के बहाने उगाही और भ्रष्टाचार के केंद्र’ का अंत हो. शिक्षक नेताओं का मानना है वैसे भी चुनावी वर्ष में सुशासन की स्थापना लाने की मंशा रखने वाली प्रदेश की मुखिया मायावती को अपने सलाहकारों की क्षमता का पुनर्मूल्यांकन का समय आ गया है, अन्यथा की स्थिति सरकार के लिए मुफीद न रहेगी.
बेसिक शिक्षा विभाग में हुयी विशिष्ट बी. टी. सी. के तहत हुयी भर्तिओं
में पूरे प्रदेश में शिक्षक-शिक्षिकाओं की तैनाती उच्च शिक्षित अभ्यार्थिओं की हुयी है. इस सरकार के अतिरिक्त पूर्व में कल्याण सिंह और मुलायम सिंह की सरकारों ने भी भर्तियाँ की थीं. उन सरकारों ने भर्ती को प्रदेश स्तर पर करते हुए प्रदेश स्तर की मेरिट बना कर किया था. किसी विशेष जनपद में पद रिक्त न होने की दशा में मंडल के दूसरे जिले में तैनाती दी गयी था और ये आश्वासन दिया गया था, पद रिक्त होने पर विभागीय कार्यवाही कर प्राथमिकता के आधार पर पहले महिलाओं और फिर पुरुष अध्यापकों के स्थानांतरण गृह-जनपद में हो सकेंगे. इस वर्तमान सरकार ने जिला स्तरीय भर्तियाँ कीं और नव-चयनितों को दूरस्थ और एकल विद्यालयों में कम-से-कम पांच साल की तैनाती का नियम लागू किया गया.बेरोजगारी की मार खाए महिला और पुरुष उच्च शिक्षित इस भीड़ ने पहले किसी तरह से ट्रेनिंग और तैनाती पायी, परन्तु कार्य-व्यवहार और संस्कृति में परिवर्तन के कारण ये शहरी पीढ़ी स्वयं को व्यवस्थित न कर सकी. कार्य की उपेक्षा की शिकायतें आम हैं. दूसरी तरफ ये सभी शिक्षा अधिकारिओं को दुधारू गाय लगते हैं.इन अधिकारिओं के द्वारा किया जाने वाला आर्थिक और शारीरिक शोषण अब खुलकर सामने आने लगा है. गाँव के लोग भी अक्सर छिटा-कशी करते रहते हैं. सीतापुर में एक महिला अध्यापिका के बलात्कार के बाद ह्त्या का मामला विगत वर्ष सामने आया था. छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के कारण इनका वेतन गाँव के एक-एक बच्चे को ज्ञात है. किन्तु जीवन में सुरक्षा और आशाओं में कमी और कुंठा के जन्म के कारण पर्याप्त हैं. ऐसे में इनके लिए अपने गृह जनपद में स्थानांतरण ही अंतिम उपाय है.
amar shahid vakiil Vianay Yadav |
अभी हाल में ही फर्रुखाबाद के एक प्राइमरी विद्यालय में सहायक अध्यापिका के पद पर तैनात कानपुर की मूल निवासी उमा यादव के पति विनय यादव ने अपनी पत्नी के सस्पेंड किये जाने और कानपुर स्थानांतरण में आने वाली परेशानिओं से आजिज आ कर आत्महत्या कर ली.विनय की पत्नी को वहाँ के एक शिक्षा अधिकारी
ने बिना-वजह निलंबित कर दिया था. बताया जाता है एक स्थानीय सत्ताधारी दल के नेता ने बहाली के लिए दस हज़ार रुपये भी लिए थे. पति-पत्नी रुपये देने के बावजूद बहाली न होने और कानपुर स्थानांतरण न होने से काफी परेशान थे. इसी तनाव में एक दिन विनय ने आत्म-ह्त्या कर ली. उसने अपने सुसाइड नोट में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अनंत कुमार मिश्रा को भी अपनी आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए उनका स्पष्ट नामोल्लेख किया था . जबकि मंत्रीजी अपने विभाग से सम्बंधित मामला न होने से अपनी इस जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते रहे. विनय का मानना था कि उसकी पत्नी की इस स्थिति के लिए मंत्री जी भी जिम्मेदार हैं. प्रदेश कि राजनैतिक स्थिति में गर्माहट लाने वाले इस प्रकरण में आंदोलित वकील बहुत लंबे समय तक अपने रुख पर कायम न रह सके. इसका कारण स्पष्ट करते हुए सुसाइड नोट में आरोपों की स्पष्टता न होने की बात वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश कुमार शुक्ला कहते हैं. श्री शुक्ल मानते हैं अधिवक्ता विनय यदि स्पष्टतः अनंत मिश्रा के बारे में लिख गए होते कि मंत्री जी क्यों और किस तरह से जिम्मेदार हैं तो उसके परिवार को कानूनी मदद आसानी से की जा सकती थी और मंत्री जी को कानूनी दायरे में लाया जा सकता था. दूसरी तरफ भयभीत और निराश्रित उमा पति को खोने के बाद कोर्ट-कचहरी के बवालों में नहीं पड़ना चाहती थीं .यद्यपि वो सुसाइड नोट को आधार बना कर शासन और न्यायालय से स्वयमेव न्याय करने कि आशा लगाए हैं. लगभग इसी प्रकार के अन्य मामले में एक लेखपाल कि आत्महत्या के मामले में नाम आने पर उसके आला अधिकारिओं पर मुकदमा दर्ज कराये जाने और दूसरी तरफ इस मामले में प्रदेश सरकार के मंत्री से मामला जुड़े होने के कारण प्रशासन का भेदभावपूर्ण रवैया रसूखदारों को बचाने का प्रतीत होता है.
परन्तु मंत्रीजी का नाम सुर्खिओं में आने के बाद उमा का उस दिन बहाल किया जाना जिस दिन उसने अपना स्पष्टीकरण भी नहीं दिया था, उसका बिना विभागीय प्रक्रिया पूरी किये कानपुर नगर में स्थानान्तरण कर दिया जाना ये अवश्य स्पष्ट करता है कि सब कुछ मंत्रीजी के संज्ञान में था. इस मामले से अपना पीछा छुडाने के लिए नियमों और प्रक्रिआओं को किसी भी स्तर तक बदलवाने में वे पूरी तरह से सक्षम हैं. शिक्षक नेता सुनील कटियार कहते हैं बसपा सरकार में पिछड़ी जातिओं का काम न होने कि घोषणा करने वाले मंत्री जी की इस दरियादिली का कारण उनका इस मामले में लिप्त होने के लिए पर्याप्त प्रमाण है.शीलू प्रकरण की ही तरह से इस मामले में भी हाई कोर्ट , इलाहाबाद को संज्ञान लेते हुए मंत्री अनंत मिश्र पर मुकदमा कायम कराना चाहिए.चारों तरफ व्याप्त भ्रष्टाचार से होने वाले संग्राम की वेदी पर बलिदान हुए विनय यादव को देश में सदा से याद किया जाएगा.श्री कटियार कहते हैं इस भ्रष्ट सरकार में बेसिक शिक्षा विभाग के शिक्षकों को अन्तर्जनपदीय स्थानान्तरण के लिए मंत्री के नाम सम्बोधित पत्र फैक्स कर आत्महत्या करना ही सही तरीका है तो अपने पति-पत्निओं के स्थानातरण के लिए प्रदेश में लाखों आत्महत्याएं हो जायेंगी. दूसरी तरफ इस घटना से सबक न लेते हुए पूरे प्रदेश के शिक्षा विभाग में बाबू और अधिकारिओं के स्तर पर भ्रष्टाचार कि हद होने लगी है.जिसके परिणाम स्वरुप ऐसी घटनाएं होने लगी हैं.इसी तरह से एक बार फिर फर्रुखाबाद जिले में एक और महिला अध्यापिका ने अपने स्थानांतरण की समस्या से ग्रस्त हो कर नींद की गोलियाँ खाकर आत्महत्या का प्रयास किया.जिसकी मांग को जिलाधिकारी ने तत्काल पूरी कर दी.प्रदेश सरकार ने भी ऐसे मामलों को संज्ञान में लेते हुए महिला अध्यापिकाओं का स्थानांतरण के लिए आदेश जारी किया है परन्तु पुरुष अध्यापकों के गृह-जनपद में स्थानांतरण का रास्ता अभी बंद है.
प्रश्न ये है की , यद्यपि मौत सच है. सभी के साथ घटने वाली घटना है. परंतु क्या प्रदेश की वर्तमान सरकार की संवेदन-शून्यता का ये चरम है की प्राथमिक अध्यापक और अध्यापिकाओं के स्थानांतरण के लिए उनका या उनके परिजनों की आत्म-ह्त्या ही अंतिम रास्ता रह गया है ? सरकार क्यों नहींतैनाती की तिथि अर्थात वरिष्ठता के आधार पर एक विकल्प-पत्र के माध्यम से सभी की मांग को जानकर यथा-संभव स्थानान्तरण की एक स्पष्ट नीति का निर्माण करती. जिससे इन्द्र पाल शर्मा जैसे ‘कारण की व्याख्या के बहाने उगाही और भ्रष्टाचार के केंद्र’ का अंत हो. शिक्षक नेताओं का मानना है वैसे भी चुनावी वर्ष में सुशासन की स्थापना लाने की मंशा रखने वाली प्रदेश की मुखिया मायावती को अपने सलाहकारों की क्षमता का पुनर्मूल्यांकन का समय आ गया है, अन्यथा की स्थिति सरकार के लिए मुफीद न रहेगी.
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