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होरियाये अंदाज में ......कुछ अनकही......

होरियाये हुए मूड में ,मेरे खालिस अंदाज में प्रवीन शुक्ल जी की पेशकश , कुछ ऎसी है ,
"कल चौहदवी की रात थी,
शब् भर रहा चर्चा तेरा !
कुछ ने कहा ये चाँद है,
कुछ ने कहा चेहरा तेरा !!"
ऐसा न था की हम उन्हें चाँद न कहते थे. चौदहवी का नहीं

पूरी पूर्णिमा कहते थे. पर वो अपनी हो न सकीं.अब देखो भाई ! वो कहाँ हैं , ये सब साथी जानते हैं. और ऐसा भी नहीं की 'वो' बेखबर हैं की हम आजकल कहाँ हैं और क्या कर रहे हैं.हमारी हर हरकत पर उनकी निगाह है, यही भरम बने रहने दो यारों.
मित्रों मैं कहता हूँ की सबसे ज्यादा ऊर्जा होती - शब्दों में ! इसलिए इन्हें तीर भी बनाओ तो सोच-समझ कर . नहीं तो हमारी तरह से हो जाओगे. हम चाह कर भी अब आस-पास नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि हमने सारे शब्द-बेधी तीर चला दिए , वो भी एक ही साथ. और वो हैं की अपने पति की खैर-ख्वाह हो गयीं.अब वो बेचारा .......... अब उनके पल्लू में सिमटा और छुपा है. अब बताओ, हमें क्या करना चाहिए ?मर जाएगा तब भी विधवा उसी की कहलाएगी.
तो भाइयों और थोड़ी सी बहनों, अब हम इसी तरह से बुढापे का इंतज़ार कर रहे हैं , जब वो किन्हीं गलिओं या बाज़ारों में अपने थरथराते और कंपकपाते हुए शरीर के साथ चुपके से मिलने आयें और हम इन्हीं बूढ़े बाबा की तरह से नकार दें. उनकी जीवन भर की हाँ पर भारी पड़ेगी हमारी तब की ना.

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