आये चुनाव ,मीडिया कवरेज पक्की करने के लिए
बँटने लगा पत्रकारों में "डग्गा"
चुनाव पत्रकारों और समाचार माध्यमों के लिए सहालग जैसा अवसर होते हैं. बहुत सारे अखबार और चैनल सिर्फ इसी अवसर में पैदा होते हैं. जिनके चमचमाते दफ्तर सिर्फ इसी समयावधि में गुलज़ार होते हैं. इनसे बहुत दूर-दराज के क्षेत्रों में जब राष्ट्रीय स्तर के राजनेता आते हैं तो स्थानीय पत्रकारों की चांदी हो जाती है. अब इन राजनेताओं ने मीडिया मैनेजर नियुक्त कर रखे हैं. जो अपनी पसंद के आधार पर ये सहालगी दक्षिणा वितरित करते हैं. पत्रकारों में ये "डग्गा" के नाम से प्रचलित है. जब से मीडिया हाउसेज ने सीधे राजनीतिक पार्टियों से सम्बन्ध स्थापित करके अपना दाम तय कर लिया है, तब से स्थानीय पत्रकारों में प्रिंट मीडिया के पत्रकारों के पास केवल जूठन-जाठन ही रह गयी है. दूसरी तरफ इलेक्ट्रोनिक मीडिया है जिसमें बिना वेतन-भत्ते के कैमरामैन सहित पूरी टीम लेकर चलने वाले पत्रकार हैं जिनके पास अपनी पहचान का संकट है. केवल माइक के आगे लगी आई. डी. के अतिरिक्त प्रेस-क्लब और प्रशासन में अपने केवल बेहतर संबंधों के दम पर ही वो पत्रकार कहलाते हैं. जिनके लिए ये आय का उपयुक्त और सार्थक अवसर है. अब बात आती है दर और मान्यता की. साथ ही ये जो मीडिया-मैनेजर नाम का प्राणी है उसकी मानसिक स्थिति की. उसकी हालत अंधा बांटे रेवडी ...... जैसी होती है. जिसे वो देना चाहे देता है बाक़ी कुछ कह नहीं पाते...... या कहिये कर नहीं पाते....... कारण बड़े कहलाने वाले चैनलों के चंद लोगों में ही ये बन्दर-बाँट हो जाती है. निचले स्तर तक ये गंदगी की गंगा नहीं आ पाती.
व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर दिए जाने वाले तमाम भाषणों में और उनकी कवरेज में लगे लोगों की नीयत यदि केवल इस तरीके से धन खासकर "कालेधन" का वितरण कहीं खबर नहीं बन पाती है. कारण इस खबर से दोनों पक्षों के सीधे हित प्रभावित होते हैं. मेरा व्यक्तिगत मानना है की मीडिया कर्मी सही भी है, इन भ्रष्ट और दुष्ट नेताओं का जो ही धन कम हो देश-हित में लगेगा.
कानपुर देहात यानी आज का रमाबाई नगर कहलाने वाला ये नव-निर्मित जिला आज भी विकास की बाट जोह रहा है. इस जिले में कांग्रेस के क्रान्तिवीर राहुल गांधी आ रहे हैं. उनकी आम-सभा इसी रूप में जानी और मानी जाए ये जरूरी है. कांग्रेस की प्रतिष्ठा इसे सफल बनाने में लगी है. कल कानपुर में एक होटलनुमा क्लब में हुयी उच्च स्तरीय काग्रेसी नेताओं की बैठक में ये रणनीति तय की गयी की कैसे ये सब हो ? जनता को लाने-ले जाने के लिए बसों और भोजन (सामिष और निरामिष, शराब और पानी के साथ) की व्यवस्थाओं के प्रबंध किये जाने तय किये गए. दूसरी तरफ एक युवा व्यवसाई और स्वघोषित समाजसेवी, जिसे केवल धन-पशु होने के कारण बड़े कांग्रेसी नेताओं का चिंटू कहा जाता है , ने बेहतर मीडिया कवरेज करवाने के नाम पर राहुल गांधी या फिर कांग्रेस पार्टी से आये "प्रचार-धन" या "काले-धन" का अपने मन-माफिक वितरण किया. प्रिंट मीडिया से डरने वाले इस बुढाते युवा नेता ने प्रिंट मीडिया में ठीक-ठाक 'डग्गा' बांटा. स्थानीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लोगों पर विशवास न होने के कारण कानपुर से उन्हीं चैनलों के पत्रकारों को आमंत्रित कर लिया है. तब दिक्कत ज्यादा हो सकती है जब इस विशवास की कीमत दी जा रही हो. चर्चा ये है की इन्होने ऊपर से आये धन का एक बहुत बड़ा हिस्सा 'अंदर' कर लिया है. चूंकि इनकी छवि भरे पेट वालों जैसी है इसलिए इस टिकिया-चोरी पर किसी की नज़र नहीं जा रही है. एक भूखे पेट वाले ने मुझे ये बताया की ऐसा हो रहा है. उसने मेरी सलाह पर स्टिंग करना चाहा पर दुर्भाग्य से उसके कैमरे की बैटरी जवाब दे गयी. वरना...........
ye dagga ka asar hai ki jabran laye gaye logo ko samil kar vishal sabha batai ja rahee hai ..
ReplyDeletejaagran to jaise pura hi bik gaya hai .
uska mukhay sanwaad data pattey chat lag raha hai