किसी सरकारी स्कूल की एक कक्षा
शोर-शराबे और हंगामे के लिए बहुत बदनाम थी. वहाँ के मास्टर भी उस क्लास को ढंग से
डील नहीं कर पाते थे. कई बार तो मॉनीटर ही
क्लास को संभालता था. एक दिन हेडमास्टर खुद सारे मामले की तहकीकात करने क्लास में
पहुँच गए. कक्षा में आदतन बच्चे बड़ा उधम मचाये हुए थे. डंडा लेकर हेडमास्टर को क्लास
में घुसते देख अचानक चुप्पी पसर गयी.
कूटनीति में उस्ताद हेडमास्टर हंगामे की असल वजह
जानना चाह रहे थे. सबसे बाँई तरफ बैठे बच्चे से उनहोंने पूछा,बेटा, इस हंगामे की
वजह क्या है ? बच्चा बोला, मेरे पास बढती महंगाई के खिलाफ नारा है, स्थगन प्रस्ताव
है. मेरे पास एफडीआई का पुतला है, जिसे फूंकने का कार्यक्रम है. पेट्रोल दाम बढाने
के खिलाफ गुस्सा है. डीजल, केरोसिन और गैस की कीमतें बढाने के खिलाफ रणनीति है.
मेरे पास सिस्टम के खिलाफ स्थायी गुस्सा है.
बच्चे के सयाने जवाब से हेडमास्टर हैरान
थे. अब वह क्लास में दाई और बैठे बच्चे से मुखातिब हुए. उसकी छवि क्लास में विपक्ष
के लीडर के तौर पर है. हेडमास्टर ने अपना
सवाल रिपीट किया. बच्चे ने जवाब दिया, सर, मुझे काले धन वाले चैप्टर पर सवाल पूछने
थे. लेकिन अब मेरे भीतर भी एफडीआई को लेकर गुस्सा कुलबुला रहा है. मुझे अपने
मोहल्ले की परचून की दुकान को बचाना है. दुकान वाले मुझे टॉफियाँ,चॉकलेट और
बिस्कुट दिया करते हैं.
क्लास में पीछे की और शान बैठे एक बच्चे पर
हेडमास्टर की नजर पड़ी. बच्चा किसी बड़े घराने का लग रहा था. क्लास में ज्यादातर
बच्चे उसे युवराज कहकर बुलाते हैं. हेडमास्टर ने पूछा, हैलो बाबा ! आपके पास भी
कहने के लिए कुछ है ? बच्चा पहले तो शरमाया, फिर झेंपते हुए बोला,हाँ मास्टर जी !
मेरे पास मनरेगा है, मेरे पास भट्टा-पारसौल की गेंद है. मैं इस गेंद से यूपी के
मैदान में खेलूंगा. मैं हाथी को हराऊंगा. साइकिल पंक्चर करूँगा.
अब बारी मॉनीटर की थी. मॉनीटर को डपटते हुए
उनहोंने कहा, तुम्हारी कक्षा में बच्चे इतना शोर क्यों करते हैं ? तुम्हारा
नेतृत्व फेल है. आखिर तुम्हारे पास इन बच्चों के सवालों का जवाब है या नहीं ? मॉनीटर
हेडमास्टर की डाट से हिल गया. हेडमास्टर ने दोबारा खीझकर पूछा, बताओ तुम्हारे पास
क्या सोल्यूशन है ? डरे-सहमे मॉनीटर ने जवाब दिया, सर, मेरे पास वॉलमार्ट है. इस
पर क्लास में फिर तूफ़ान खडा हो गया. बच्चों ने मॉनीटर के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी.
हेडमास्टर साहब एक कोने में अपना सर धुन रहे थे. उन्हें सूझ नहीं रहा था की इस
क्लास से कैसे निपटा जाए.
05/12/11 को अमर उजाला में प्रकाशित
Nice
ReplyDeleteaccha vyang
ReplyDelete