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जय प्रकाश के बहाने अन्ना पर चिंतन



एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है

आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है


ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए


यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है


एक बूढ़ा आदमी है मुल्क़ में या यों कहो—


इस अँधेरी कोठरी में एक रौशनदान है

मस्लहत—आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम

तू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान है

इस क़दर पाबन्दी—ए—मज़हब कि सदक़े आपके

जब से आज़ादी मिली है मुल्क़ में रमज़ान है

कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए

मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है

मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ

हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है

(दुष्यंत कुमार)

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