Skip to main content

भड़ास4मीडिया का पेड न्‍यूज का काला कारोबार

मीडिया की खबर छापने का सिलसिला  Exchange4Media.com  और समाचार4मीडिया डाट कॉम  ने शुरू किया फिर इसी की धुन में अपनी धुन सुनाने की जुगत और मीडिया  को उजागर करने का मकसद लेकर मीडिया खबर डाट कॉम और भडास4मीडिया डाट कॉम शुरू हुए। जो लोग मीडिया के खिलाफ जम कर छापते है वह कितने दूध के धुले हैं? ये सबसे बड़ा सवाल है। कैसे चलता है इनके मीडिया की खबरों का काला कारोबार?
क्या ये लोग बड़े मीडिया घरानों के स्टिंग और वसूली करते हैं। यशवंत सिंह भड़ास नाम से ब्लॉग लिखते थे जो अब भी चल रहा है भडास ब्लॉग में काफी फेमस हुआ। उसके बाद भड़ास4मीडिया डाट कॉम का जन्म हुआ। हम ये कह सकते है यह यशवंत की जिन्दगी का नया चेहरा था जो भडास4मीडिया डाट कॉम बन के उभरा था।
मीडिया जगत के लोगों ने Exchange4media.com को छोड़ कर भड़ास4मीडिया डाट काम पढ़ना शुरू कर दिया। भड़ास4मीडिया खबरों में दम था चाहे वह शुरुआती दौर में कट एंड पेस्ट के जरिये लिखी जाती थी। धीरे-धीरे मीडिया की खबरें पत्रकार दोस्तों और मेल से आना शुरू हो चुकी थी। यशवंत की नजर हर मीडिया हाउस, न्यूज़ पेपर पर जमने लगी। दैनिक जागरण, अमर उजाला अखबारों का अनुभव रखने वाले यशवंत सिंह सफलता के नए आयाम स्थापित कर रहे थे परन्तु पैसे का जरिया नजर नहीं आ रहा था।
आखिर करे तो क्या करें? ये बड़ा सवाल था। न्यूज़ वेबसाइट खोलना आसान था मगर चलाना उतना ही कठिन था। इसी दौर में शुरू हुआ पेड न्यूज़ और वसूली का गरमा गरम धंधा। जिससे खर्चे निकलने लगे। किस्मत ने साथ दिया तो भड़ास4मीडिया डाट कॉम चल निकली और फिर यशवंत सिंह दौड़ने लगे। एक दिन मैंने भड़ास4मीडिया डाट कॉम के मालिक यशवंत सिंह को फ़ोन करके बोला, भाई मैंने एक नयी साइट बॉलीवुड खबर.कॉम शुरुआत की है, जरा भड़ास4मीडिया डाट कॉम पर न्यूज़ लगा दो, तो यशवंत सिंह बोले यार हम क्या चूतिया हैं जो तुम्हारी खबर लगा दें तुम माल छापो? पहले तुम मुझे पैसा दो फिर मैं न्यूज़ लगा सकता हूं। मैं बोला भाई ये बताओ कितना पैसा दिया जाये। इस पर यशवंत सिंह बोले कि तुम कम से कम 5000/- दान करो।
मेरी यशवंत से यदा कदा बातचीत फ़ोन पर हुई थी। मैं यशवंत को मीडिया गुरु मानने लगा था। एक दिन मेरा भ्रम टूट गया। गुरु घंटाल यशवंत मुझसे ही न्यूज़ डालने के पैसे मांग रहा था  और वह हड़काने वाली आवाज साफ़ सुनाई दे रही थी ये बात पिछले साल मार्च की है। यार एक पत्रकार दूसरे पत्रकार से पैसे मांग रहा है, मैं सोचने लगा ये आदमी इतना गिर सकता है। जब मैंने अपने मीडिया मित्र से पूछा यार ये यशवंत का असली काम क्या है, वह तपाक से बोला कुछ नहीं यार बहुत सारे काम हैं, दलाली कर लेता है, लोगों को नौकरी पर लगवा देता है और उसके बदले में पैसा खा लेता है। जो लोग टीवी चैनल, न्यूज़ पेपर स्ट्रिंगर, रिपोर्टर, एडिटर हैं और कंपनी उनको पगार देने में आनाकानी करती है तो यशवंत पैसा निकलवाता है और उसके बदले कमीशन उसके खा लेता है।
मैं समझ चुका था भड़ास4मीडिया डाट कॉम पेड न्यूज़ का धंधा कर रहा है। दूसरी बार जब फेसबुक पर मेरी मुलाकात यशवंत से हुई तो यशवंत सिंह को मजाक में बोला भाई मुझे काम दे दो? तो यशवंत ने जवाब दिया, आप नौकरी के लायक नहीं है हम लोग मिल के किसी विषय पर काम करते हैं। मीडिया में 11 साल काम करते हुए हो गए हैं तो ये समझते देर नहीं लगी आखिर ये यशवंत सिंह क्या काम करवाना चाहता है। अगर भडास 4मीडिया.कॉम को देखेंगे तो साइट विज्ञापन के नाम पर जीरो है, फिर कैसे चलती है खबरों की कालाबाजारी की दुकान।  आखिर कौन मसीहा है, जो इनके खर्चों को देता है और क्यों देता है।
मैं पिछले 11 साल से मीडिया में हूं। अभी तक साक्षात्कार डाट कॉम ब्लॉगर पर चला रहा हूं। मुझे अभी तक मसीहा नहीं मिला है अगर मिलता है तो तुरंत इतला कर दूंगा। मीडिया के  कालाबाजारियों पर रौशनी  डालने जरुरत है। अभी बहुत कुछ उजागर होना बाकी है जरा रखो तसल्ली। पिक्चर तो अभी बाकी है मेरे दोस्त।  
लेखक सुशील गंगवार पिछले 11 वर्षों से प्रिंट, वेब, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए काम कर रहे हैं। यह लेख उनके ब्‍लॉग साक्षात्कार से साभार लेकर प्रकाशित किया जा रहा है। सुशील से संपर्क 09167618866 के जरिए किया जा सकता है।

Comments

  1. ummid hai ki ase achche achche nezs apke davara pata chalti rahegi................................................................................................

    ReplyDelete
  2. ईश्वर करे आपको आपका मसीहा जल्दी मिल जाये ताकि लोक तंत्र के चौथे स्तंभ में एक धब्बा और लग जाये
    जनता तो देख हे रही हे देश की दुर्दशा अब आप लोग भी हिम्मत हार कर समर्पण कर दे ......

    यह कितना आसान हे !
    यदि आप ईश्वर के परिवार गवर्नमेंट के सामने समर्पण कर देते हे
    तब –जेसा की हमने हमेशा देखा हे – इतिहास अपने आप को दोहराता हे
    ईश्वर और गवर्नमेंट के द्वन्द के बीच ईश्वर की सर्वश्रेष्ट कृति मानव की दुर्गति होना अवश्यम्भावी हे
    आज भारत का हर सीधा साधा आम नागरिक हताशा और कुंठा का शिकार हे
    हमें अपनी लड़ाई की धार कुंद नहीं होने देनी हे
    और इस लड़ाई में जीतने के लिए हमें केवल समर्पण करने से बचना हे
    ईश्वर के परिवार गवर्नमेंट के सामने समर्पण को बंद कीजये
    तथाकथित मसीहा की तलाश बंद कीजिये आप ही अपने मसीहा हे ... आमीन

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

गयासुद्दीन गाजी के पोते थे पंडित जवाहर लाल नेहरू

    जम्मू-कश्मीर में आए महीनों हो गए थे, एक बात अक्सर दिमाग में खटकती थी कि अभी तक नेहरू के खानदान का कोई क्यों नहीं मिला, जबकि हमने किताबों में पढ़ा था कि वह कश्मीरी पंडित थे।  नाते- रिश्तेदार से लेकर दूरदराज तक में से कोई न कोई नेहरू खानदान का तो मिलना ही चाहिए था। नेहरू  राजवंश कि खोज में सियासत के पुराने खिलाडिय़ों से मिला लेकिन जानकारी के नाम पर मोतीलाल नेहरू  के पिता गंगाधर नेहरू का नाम ही सामने आया। अमर उजाला दफ्तर के नजदीक बहती तवी के किनारे  पहुंचकर एक दिन इसी बारे में सोच रहा था तो ख्याल आया कि जम्मू-कश्मीर वूमेन कमीशन की सचिव  हाफीजा मुज्जफर से मिला जाए, शायद वह कुछ मदद कर सके। अगले दिन जब आफिस से हाफीजा के  पास पहुंचा तो वह सवाल सुनकर चौंक गई। बोली पंडित जी आप पंडित नेहरू के वंश का पोस्टमार्टम करने  आए हैं क्या? कश्मीरी चाय का आर्डर देने के बाद वह अपने बुक रैक से एक किताब निकाली, वह थी रॉबर्ट  हार्डी एन्ड्रूज कि किताब "ए लैम्प फार इंडिया- द स्टोरी ऑफ मदाम पंडित।" उस किताब मे तथाकथित  गंगाधर का चित्र छपा था, जिसके अनुसार

प्रेम न किया, तो क्या किया

     ..... "प्रेम" और "रिश्तों" के तमाम नाम और अंदाज हैं, ऐसा बहुत बार हुआ कि प्रेम और रिश्तों को कोई नाम देना संभव न हो सका. लाखों गीत, किस्से और ग्रन्थ लिखे, गाए और फिल्मों में दिखाए गए. इस विषय के इतने पहलू हैं कि लाखों-लाख बरस से लिखने वालों की न तो कलमें घिसीं और ना ही उनकी स्याही सूखी.        "प्रेम" विषय ही ऐसा है कि कभी पुराना नहीं होता. शायद ही कोई ऐसा जीवित व्यक्ति इस धरती पे हुआ हो, जिसके दिल में प्रेम की दस्तक न हुयी हो. ईश्वरीय अवतार भी पवित्र प्रेम को नकार न सके, यह इस भावना की व्यापकता का परिचायक है. उम्र और सामाजिक वर्जनाएं प्रेम की राह में रोड़ा नहीं बन पातीं, क्योंकि बंदिशें सदैव बाँध तोड़ कर सैलाब बन जाना चाहती हैं.     आज शशि कपूर और मौसमी चटर्जी अभिनीत और मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर का गाया हुआ हिन्दी फिल्म "स्वयंवर" के एक गीत सुन रहा था- "मुझे छू रही हैं, तेरी गर्म साँसें.....". इस गीत के मध्य में रफ़ी की आवाज में शशि कपूर गाते हैं कि - लबों से अगर तुम बुला न सको तो, निगाहों से तुम नाम लेकर बुला लो. जिसके

दशानन को पाती

  हे रावण! तुम्हें अपने  समर्थन में और प्रभु श्री राम के समर्थकों को खिझाने के लिए कानपुर और बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाक़ों में कही जाने वाली निम्न पंक्तियाँ तो याद ही होंगी- इक राम हते, इक रावन्ना।  बे छत्री, बे बामहन्ना।। उनने उनकी नार हरी। उनने उनकी नाश करी।। बात को बन गओ बातन्ना। तुलसी लिख गए पोथन्ना।।      1947 में देश को आज़ादी मिली और साथ में राष्ट्रनायक जैसे राजनेता भी मिले, जिनका अनुसरण और अनुकृति करना आदर्श माना जाता था। ऐसे माहौल में, कानपुर और बुंदेलखंड के इस परिक्षेत्र में ऐसे ही, एक नेता हुए- राम स्वरूप वर्मा। राजनीति के अपने विशेष तौर-तरीक़ों और दाँवों के साथ ही मज़बूत जातीय गणित के फलस्वरूप वो कई बार विधायक हुए और उन्होंने एक राजनीतिक दल भी बनाया। राम स्वरूप वर्मा ने उत्तर भारत में सबसे पहले रामायण और रावण के पुतला दहन का सार्वजनिक विरोध किया। कालांतर में दक्षिण भारत के राजनीतिक दल और बहुजन समाज पार्टी द्वारा उच्च जातीय सँवर्ग के विरोध में हुए उभार का पहला बीज राम स्वरूप वर्मा को ही जाना चाहिए। मेरे इस नज़रिए को देखेंगे तो इस क्षेत्र में राम मनोहर लोहिया, मुलायम सिंह यादव