विकास और प्रकृति के बीच समन्वय आवश्यक-वंदना शिवा
कानपुर. कानूनी मदद से अमेरिकी पेटेंट से विश्व में भारतीय आयुर्वेदिक ज्ञान की रक्षा के लिए अनवरत संघर्ष करने वाली वंदना शिवा ने आई.आई.टी. में दिए गए अपने भाषण में कहा देश के नीतिनियामकों अब ऐसी नीतियां बनानी अति आवश्यक हो गई हैं जो विकास और प्राकृतिक संपदा के बीच सह समन्वय बनाए रखे. उत्तरांचल को ऊर्जा प्रदेश बनाने के फेर में वहाँ के बढते प्राकृतिक असंतुलन को उन्होंने खेदजनक कहा.ऐसी ही नीतियां देश के अन्य प्रदेशों में भी अपनाया जाना अत्यंत निन्दनीय और दुखद है. उन्होंने किसानों की आत्मघाती प्रवृत्ति उन्हीं प्रदेशों में अधिक बतायी जहां खेती में अधिकाधिक प्रयोग किये जा रहे हैं. ट्रांसजेनिक और कैशक्राप के मोह में फंस कर किसान ऋण के दुष्चक्र में आ जाते हैं जिसका अंतिम हल उन्हें आत्महत्या के रूप दिखने लगता है.उन्होंने भारतीय स्थितियों के अनुसार फसल-चक्र के चयन पर जोर दिया जिससे प्रकृति के संतुलन के साथ कोई खिलवाड न हो.अंधाधुंध धन कमाने के खेल में फंस कर महेंगे बीज और कीटनाशक प्रयोग में लाकर खेती योग्य भूमि के उपजाऊपन में आने वाली कमी को उन्होंने एक लाइलाज बिमारी बताया.
बंद ए. सी. कमरों से निकल कर नीतियां बनाई जाएँ- आर.वी.त्रिपाठी
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रो. राजा वशिष्ठ त्रिपाठी ने कानपुर के खराब हालातों पर दुःख व्यक्त करते हुए कहा शहर किसी भी सूरत में रहने योग्य नहीं रह गया है. खुदी सड़कों और जाम से जूझकर आई.आई.टी तक आये डा. त्रिपाठी ने कहा की गंगा के किनारे बसे इस शहर में गंगा की भविष्य की नीतिओं के निर्माण के लिए बुलाई गयी इस बैठक के लिए स्थान का चयन उपयुक्त नहीं था. ऐसे आयोजन समस्या के स्थल पर भरी जन समूह की उपस्थिति में होने चाहिए थे. पूरे देश में सभी प्रकार की नीतिओं का निर्माण इसी प्रकार से किये जाने को उन्होंने समस्या के प्रति सही नहीं कहा. युवा शक्ति के सही उपयोग की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा अनावश्यक अंग्रेजियत और तकनीक के अंधाधुंध प्रयोग के कारन देश में मूल्यों का छरण तेजी से होता जा रहा है.
जन-सहयोग और सुझावों का स्वागत है- डा. विनोद तारे
राष्ट्रीय गंगा रिवर बेसिन अथोरिटी के तकनीकी प्रमुख डा. विनोद तारे ने अपने उद्-बोधन में यह सूचित किया की अब आम भारत वासी भी गंगा के राष्ट्रीय स्वरुप को बनाये रखने के लिए अपने सुझाव और सहयोग को ‘गंगापीडीया.काम’ के माध्यम से दे सकता है. इस साईट में पढ़ने और लिखने की सुविधा उपलब्ध है. एन.जी.आर.बी.ए. की सभी योजनाओं को भी इस के मध्यम से जाना जा सकता है. आम जन सरकारी नीतियों के निर्माण में इस प्रकार से अतुलनीय योगदान दे सकते हैं.कानपुर सहित गंगा और अन्य नदियों के किनारे तेजी से बढते जा रहे नगरीकरण को सही नहीं मानते हुए डा. तारे ने सुनियोजित नगरीकरण की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने नदियों के दोनों ओर ५००-५०० मीटर तक के अति संवेदनशील क्षेत्र को पूरी तरह से संरक्षित करने के लिए सघन और बहुवार्षिक वनीकरण पर जोर दिया.
छोटी नदियां और झील-तालाब अति आवश्यक – ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह
सेमीनार में हिस्सा लेने आये वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह ने गंगा की सफाई और उसके अस्तित्व के संकट का हल सुझाते हुए कहा गंगा जैसी विशाल नदी के विकास में छोटी नदियों का बड़ा योगदान है. यमुना,गोमती,रामगंगा,सई, पांडु सहित सैकड़ों अन्य नदियों के संरक्षण की आवश्यकता है. राजेन्द्र सिंह के नदी संकल्प पत्र को बताते हुए श्री सिंह कहते हैं की बड़ी नदी कभी अकेले बड़ी नहीं बनती है. उसकी तलहटी में स्थित छोटी नदियाँ और झील-तालाबों का इसके विकास में सहयोग होता है. आज आवश्यकता है की जल-संरक्षण किया जाये और जल-श्रोतों की साफ़-सफाई पर भी ध्यान रखा जाये. डा. एस.एन.सुब्बाराव को १४ जनवरी पांडु नदी के संघर्ष में आमंत्रित करते हुए श्री सिंह ने जानकारी दी अब कानपुर के शहरीकरण की कीमत चुकाने वाली छोटी नदी पांडु में पनकी पावर हाउस की राख सहित बहाए जाने वाले नालों को रोकने के लिए सक्रिय संघर्ष किया जायेगा.
कानपुर. कानूनी मदद से अमेरिकी पेटेंट से विश्व में भारतीय आयुर्वेदिक ज्ञान की रक्षा के लिए अनवरत संघर्ष करने वाली वंदना शिवा ने आई.आई.टी. में दिए गए अपने भाषण में कहा देश के नीतिनियामकों अब ऐसी नीतियां बनानी अति आवश्यक हो गई हैं जो विकास और प्राकृतिक संपदा के बीच सह समन्वय बनाए रखे. उत्तरांचल को ऊर्जा प्रदेश बनाने के फेर में वहाँ के बढते प्राकृतिक असंतुलन को उन्होंने खेदजनक कहा.ऐसी ही नीतियां देश के अन्य प्रदेशों में भी अपनाया जाना अत्यंत निन्दनीय और दुखद है. उन्होंने किसानों की आत्मघाती प्रवृत्ति उन्हीं प्रदेशों में अधिक बतायी जहां खेती में अधिकाधिक प्रयोग किये जा रहे हैं. ट्रांसजेनिक और कैशक्राप के मोह में फंस कर किसान ऋण के दुष्चक्र में आ जाते हैं जिसका अंतिम हल उन्हें आत्महत्या के रूप दिखने लगता है.उन्होंने भारतीय स्थितियों के अनुसार फसल-चक्र के चयन पर जोर दिया जिससे प्रकृति के संतुलन के साथ कोई खिलवाड न हो.अंधाधुंध धन कमाने के खेल में फंस कर महेंगे बीज और कीटनाशक प्रयोग में लाकर खेती योग्य भूमि के उपजाऊपन में आने वाली कमी को उन्होंने एक लाइलाज बिमारी बताया.
बंद ए. सी. कमरों से निकल कर नीतियां बनाई जाएँ- आर.वी.त्रिपाठी
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में कार्यरत प्रो. राजा वशिष्ठ त्रिपाठी ने कानपुर के खराब हालातों पर दुःख व्यक्त करते हुए कहा शहर किसी भी सूरत में रहने योग्य नहीं रह गया है. खुदी सड़कों और जाम से जूझकर आई.आई.टी तक आये डा. त्रिपाठी ने कहा की गंगा के किनारे बसे इस शहर में गंगा की भविष्य की नीतिओं के निर्माण के लिए बुलाई गयी इस बैठक के लिए स्थान का चयन उपयुक्त नहीं था. ऐसे आयोजन समस्या के स्थल पर भरी जन समूह की उपस्थिति में होने चाहिए थे. पूरे देश में सभी प्रकार की नीतिओं का निर्माण इसी प्रकार से किये जाने को उन्होंने समस्या के प्रति सही नहीं कहा. युवा शक्ति के सही उपयोग की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा अनावश्यक अंग्रेजियत और तकनीक के अंधाधुंध प्रयोग के कारन देश में मूल्यों का छरण तेजी से होता जा रहा है.
जन-सहयोग और सुझावों का स्वागत है- डा. विनोद तारे
राष्ट्रीय गंगा रिवर बेसिन अथोरिटी के तकनीकी प्रमुख डा. विनोद तारे ने अपने उद्-बोधन में यह सूचित किया की अब आम भारत वासी भी गंगा के राष्ट्रीय स्वरुप को बनाये रखने के लिए अपने सुझाव और सहयोग को ‘गंगापीडीया.काम’ के माध्यम से दे सकता है. इस साईट में पढ़ने और लिखने की सुविधा उपलब्ध है. एन.जी.आर.बी.ए. की सभी योजनाओं को भी इस के मध्यम से जाना जा सकता है. आम जन सरकारी नीतियों के निर्माण में इस प्रकार से अतुलनीय योगदान दे सकते हैं.कानपुर सहित गंगा और अन्य नदियों के किनारे तेजी से बढते जा रहे नगरीकरण को सही नहीं मानते हुए डा. तारे ने सुनियोजित नगरीकरण की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने नदियों के दोनों ओर ५००-५०० मीटर तक के अति संवेदनशील क्षेत्र को पूरी तरह से संरक्षित करने के लिए सघन और बहुवार्षिक वनीकरण पर जोर दिया.
छोटी नदियां और झील-तालाब अति आवश्यक – ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह
सेमीनार में हिस्सा लेने आये वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह ने गंगा की सफाई और उसके अस्तित्व के संकट का हल सुझाते हुए कहा गंगा जैसी विशाल नदी के विकास में छोटी नदियों का बड़ा योगदान है. यमुना,गोमती,रामगंगा,सई, पांडु सहित सैकड़ों अन्य नदियों के संरक्षण की आवश्यकता है. राजेन्द्र सिंह के नदी संकल्प पत्र को बताते हुए श्री सिंह कहते हैं की बड़ी नदी कभी अकेले बड़ी नहीं बनती है. उसकी तलहटी में स्थित छोटी नदियाँ और झील-तालाबों का इसके विकास में सहयोग होता है. आज आवश्यकता है की जल-संरक्षण किया जाये और जल-श्रोतों की साफ़-सफाई पर भी ध्यान रखा जाये. डा. एस.एन.सुब्बाराव को १४ जनवरी पांडु नदी के संघर्ष में आमंत्रित करते हुए श्री सिंह ने जानकारी दी अब कानपुर के शहरीकरण की कीमत चुकाने वाली छोटी नदी पांडु में पनकी पावर हाउस की राख सहित बहाए जाने वाले नालों को रोकने के लिए सक्रिय संघर्ष किया जायेगा.
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