बात उस समय की है, जब हम मिडिल कक्षाओं के छात्र हुआ करते थे। हमारे उस स्कूल में उन दिनों घंटा नहीं हुआ करता था। घंटी के स्थान पर मास्टर जी स्वयं बजा करते थे, मेरा मतलब है कि जब मास्टर जी खाट पर लेट जाते थे, तो समझो छुट्टी की घंटी बज गई।
उन दिनों मास्टर जी प्रायः विद्वान होते थे, जैसे आजकल के नेता लोग बाहुबली होते हैं। इतिहास पढ़ाते समय मास्टर जी मुहावरेदार भाषा बोलते थे। मामला लाखों वर्ष पहले से शुरू होता और सैकड़ों साल पर आकर टिक जाता। अकबर के बारे में पढ़ाते हुए मास्टर जी कहते, लाखों वर्ष पहले अकबर महान हुआ था। बाद में उन्हें लगता कि लाखों साल कुछ ज्यादा ही हो गए, तो वह हजारों और फिर थोड़ी देर बाद सैकड़ों वर्षों पर उतर आते थे।
मास्टर जी का मुहावरा प्रयोग अद्भुत था। वह चाहते, तो एक मुहावरा कोश लिख सकते थे, लेकिन उन दिनों मास्टरों द्वारा किताब लिखने और उससे पैसे कमाने की परंपरा नहीं थी, इसलिए मास्टर जी अपने मुहावरों का प्रयोग शिक्षण कार्य में करते थे। भाषा, गणित, इतिहास, भूगोल आदि सभी विषय मुहावरे के जरिये ही पढ़ाए जाते। परीक्षा में अच्छे नंबर के लिए उत्तर लिखते समय मुहावरों का प्रयोग करने की सीख हमें मास्टर जी से ही मिली। इतिहास में मास्टर जी ने मुहावरों का ऐसा घालमेल किया कि उसकी तुलना सिर्फ आज की राजनीति में अपराध के घालमेल से ही की जा सकती है।
मास्टर जी द्वितीय विश्वयुद्ध को बड़े मनोयोग से पढ़ाते। ‘समुद्र में एक तरफ जापान का बेड़ा, तो दूसरी तरफ अमेरिका का युद्धपोत। दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ और चारों ओर धूल छा गई।’ मैंने कहा, ‘माट्साब, समुद्र में युद्ध हो रहा था, तो धूल कहां से आ गई।’ मास्टर जी नाराज होकर बोले, ‘चुप, धूल छाना मुहावरा है। हर युद्ध में धूल छाना मुहावरा का प्रयोग कर सकते हो।’ खैर साहब, हम तो मुहावरे का प्रयोग हर जगह नहीं कर पाए, मगर नेता लोग न जाने कहां से हमारे मास्टर जी का मुहावरा सीख गए। लाखों हजार करोड़ के घोटाले को वे मामूली घोटाला बताते हैं। लाखों से सैकड़ों में आने की कला नेताओं ने हमारे मास्टर जी से सीखी है।
कोई भी घोटाला होता है, तो सरकार कहती है, ‘दोषियों को अवश्य सजा मिलेगी।’ सरकार यह वाक्य मुहावरे के तौर पर कहती है, ताकि उसे अच्छे नंबर मिलें। इसी तरह घोटाला करने वाला भी ‘मैं निर्दोष हूं’ नामक मुहावरे का प्रयोग करता है। ऐसे ही, आज तक किसी भी घोटाले में कोई बड़ी मछली नहीं फंसी। ‘मछली फंसना’ भी मुहावरा ही है। और इस तरह हमारे मास्टर जी आज की राजनीति में पूरी तरह प्रासंगिक हो उठे हैं
अरविन्द तिवारी
अमर उजाला में सम्पादकिय पृष्ठ पर नुक्कड नाम से व्यंग आता है उसमें अरविन्द का एक व्यंग
उन दिनों मास्टर जी प्रायः विद्वान होते थे, जैसे आजकल के नेता लोग बाहुबली होते हैं। इतिहास पढ़ाते समय मास्टर जी मुहावरेदार भाषा बोलते थे। मामला लाखों वर्ष पहले से शुरू होता और सैकड़ों साल पर आकर टिक जाता। अकबर के बारे में पढ़ाते हुए मास्टर जी कहते, लाखों वर्ष पहले अकबर महान हुआ था। बाद में उन्हें लगता कि लाखों साल कुछ ज्यादा ही हो गए, तो वह हजारों और फिर थोड़ी देर बाद सैकड़ों वर्षों पर उतर आते थे।
मास्टर जी का मुहावरा प्रयोग अद्भुत था। वह चाहते, तो एक मुहावरा कोश लिख सकते थे, लेकिन उन दिनों मास्टरों द्वारा किताब लिखने और उससे पैसे कमाने की परंपरा नहीं थी, इसलिए मास्टर जी अपने मुहावरों का प्रयोग शिक्षण कार्य में करते थे। भाषा, गणित, इतिहास, भूगोल आदि सभी विषय मुहावरे के जरिये ही पढ़ाए जाते। परीक्षा में अच्छे नंबर के लिए उत्तर लिखते समय मुहावरों का प्रयोग करने की सीख हमें मास्टर जी से ही मिली। इतिहास में मास्टर जी ने मुहावरों का ऐसा घालमेल किया कि उसकी तुलना सिर्फ आज की राजनीति में अपराध के घालमेल से ही की जा सकती है।
मास्टर जी द्वितीय विश्वयुद्ध को बड़े मनोयोग से पढ़ाते। ‘समुद्र में एक तरफ जापान का बेड़ा, तो दूसरी तरफ अमेरिका का युद्धपोत। दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ और चारों ओर धूल छा गई।’ मैंने कहा, ‘माट्साब, समुद्र में युद्ध हो रहा था, तो धूल कहां से आ गई।’ मास्टर जी नाराज होकर बोले, ‘चुप, धूल छाना मुहावरा है। हर युद्ध में धूल छाना मुहावरा का प्रयोग कर सकते हो।’ खैर साहब, हम तो मुहावरे का प्रयोग हर जगह नहीं कर पाए, मगर नेता लोग न जाने कहां से हमारे मास्टर जी का मुहावरा सीख गए। लाखों हजार करोड़ के घोटाले को वे मामूली घोटाला बताते हैं। लाखों से सैकड़ों में आने की कला नेताओं ने हमारे मास्टर जी से सीखी है।
कोई भी घोटाला होता है, तो सरकार कहती है, ‘दोषियों को अवश्य सजा मिलेगी।’ सरकार यह वाक्य मुहावरे के तौर पर कहती है, ताकि उसे अच्छे नंबर मिलें। इसी तरह घोटाला करने वाला भी ‘मैं निर्दोष हूं’ नामक मुहावरे का प्रयोग करता है। ऐसे ही, आज तक किसी भी घोटाले में कोई बड़ी मछली नहीं फंसी। ‘मछली फंसना’ भी मुहावरा ही है। और इस तरह हमारे मास्टर जी आज की राजनीति में पूरी तरह प्रासंगिक हो उठे हैं
अरविन्द तिवारी
अमर उजाला में सम्पादकिय पृष्ठ पर नुक्कड नाम से व्यंग आता है उसमें अरविन्द का एक व्यंग
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