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जनता और मीडिया के संघर्ष की जीत

दिव्या केस में नपे पुलिस अफसर

नीलम , दिव्या, कविता, वन्दना और शीलू सहित न जाने कितनी बालिग-नाबालिग कन्याओं के साथ घटित यौन-शोषण और अंतत: हत्या तक किए गए जघन्यतम अपराधों के लिए जाना जाने वाला विगत वर्ष अपने साथ ही कई गहरे जख्म मानवता और भारतीय संस्कृति पर दे गया था. नया वर्ष परत-दर-परत खुलासे और कार्यवाहियों का वर्ष जाना जाने वाला है. एक ही दिन शीलू के बलात्कारी विधायक की गिरफ्तारी व कानपुर के बहुचर्चित दिव्या हत्याकाण्ड के मामले में लापरवाही बरतने के आरोपी पुलिस के आला अधिकारियों पर गिरी गाज एक सुखद एहसास देने वाला साबित हुआ.
दिव्याकाण्ड में कत्र्तव्य की शिथिलता बरतने के आरोपी तत्कालीन डी०आई०जी प्रेम प्रकाश, एस०पी० (ग्रामीण) लालबहादुर, कल्याणपुर क्षेत्राधिकारी लक्ष्मी निवास मिश्र व कल्याणपुर थानाध्यक्ष अनिल कुमार सिंह पर अपराधियों को श्रय देने व केस की सही जांच न करने के कारण गाज गिरी है. इसी क्रम में नरैनी बांदा के बसपा विधायक पुरूषोत्तम नरेश द्विवेदी को गिरफ्तार कर प्रदेश सरकार ने संकेत देने में काफी देर की है कि दोषी चाहे कितना ही शक्तिशाली व उच्च पदस्थ क्यों न हो कानून से ऊपर नहीं. दोनों घटनाओं में जनता के विरोध को मिले मीडिया के स्वर ने अंजाम  तक पहुंचाया. यद्यपि कानपुर में आन्दोलनरत जनता व दिव्या की मां सहित प्रबुद्ध जन-मानस में यह प्रश्न आज भी कौंध रहा है कि कल्यानपुर चौकी इन्चार्ज शालिनी सहाय को क्लीन चिट क्यों दी गयी? उसके द्वारा किये गये पुलिसिया जुल्म की कहानी क्षेत्र की जनता की जुबानी कहने में आम व खास सभी शर्मसार होते हैं. मुन्ना ही नहीं किन्नर समेत पकड़े गये तीन-चार युवक तो पुलिस की खाकी वर्दी से इस तरह डर चुके हैं कि वे होमगार्ड तक को देखकर कांपने लगते हैं. पर अन्त भला तो सब भला. भले ही पूरा न सही पर काफी हद तक सन्तोषजनक है.1

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