...... अच्छा ज़रा एक बार फिर से दिमाग पर जोर देते हुए सोचिये , (अगर आपके पास हो तो ). क्या हम कन्पुरिओं को किसी भी प्रकार कि शुभकामनाओं कि जरूरत है क्या? मुझे तो नहीं लगती. कारण ये है कि हम सभी भगवान के सबसे प्यारे बंदे हैं. हम कह रहे हैं त...ो ठीक ही होगा, ये न समझिए, इसका कारण समझिए. कभी इकबाल ने लिखा होगा........'कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, ........'
मैं कोई बौधिक नहीं दे रहा हूँ. बस छोटी सी जानकारी दे रहा हूँ कि देश प्रदेश कि सरकारों में पिछले 63 से अधिक साल कि आजादी के बावजूद कानपुर का कोई स्वरुप न बदलना और हमारा खुद का कोई राष्ट्रीय और प्रादेशिक नेता न होने के बावजूद वैसे का वैसा स्वरुप बने रहना ही तो हमारी विशेषता है. कोई आर. विक्रम सिंह हमें नहीं बदल सकते. हम उनके कहने पे साफ़-सुथरे होने से रहे. सड़क पे जब झम्म कि आवाज के साथ गुप्ताइन चाची कि महरी सीमा पोलिथीएँ में कूडा फेंकती है तब हम सब जानते हैं कि बारह बज गए हैं. ऐसे शहर में जहां गली की शोभा बढाते हुए लड़के खड़े ही इसी लिए होते हैं कि रूबी चोकलेट खा कर जब रैपर फेंकने बाहर आएगी तो एक बार फिर देख लेंगे. ये सुख अपने इन साहब कि वजह छीना जा रहा है. या फिर यूं कहें कि लुटा जा रहा है.
अपने शहर में नेता जैसे ही अन्टू मिश्रा से अनंत मिश्र हो जाता है वैसे ही दिक्कत आ जाता है. जैसे कल मेरे साथ आ गयी थी.हमारे गोव में आम लोग बिलकुल भी असामाजिक और एंटी सोशल एलीमेंट व्यक्ति को कहते हैं 'जाओ, तुम्हारे दरवाजे कोई मूतने भी नहीं आता'. अपने मंत्री जी ने सोचा कि कोई हमें ऐसा न कहे इसलिए कानपुर के सी.दी.ओ. नरेन्द्र शंकर पान्द्देय के माध्यम से अपने घर के सामने ही एक शौचालय बनवा लिया. लोग खूब मूतें उनके दर्वाजे पे.
कल हमने सोचा कि हम भी मूत कर उनकी सामाजिकता में वृधि कर दें. पर वो वास्तव में वैसे ही हैं . मतलब बड़े चूजी हैं , सबको नहीं मूतने देते.इसलिए कौन उनके सामने मूते . मूतने के भी पैसे लगवा दिए , अब फ्री में मूतो भला. लगता है कि आत्महत्या करने वाला वकील विनय यादव भी यहाँ मूत नहीं पाया था. यदि उसने मूत दिया होता तो हंगामा पहले ही हो जाता .पर थोड़ा गलती कर गया नहीं तो मंत्री जी डाइरेक्ट गंगा जी में मूत रहे होते जो जेल नाले से निकल कर सीधे मिल जाता.उसने मरने के पहले सुसाइड नोट में ऐसा आग मूता की मंत्री जी और उनके परिवारी जनों सहित उनके चंगू-मंगुओं का भी मूत बंद हो गया था. आपका भविश्य अब आपके हाथ में सुरक्षित नहीं और जेब पर भैया कि निगाह है अब ऐसे हालातों में तो मूत कैसे निकले.
हम डा. विनोद तारे के द्वारा विकसित किये गए ग्रीन ट्वायलेट में अपनी दोनों बेकार समझी जाने वाली चीजों कि बहुमूल्यता के बारे में सुन आये थे. ज्यादा ज्ञान कि जरूरत ही नहीं है इस शहर में . अब देखिये इतने सरकारी विरोध और राजनेताओं कि उपेक्षा के बाद भी हम वैसे ही हैं बिलकुल भी नहीं बदले. अरे हम एकदम बदहाल हैं , बिलकुल भी गरीबी रेखा से ऊपर नहीं आ पा रहे हैं. कोई भी आपदा हमें पदा नहीं पा रही है फिर वो चाहे अन्टू जैसा बीमारी फैलाने वाला मंत्री हो हो या श्रीप्रकाश जैसा हवाई मंत्री हो या फिर प्रखर बाबा जैसा चालू-चक्रम बाबा ही क्यों न हो........अंत में फिर एक बार' क्या बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी...... कारण आनंदेश्वर , पनकी, मकनपुर , तपेश्वरी, गुमटी में न ढूढो अगर ढूढना है तो किसी भी मलिन बस्ती में जाकर देखो कि ऍम ऐसे क्यों हैं मरते और मिटते क्यों नहीं हैं.
मैं कोई बौधिक नहीं दे रहा हूँ. बस छोटी सी जानकारी दे रहा हूँ कि देश प्रदेश कि सरकारों में पिछले 63 से अधिक साल कि आजादी के बावजूद कानपुर का कोई स्वरुप न बदलना और हमारा खुद का कोई राष्ट्रीय और प्रादेशिक नेता न होने के बावजूद वैसे का वैसा स्वरुप बने रहना ही तो हमारी विशेषता है. कोई आर. विक्रम सिंह हमें नहीं बदल सकते. हम उनके कहने पे साफ़-सुथरे होने से रहे. सड़क पे जब झम्म कि आवाज के साथ गुप्ताइन चाची कि महरी सीमा पोलिथीएँ में कूडा फेंकती है तब हम सब जानते हैं कि बारह बज गए हैं. ऐसे शहर में जहां गली की शोभा बढाते हुए लड़के खड़े ही इसी लिए होते हैं कि रूबी चोकलेट खा कर जब रैपर फेंकने बाहर आएगी तो एक बार फिर देख लेंगे. ये सुख अपने इन साहब कि वजह छीना जा रहा है. या फिर यूं कहें कि लुटा जा रहा है.
अपने शहर में नेता जैसे ही अन्टू मिश्रा से अनंत मिश्र हो जाता है वैसे ही दिक्कत आ जाता है. जैसे कल मेरे साथ आ गयी थी.हमारे गोव में आम लोग बिलकुल भी असामाजिक और एंटी सोशल एलीमेंट व्यक्ति को कहते हैं 'जाओ, तुम्हारे दरवाजे कोई मूतने भी नहीं आता'. अपने मंत्री जी ने सोचा कि कोई हमें ऐसा न कहे इसलिए कानपुर के सी.दी.ओ. नरेन्द्र शंकर पान्द्देय के माध्यम से अपने घर के सामने ही एक शौचालय बनवा लिया. लोग खूब मूतें उनके दर्वाजे पे.
कल हमने सोचा कि हम भी मूत कर उनकी सामाजिकता में वृधि कर दें. पर वो वास्तव में वैसे ही हैं . मतलब बड़े चूजी हैं , सबको नहीं मूतने देते.इसलिए कौन उनके सामने मूते . मूतने के भी पैसे लगवा दिए , अब फ्री में मूतो भला. लगता है कि आत्महत्या करने वाला वकील विनय यादव भी यहाँ मूत नहीं पाया था. यदि उसने मूत दिया होता तो हंगामा पहले ही हो जाता .पर थोड़ा गलती कर गया नहीं तो मंत्री जी डाइरेक्ट गंगा जी में मूत रहे होते जो जेल नाले से निकल कर सीधे मिल जाता.उसने मरने के पहले सुसाइड नोट में ऐसा आग मूता की मंत्री जी और उनके परिवारी जनों सहित उनके चंगू-मंगुओं का भी मूत बंद हो गया था. आपका भविश्य अब आपके हाथ में सुरक्षित नहीं और जेब पर भैया कि निगाह है अब ऐसे हालातों में तो मूत कैसे निकले.
हम डा. विनोद तारे के द्वारा विकसित किये गए ग्रीन ट्वायलेट में अपनी दोनों बेकार समझी जाने वाली चीजों कि बहुमूल्यता के बारे में सुन आये थे. ज्यादा ज्ञान कि जरूरत ही नहीं है इस शहर में . अब देखिये इतने सरकारी विरोध और राजनेताओं कि उपेक्षा के बाद भी हम वैसे ही हैं बिलकुल भी नहीं बदले. अरे हम एकदम बदहाल हैं , बिलकुल भी गरीबी रेखा से ऊपर नहीं आ पा रहे हैं. कोई भी आपदा हमें पदा नहीं पा रही है फिर वो चाहे अन्टू जैसा बीमारी फैलाने वाला मंत्री हो हो या श्रीप्रकाश जैसा हवाई मंत्री हो या फिर प्रखर बाबा जैसा चालू-चक्रम बाबा ही क्यों न हो........अंत में फिर एक बार' क्या बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी...... कारण आनंदेश्वर , पनकी, मकनपुर , तपेश्वरी, गुमटी में न ढूढो अगर ढूढना है तो किसी भी मलिन बस्ती में जाकर देखो कि ऍम ऐसे क्यों हैं मरते और मिटते क्यों नहीं हैं.
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