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भारत मिश्र से कितना दूर ?

दोस्तों, 
देश के हालातों में और गिरावट आ रही है. तहलका मैग्जीन में कुछ नाम उजागर किये हैं. अभी भी हमारे देश में मिश्र जैसे हालात नहीं बने हैं. हमारा देश एक प्रौढ़ लोकतंत्र है. परन्तु नक्सलवाद इसी तरह की घटनाओं की आहट है.....

देश के उच्च पदस्थ राजनीतिज्ञों को इस मिश्र की आहट को सुनना और समझना चाहिए. प्रदेश की मुखिया के दौरे के दौरान परेशान-हाल... शोषित दलित महिलाओं का अपनी बात कहने के लिए किया जाने वाला संघर्ष और आला अधिकारिओं द्वारा उन्हें रोकने का किया जाने वाला प्रयास ऐसे हालात कभी भी पैदा कर सकता है. जनहितकारी सरकारें और उनके तौर-तरीकों से ही लोकतंत्र जीवित और दीर्घजीवी होता है. यही भारत कि पूँजी ही जो अनाम राजनेताओं के द्वारा लूटी जा रही है. प्रदेश में सत्ताधारी विधायकों और मंत्रिओं के काले कारनामों को न सुनकर आवाज दबाने के लिए की गयी कार्यवाहियां लोकतंत्र के लिए हितकर नहीं हैं. ऐसी ही घटनाएँ मिश्र जैसी स्थिति ला देते हैं.

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