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सुन मेरे चाचा, हाँ भतीजे


    ....कहते हैं, इतिहास खुद को दोहराता अवश्य है. पहली बार ये विभिन्न परिस्थितियों में घटता है, लेकिन दूसरी बार इसकी विद्रूप पुनरावृत्ति होती है. 

    जैसा कि हम सभी जानते हैं कि वर्तमान उत्तरप्रदेश अवध के राजा प्रभु श्रीराम के राज्य क्षेत्र का ह्रदय-स्थल रहा है. यहाँ के विभिन्न स्थल प्रभु राम की लीलाओं के गवाह रहे हैं. प्रभु की लीला को सर्वप्रथम महर्षि बाल्मीकि ने संकलित किया. आज देश की सभी भाषाओं में रामायण लिखी जा चुकी है, जो इसकी व्यापक स्वीकार्यता का परिचायक है. सामाजिक जीवन में सभी रिश्तों के कर्तव्य और मर्यादा के बारे में तुलसीदास की रामचरितमानस में विषद वर्णन है, जिनसे वर्तमान और आने वाली पीढियां प्रेरणा प्राप्त कर सकती हैं.

    प्रभु राम की गाथा में कई चाचा-भतीजों का उल्लेख मिलता है- सुग्रीव-अंगद, विभीषण-मेघनाद, लक्ष्मण-लव-कुश आदि, जिनमें अंगद ने अपने चाचा सुग्रीव का नेतृत्व मान लिया और मेघनाद से डरकर विभीषण कभी युद्ध के मैदान में सामने नहीं आया. इनमें से प्रभु राम के साथ बालपन से साथ रहे नागराज शेष के अवतार श्री लक्ष्मण जी के सहयोग, बलिदान और समर्पण की युगों तक  मिसाल दी जाती रहेंगी. लेकिन प्रभु राम के राजगद्दी सम्हालने के बाद किशोर लव-कुश द्वारा खेल-खेल में राजसूय यज्ञ के अश्व को पकड़ने पर चाचा लक्ष्मण जी को सेना सहित पराजित कर पेड़ से बाँध दिया था. इसके बाद भरत और शत्रुघ्न का भी मान-मर्दन लव-कुश द्वारा किया गया.

    अब आज के समय में आते हैं, सबसे ज्यादा बिकने वाली खबर अवध की सियासत में प्रभावी चाचा-भतीजे शिवपाल और अखिलेश यादव की है. शिवपाल ने भी अपने बड़े भाई को प्रदेश की राजनीति में स्थापित करने के संघर्ष में भरपूर सहयोग किया और खुद को भी स्थापित किया. 2012 से चल रही सियासी झंझट के विभिन्न आयाम सभी देख चुके हैं.  धोखा-विश्वास, छल-छद्म-प्रपंच, आरोप-प्रत्यारोप के साथ कभी दूर तो कभी पास का खेल चलता रहता है. अभी हाल में विधानसभा में विपक्ष के नेता और सपा मुखिया द्वारा चाचा को "आगे की सीट" का कम्पट दिखाया गया है. यद्यपि पूर्व की तरह ही भतीजे की चाल से चाचा बंधे हुए नजर आते हैं, लेकिन कहा जाता है कि वो ऐसे अभिमन्यु हैं, जिन्हें राजनीतिक चक्रव्यूह का सातवाँ द्वार भेदना आता है.

    देखना है, इतिहास खुद को दोहराये तो क्या परिणाम आते हैं.......

अरविन्द त्रिपाठी

15-09-2022

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