चुन्नू भी अपने मुँहबोले 'पंडित बाबा' को उन चमत्कारी बाबा के आने के बारे में बता चुका था। उसने बहुत ज़िद की, लेकिन पंडित बाबा पीपल के पेड़ के नीचे जमे बैठे सन्यासी से मिलने के लिए बिलकुल भी सहमत ना हुए।गाँव में सभी बच्चे, युवक, महिलाएँ और बूढ़े सरपट भागे जा रहे थे।
पंडित बाबा ने अपने जीवन में पचासी बसंत देखे थे, उनका अनुभव और व्यक्तित्व विशाल था। उन्हें ऐसे तमाशाई सिद्धों और महंतों पर बहुत या थोड़ा भी यक़ीन ना रह गया था। इसे यूँ समझिए कि गाँव-जवार में 'पंडित बाबा' के नाम से प्रसिद्ध राजीव मिश्र जी, ज्ञान और अनुभव के मामले में किसी इंसाइक्लोपीडिया से कम ना थे। देश को आज़ादी उनके जीवन में ही मिली थी। असल में, लोहिया, जयप्रकाश, लाल बहादुर, इंदिरा, राजीव, अटल बिहारी, अन्ना हज़ारे और मोदी जी सभी के युग और आंदोलनों के एकमात्र साक्षात गवाह थे- "पंडित बाबा"। देश की हरित क्रांति, औद्योगिक क्रांति, दुग्ध क्रांति, मिसाइल युग, परमाणु परीक्षण और खुली अर्थव्यवस्था के माध्यम से आए बाज़ारवाद और क्रिकेट के खेल और उनके परिणामों के बारे में गाँव के लोगों के लिए एकमात्र सूचना के स्रोत भी 'पंडित बाबा' ही थे। फ़िल्मों के शौक़ीन ऐसे कि जब भी शहर जाते तो कोई नयी फ़िल्म ज़रूर देखते, यूँ कहिए कि नयी फ़िल्म देखने ही शहर जाते थे।
दरअसल बाबा सन साठ के इलाहाबाद विश्वविद्यालय के ग्रेजुएट और सन इकसठ बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी थे, जिनके दोनों बेटे अमेरिका जा बसे थे और वो अपनी सेवा पूरी कर अपने पुरखों के गाँव में रहते और तमाम ग़रीब बच्चों के शैक्षणिक और नैतिक उत्थान को समर्पित थे। चुन्नू उनके खेत-मज़दूर का नाती था, जो उनकी सेवा में रहता था।
छोटे बालक चुन्नू के हठ और दुखी रुंआसा चेहरा देखकर बाबा ने कहा, अच्छा, चलो चलते हैं। चुन्नू ख़ुश हो गया। उसने अपनी क़मीज़ की बाँह से आँसू पोंछे और आगे-आगे ख़ुशी में, "हमारे बाबा आ रहे हैं-बाबा आ रहे हैं" चिल्लाते हुए दौड़ पड़ा। बाबा धीरे-धीरे पीपल के पेड़ के पास पहुँचे, तब तक चुन्नू ने सबको समझाकर बाबा को स्वामी जी से बात करने लायक जगह बना ली और बाबा को उनके एकदम पास बैठा दिया।
मिश्रा बाबा को आगे आने दो, प्रधान जी ने कहा। उन्होंने आगे आकर स्वामी जी को प्रणाम किया, लेकिन स्वामी जी को देखते ही पहचान गए। स्वामी जी के चेहरे की हवाइयाँ भी उड़ चुकी थीं। उन्होंने देहरादून में ज़िलाधिकारी रहे मिश्र जी को ठीक से पहचान लिया था। भीड़ इस मामले को ना समझ सकी। असल में, स्वामी जी चौराहे-चौराहे मजमा लगाकर हरड़-बहेड़ा-सोंठ और जंगली मसाले और शक्तिवर्धक बताकर जंगली बूटियाँ बेंचने का धंधा करते थे और तत्कालीन ज़िलाधिकारी रहे राजीव मिश्र द्वारा बिना डिग्री/डिप्लोमा के अवैध धंधा करने के जुर्म में जेल भेज दिए गए थे।
ये क्या तमाशा है, राकेश, पंडित बाबा ने पूँछा।
...........कु..कु..कुछ नहीं साहब, आजकल के नकारे, निकम्मे, कामचोर, आराम पसंद, जाहिल लोगों के लिए रामबाण-सौंधी हरड़(हर्रे) बेंच रहा हूँ। लोगों ने अब अपने पेट का पानी भी हिलाना बंद कर दिया है ना माई-बाप, इसलिए इसकी ज़रूरत आम हो गयी है। अब तो ये इतना मशहूर हो गया है, जैसे गाँजा या अफ़ीम। किसी भी आफिस में जाइए सबसे बड़े कमरे में बैठे महिला या पुरुष साहब की मेज़ की दराज़ में ये ज़रूर मिलेगा क्योंकि वो नीचे वालों की जान और अपने ऊपर वालों की डाँट खाते-खाते उनकी आँतें खाए हुए खाने को हज़म करना भूल जो गई हैं। इसमें इतनी ताक़त है कि आदमी को बिना पहिए का गैस का इंजन बना देता है। हद तो ये है कि बारात का स्वागत भी सौंधी हरड़ (हर्रे) से करने की माँग लड़के वाले करने लगे हैं........एक साँस में अपने नए धंधे के पक्ष में जाने कितनी दलीलें देते हुए राकेश सिंह बोलता चला जा रहा था, जिससे जनता को मज़ा आ गया और पंडित बाबा को ग़ुस्सा।
पंडित बाबा बोले कि अगर ये दवा है तो तू बाबा का भेष बनाकर क्यों इसे बेंच रहा है? वो बोला कि बाबा का भेष बनाकर धोखा देने में ज़्यादा आसानी रहती है, रावण ने ऐसे ही तो सीता को हरा था। कालनेमि ने भी इसी रूप में हनुमान को छला था।
"बस भी कर, राकेश! क्या ऊल-जुलूल बोले जा रहा है"। पंडित बाबा ने अपनी रौबदार आवाज़ में उसे डपटा और गाँव वालों से बोले कि शहर जाकर तुम सब बिगड़ने लगे हो। खेतों में काम करो, व्यायाम करो, हरी सब्ज़ी, दाल-रोटी, दूध-घी खाओ और स्वस्थ रहो। जीवन-शैली बदलो, ख़ुद को "बिना पहिए का गैस का इंजन" क्यों बनाए हो? दिन भर फ़ेसबुक, हवाट्सऐप, इंस्टाग्राम, ई मेल, लिंक्डइन के बहाने मोबाइल में लगे रहोगे, और ख़ुद को लैंड-लाइन फ़ोन की तरह स्थिर कर दोगे, तो ऐसा ही होगा। ख़ुद को मोबाइल बनाओ, डोलो अपनी जगह से, पसीना बहाओ, काम करो।
पंडित बाबा ने ग़ुस्से में राकेश से कहा कि तत्काल मेरे गाँव से कोसों दूर हो जाओ। मेहनतकश लोगों को ऐसी दवा मत दो, जो केवल कामचोरी और निकम्मेपन के कारण होती हो। राकेश ने अपना सामान समेटा और भाग निकला।
अरविन्द त्रिपाठी
17-09-2022
Satyug se kalyug tak pahunch gayi story
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है आपकी
ReplyDeleteSundar rachna...Man mohak
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteGazab
ReplyDeleteWah 🙏
ReplyDeleteवाह 🙏🙏🙏
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