.......कल खबर आई, पिद्दी समझे जाने वाले उक्रेन के खारकीव से महाकाय और विश्वशक्ति रूस की सेनायें खदेड़ दी गयीं.
कुछ बरस पहले इसी तरह वियतनाम से भी दुनिया की घोषित नम्बर-1 देश अमेरिका की सेनाओं को मुंह की खानी पड़ी थी.
ऐसे लाखों उदाहरण हैं, जब किसी भी बड़े ने बहुत छोटे को दबाने में अपनी अथाह ताकत के घमंड से चूर होकर "बल" का दुरूपयोग किया है और उसे मुंह की खानी पड़ी. उक्रेन और रूस का प्रकरण ताजा उदाहरण है. ऐसा भी हो सकता है कि कल को रूस अधिकतम आयुध प्रयोग कर उक्रेन को पूरी तरह से नेस्तनाबूद कर दे, लेकिन स्वाभिमान और मानवता की कीमत पर पाई गयी पाशविक जीत सम्राट अशोक द्वारा कलिंग विजय की तरह पूरी तरह निरर्थक और निरुद्देश्य साबित होगी. इस प्रकार, सदैव ही बल-प्रयोग की प्रवृत्ति मानवता को अधिकतम क्षति पहुंचाती है.
इस प्रकार की घटनाओं से साबित होता है कि किसी के आकार, प्रकार, पद-कद और सम्पन्नता-विपन्नता के आधार पर किया गया बल-प्रयोग कभी भी वास्तविक विजय नहीं दिलाता और सदैव ही निकृष्टता का प्रतिमान स्थापित करता है. हम सबने अपने इर्द-गिर्द के जीवन में ऐसे ढेरों उदाहरण देखे होंगे, जिनमें कथित "बड़ों" ने अपनी जिद और महत्वाकांक्षा के चलते अपने से विपन्न का दमन करने का असफल प्रयास किया होगा. ब्रह्माण्ड का छोटा जीव चींटी भी विशालकाय आकार के हाथी के सूंड में घुसकर अंत का कारण बनता है. साथ ही, कथित "बड़े" होने के भ्रम को चकनाचूर कर देती है. इसलिए इस बात को ठीक से समझना चाहिए कि छोटों का सम्मान कर ही अपना सम्मान बचाया और बनाया जा सकता है. ऐसा भी क्या बड़ा, जैसा पेड़ खजूर?
समझे हुजूर.....
वास्तव में, जितना "बड़ा", उतना "सड़ा".
अरविन्द त्रिपाठी
14-09-2022
Kya khoob kaha arvind ji...
ReplyDeleteThanks Sir.
Deleteलेकिन स्वाभिमान और मानवता की कीमत पर पाई गयी पाशविक जीत सम्राट अशोक द्वारा कलिंग विजय की तरह पूरी तरह निरर्थक और निरुद्देश्य साबित होगी.
ReplyDeleteकृपया अपना नाम भी बताएं.
Deleteपंथीन को छाया नहीं फल लगाए अति दूर
ReplyDeleteक्या लिखा है हुजूर
छोटे से लेख में बहुत बड़ी बात समाहित है🙏🙏
धन्यवाद
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