मेरी उमर के (बुढ़ाते हुए) नौजवानों,
तुम सब ने भी मेरी ही तरह खलनायक जैसे नायकों पर बनी फ़िल्में खूब देखी ही होंगी. जिनमें हीरो नियम-क़ानून को धता बताते हुए खूब गैर-कानूनी काम करता है और पुलिस को बार-बार चकमा देने में सफल होता है. कभी-कभी वो राबिनहुड की तरह सेठों से लुटे हुए धन से ग़रीबों की जरूरत पूरी करने जैसा कथित परोपकारी काम भी करता है. क़ानून को सर्वोपरि साबित करने और अपराध को बढ़ावा नहीं देने की सरकारी नीति के कारण कुछ फिल्मों में इन "कथित नायकों" को जेल जाने या मारे जाने के सीन भी फिल्माए जाते हैं, लेकिन तमाम एहतियातों के साथ, जिससे उनके फैन बेकाबू न हो जाएँ.हाल में, तमाम कुख्यात अपराधियों और माफियाओं की बायोपिक फिल्मों को रुपहले परदे पर उतारा गया. शूटआउट एट लोखंडवाला, हसीना, सत्या, बुलेट राजा, वंस अपान इन मुंबई और जाने ही कितनी फिल्मों में असल जिन्दगी के खलनायकों को बड़े परदे पर बहुत खूबसूरत अंदाज में दयावान और महान के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया गया. इन सभी कहानियों में उन परिस्थितियों का विषद और भावनात्मक विवरण प्रस्तुत किया गया कि विषम और विकट परिस्थितियों के चलते वो अपराध के रास्ते पर चला वरना वो तो घरेलू और सामान्य व्यक्ति ही रहता. कुछ फ़िल्मों में अपराधी नायकों की कहानियां तो इस तरह प्रस्तुत की गयीं, जैसे उसका यह रूप समाज के लिए अत्यंत आवश्यक साबित किया जा सके.
इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह पक्ष है कि फिल्मों और वास्तविक जीवन में इन माफिया और अपराध के नामचीन दरिंदों के साथ सुंदरियों का प्रेम और सर्वस्व न्यौछावर कर देने की प्रवृत्ति है. हाल में, आर्थिक अपराधी ललित मोदी और सुष्मिता सेन के संपर्क के किस्से उजागर हुए, जिसने ममता कुलकर्णी-विकी गोस्वामी, मंदाकिनी-दाऊद इब्राहिम, मोनिका बेदी-अबू सलेम, मधुबाला-हाजी मस्तान जैसे तमाम अनकहे किस्सों की पुनरावृत्ति दिखी. इससे साबित होता है कि "बेबी को डॉन पसंद है."
-अरविन्द त्रिपाठी
13-09-2022
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