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सुल्फेबाज़ी से सेल्फ़ीबाज़ी तक

....... आज के कोरोना काल में घर में रहते हुए टाइम-पास के साथ मनोरंजन के साधनों पर सभी जगह धूम मची है। महिलाओं के लिए रसोई, बातें और घर-गृहस्थी के कामों में व्यस्तता आम बात रही है। पुराने ज़माने की ही तरह आज भी ख़ुद से ख़ुद का खेल और उससे मिलने वाली आत्मानुभूति का सुख सर्वोपरि ही है। "जहाँ चार यार, मिल जाएँ वहाँ रात हो गुलज़ार" वाले युग से पहले दोस्तों में आपस में मिलते ही दिव्य आनंद की खोज की पूर्ति का साधन सुल्फेबाज़ी होती थी, जिसे कालांतर में दूसरे तरह के तम्बाकू के उपयोग ने बदल दिया। आज भी थोड़ा एकांत में ख़ुद से ख़ुद ही मज़े लेने वाले लोगों संख्या बढ़ने लगी है। लोगों में "सेल्फ़ी" का क्रेज़ बहुत बढ़ता जा रहा है। खाते, पीते, सोते, जागते, रोते, हँसते सभी क्षणों की "सेल्फ़ी"।एक मानसिक रोग की सीमा तक बढ़ गया है। सेल्फ़ी लेने के लिए केवल दो चीज़ों की आवश्यकता होती है, वो है फ़्रंट कैमरा की सुविधायुक्त मोबाइल फ़ोन और ख़ुद को दिव्य सुंदर मानने की सेल्फ़िश सोंच।
सेल्फ़ी लेने की कोई ट्रेनिंग ना मिलने और फ़्रंट कैमरा मोबाइल सुविधा ना होने के कारण ही दुर्योधन इंद्रप्रस्थ में पानी में जा गिरा था। जिस कैमरामैन को लेजाकर वो सभागार में अपनी फ़ोटू खिंचवा रहा था, वो भी उसके साथ ही पानी में जा गिरा था। ये बात किसी ने नहीं लिखी वरना दुर्योधन की फ़ोटो का सही पोज ना आ सकने सारा दोष उसका बताया जा सकता था। अगर उसके पास वीडियो बन सकने वाला कैमरा होता तो सही जानकारी हो पाती कि क्या वास्तव में द्रौपदी ने उसे अंधा का पुत्र अंधा कहा भी था या यूँ ही दुर्योधन ने अपने बचाव में आरोप लगाया था। इसी तरह अगर सूर्पणखा ने पास कोई साधारण सेल्फ़ी फ़ोन होता तो उसे अपनी सुंदरता का भ्रम ना होता और ना ही उसे अपनी नाक कटवानी पड़ती। नारद मुनि के पास सेल्फ़ी फ़ोन ना होने के कारण ही विष्णु भगवान से पंगा लेना पड़ गया था।
सेल्फ़ी की महिमा पिछले कुछ वर्षों में चरम तक पहुँचाने में माननीय मोदी जी का बहुत योगदान रहा। जब उन्होंने अपने फ़ोन से जापान के प्रधानमंत्री के साथ सेल्फ़ी ली, बस विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के सदस्यों ने एकमुश्त सेल्फ़ी-क्षमतायुक्त फ़ोन ले डाले।ख़ुद के साथ ख़ुद के खेल के आनंद में सबसे महत्वपूर्ण खेल "सेल्फ़ी" को अब राष्ट्रीय खेल घोषित किया जा सकता है। ऐसा मानते हुए देश की महान स्वर-कोकिला "ढिंचैक पूजा" ने एक गाना गाया- "सेल्फ़ी मैने ले ली आज, सेल्फ़ी मैने ले ली आज।" इस दशा में अपने चिर-युवा अभिनेता सलमान खान ने भी अपनी फ़िल्म बजरंगी भाईजान में "चल बेट्टा सेल्फ़ी ले ले रे" गाना प्रस्तुत किया। 
शायद ही आपको पता हो कि कोरोना के लाकडाउन काल में वैश्विक परिप्रेक्ष्य में बाज़ार को देखते हुए सेल्फ़ी से होने वाले लाभ और लड़कियों द्वारा सेल्फ़ी के समय बनाये जाने वाले मुँह के डिज़ाइनों पर किताबें छपने लगी हैं। अब चिलम से सुल्फ़ा खींचने के तरीक़ों के स्थान पर कुछ वेबसाइट और ब्लाग पर विद्वान सेल्फ़ी-पाउट के तरीक़ों पर व्याख्यान प्रस्तुत करेंगे। डारविन के सिद्धांत के अनुपालन के कारण कुछ सेल्फ़ीबाज़ों के मुँह ज़्यादा पिचके और एक हाथ के अधिक लम्बे होने से बचाव के लिए चिकित्सा विभाग को नवीन शोधों और अलग विंग बनानी पड़ सकती है। सेल्फ़ी से आगे की स्टेज "टिकटाक" पर प्रस्तुति है जो बिना ख़ुद को सुंदर माने हो ही नहीं सकती। यानी आपका आत्म-मुग्ध होना अति आवश्यक है, यह आत्मविश्वास जगाने और बढ़ाने के लिए "सेल्फ़ी" का महत्वपूर्ण योगदान है।

Comments

  1. बहुत खूबसूरत लिखा आपने सर , "दिव्य सुंदर मानने की सेल्फ़िश सोंच" बिल्कुल सुकरात जी की याद आ गयी।

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  2. तंज़ ओ मज़ाह के तड़के के साथ सेल्फ़ी की वज़ाहत बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ में की गई है

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