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कानपुर आई.ऐ.सी.यूनिट या मज़ाक

कानपुर. अन्ना के भ्रष्टाचार के विरोध की मुहिम  देशव्यापी और विचारवान बनाने में कानपुर का योगदान है. "मैं हूँ अन्ना"और "हम हैं अन्ना" की मुहिम को इस बार देश के समक्ष लाने का काम कानपुर के आंदोलन कारियों में से एक प्रमोद तिवारी  के द्वारा किया गया.पूर्व में पांच अप्रैल के अन्ना आंदोलन में हुए इण्डिया अगेंस्ट करप्शन के धरने में कुल मौजूद लोगों में से सबसे अधिक संख्या आई.आई.टी. के छात्रों की थी. उनकी ये हताशा थी  साठ लाख से अधिक की आबादी के शहर में से कोई ठोस नेतृत्व और कार्यक्रम का जन्म नहीं हुआ.तब के गांधी प्रतिमा के धरने का मैं गवाह था जिसमें नाम और प्रेस रिलीज जारी करने वाले संगठनों  की संख्या पैंतीस से अधिक थी जिनमें सबसे कम लोग इण्डिया अगेंस्ट करप्शन  के स्वघोषित जिला संयोजक कहलाने वाले व्यक्ति अशोक जैन के पास थे.तब मुद्दा बडा था. अन्ना का नाम बड़ा था. सब भ्रष्टाचार के विरोध में था. इसलिए आंदोलन के हित में इस कमी को छुपाया गया.शहर के आंदोलन कारी और समाज सेवी छवि के लोगों ने इस कमी को महसूस किया. और सोचा कि अगली बार के संभावित आंदोलन में इस निर्वात को भरने का प्रयास किया जायेगा. देश के समक्ष एक मिसाल दी जायेगी कि कानपुर किसी भी तरह से देश में होने वाली किसी परिवर्तनकारी घटना से अछूता  नहीं है.उसके नागरिकों में भी देश  के साथ कदमताल करने की क्षमता है.पर अफ़सोस ऐसा हो न सका .
पूर्व के आंदोलन की कमियों को फिर दुहराने से बचने के लिए कवि एवं पत्रकार प्रमोद तिवारी ने अपनी दिल्ली की यात्रा में अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसोदिया से मुलाकात कर उन्हें  कानपुर की मंशा से अवगत कराया. उन्होंने तिवारी जी से  कहा कि जो भी विरोध का कार्यक्रम दिल्ली में होने हैं वो सब कानपुर में कर दीजिए. कानपुर शहर को अन्नामय कर दीजिए, बस.उन्होंने इसी मंशा को मुझसे साझा किया.उन्होंने वापस आने से पहले ही अन्ना के आंदोलन को वृहद रूप देने की रूपरेखा बनानी शुरू कर दी थी. मेरे बताने पर उन्होंने श्री अशोक जैन से बात की.परिवार के सबसे अधिक उम्रदराज व्यक्ति को आगे कर आंदोलन को जनांदोलन बनाने की तैयारी बनाई गयी.दिल्ली से आकर सीधे अशोक जैन जी के घर पर मेरे साथी प्रवीण शुक्ला आदि की  उपस्थिति में बातें हुयीं. अगले दस दिन तक ये जैन साहब अपनी टीम के किसी भी एक आदमी से नहीं मिला सके. इस बीच पूरे शहर में "मैं भी अन्ना" वाली डिजाइन की हुयी अठारह बड़ी होर्डिंगें और पचास हज़ार से अधिक स्टिकर चिपकाए जा चुके थे जिसमें शहर के नामी-गिरामी लोगों के नाम थे. देश भर में इन डिजाइनों को ईमेल के जरिये भेजा गया. ये सब देखकर श्री जैन को खुश होना चाहिए था.पर ऐसा न हो सके.ये तैयारियां और समर्थन से अलग होते गए. किसी भी प्रकार का सहयोग इन्होने नहीं किया.
खैर, साथियों सोलह अगस्त आ गई. गांधी प्रतिमा के समक्ष एक ऐतिहासिक धरना  प्रारंभ हुआ. उम्मीद से कई गुना अधिक भीड़ देखकर श्री जैन वहाँ से खिसक लिए. उन्हें फोटोबाजी और नेटबाज़ी के काम भी तो करने थे.इस तेरह दिन के देशव्यापी आंदोलन में वे इस कानपुर सिविल सोसाइटी के धरने में जाने के लिए बीमार रहने लगे और शहर भर में हर ऎसी जगह उपस्थित रहे जहाँ से पेट्रोल डलवाकर कार मुहैया कराई गई.वैसे वो स्लिप डिस्क और तमाम बीमारियों से ग्रस्त रहते थे.इस बीच देश में अपनी पहचान बनाने वाले कार्यक्रम हुए.जिनमें  शहर में चार जगह पर लगातार तेरह दिन धरना और अनशन जारी रहा जो जैन साहब की  नजरों से दूर रहे  - (१) कानपुर सिविल सोसाइटी का गांधी प्रतिमा फूलबाग का धरना.(२)भारतीय विकलांग सोसाइटी का मोतीझील का अनशन .(३)परिवर्तन की  मानव श्रंखला और (४)दक्षिण बचाओ मोर्चा का शास्त्री चौक का धरना.तेरह दिनों तक चले देशव्यापी आंदोलन बिना आई.ऐ.सी. के किसी संयोजकत्व  के  शहर देश भर में अपना नाम सुर्ख़ियों में दर्ज कराने में सफल रहा.अब इसकी समीक्षा कि आवश्यकता थी जो सभी जनांदोलनों के लिए आवश्यक होती है. पर ऐसा भी नहीं हुआ क्योंकि वे सभी एक सूत्र में नहीं बंधे थे. आंदोलन जरूर अन्ना के लिए था पर शहर में एक प्रेरक  नेतृत्व न था.
जैन साहब की अक्षमता और टीम हीनता एक बार फिर उजागर हो रही थी. युवा पीढ़ी में जोश पैदा करने में पूरी तरह अक्षम जैन साहब की समस्या तब और बढ़ गयी जब दीपक मालवीय ने दिल्ली प्रवास के दौरान मुझे अरविन्द केजरीवाल के कानपुर आगमन् के बारे में जानकारी दी. मीटिग का स्थान लोक सेवक मंडल था पर एन वक्त पर इसे जैन साहब ने  गैन्गेज क्लब रखवा दिया.तैयारियों को मूर्तरूप देने  कानपुर आने वाले रामधीरज भाई ने जब इसका विरोध किया और कहा कि क्लब का आंदोलन से क्या काम जहां खुलेआम शराब पी जाती है?  तब  आर्यनगर धर्मशाला में मीटिग हुयी.प्रेस कांफ्रेंस नहीं करने की बात की गयी थी. तमाम वायदों  के बाद भी प्रेस-कांफ्रेंस की गयी.मीटिंग चुनावी जैसी थी. लगा कि विधानसभा के टिकट बांटे जाने हों. तमाम टिकटार्थी उपस्थित थे. हंगामी बैठक के बावजूद जैन साहब अपने ऐसे  पद  पर काबिज हैं जो रामधीरज जी बताया कि ये सारे ऐसे पद समाप्त किये जा चुके हैं.पर भाइयों और बहनों, अपने जैन साहब तो आभी भी कोआर्दिनेटर हैं, जिसका जो मन आए वो करे.कल लगातार दूसरी बैठक में भी कानपुर सिविल सोसाइटी और भारतीय विकलांग एसोसिएशन सहित शहर के तमामों अन्नावादियों को नहीं बुलाया गया क्योंकि सवाल पूछने वाले लोग भी इसमें आ सकते थे. जो जैन साहब की बीमारियों में इजाफा कर सकते थे.
प्रश्न ये है कि क्या कानपुर में इंडिया अगेंस्ट  करप्शन माने केवल और केवल वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता श्री अशोक जैन ही है ? अभी तक कोई कमेटी नहीं बन पायी है.स्वीकार्यता और सक्षमता किसी भी जन-आंदोलन की पूंजी होते हैं, जो इनके पास नहीं है. ऐसा अब तक  सिद्ध हो चुका है. आगे ऊपर वाला जाने.......

Comments

  1. अन्ना का आन्दोलन एक जन आन्दोलन हैं , ये एक बहाव हैं इसमें राजनीती करने वाले ज्यादा दिन इस धारा में प्रवाहित नहीं हो सकते / ऐसे विषयो को आप भी ब्लॉग के माध्यम से प्रस्तुत न करके अपने क्षेत्र में volunteers की सभा करके विस्तृत चर्चा करे तो ज्यादा उपयुक्त रहेगा /

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  2. rajesh bhai, abhi aap kanpur ke halat se vakif nahee hai, yahan karata koi aur dikhata koi aur hai, hum sabka prayaas yahee hai ki ye aandolan sahi tarah se chale aur rajneet ka adda na bane, arvind tripathi ji ne is muddey ko likh kar bada achha kiya hai,ek tez nigaah honi hi chahiye hum sabke upar, ab jo kaam karega wahi aage aayega.. sirf naam ke aage bharat laga lene se koi bharat nahi ho jata ,,

    RAM JI MISHRA

    ReplyDelete
  3. raajesh bhaai,
    jald hi kaanpur ke un sabhii aandolankaariyon ki ek baithak bulaaii jaayegi, jinhone is yagya men apni aahuti dii thi. unke shram, samay aur dhan ke balidaan ko sammanit karte huye unmen anant sambhaavnaaon ko rachnaatmak kaamon men jodaa jaayegaa.

    ReplyDelete

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