...... देश में शायद ही कोई होगा जिसने बाहुबली सीरीज की दोनों फ़िल्मों में से एक भी न देखी होगी और उसके कैरेक्टर "कटप्पा" को न जानता हो. वो एक वीर और साहसी योद्धा था, जो राज-सिंहासन से बंधा हुआ था. तमाम सक्षमता के बावजूद उसकी खुद की कोई महत्वाकांक्षा न थी. राजा के आदेश को पालन के लिए अपने प्रिय भांजे की हत्या जैसा जघन्य कृत्य करने में उसने सेकण्ड का भी समय न लगाया था.
राजनीति को "कटप्पा" बहुत भाते हैं, जिसके पास खुद की इच्छा ना हो और राजगद्दी के लिए सबसे ज्यादा समर्पण हो. प्रभु राम के लिए बिना तर्क-वितर्क किये सर्वस्व न्योछावर करने का समर्पण रखने वाले प्रभु हनुमान, महाभारत काल में भीष्म पितामह ऐसी ही भूमिका में रहे हैं. आधुनिक राजनीति भी इस तरह के चरित्रों से भरी पड़ी है, जिनके बिना राज और दल संचालित किया जा सकना मुमकिन नहीं रहा है. ऐसा किरदार खोजना और उससे काम लेना भी एक चुनौती ही है.
हाल में , प्रदेश के एक राजनीतिक दल के मुखिया के न रहने के बाद पारिवारिक एका हो गया है और मुखिया जी के "कटप्पा" ने उनके "बेटाजी" में मुखिया जी की छवि खोज कर कटप्पा की ही तरह नेतृत्व स्वीकार कर लिया है. अपना दल और अपना बेटा भी नए मुखिया जी के संरक्षण में उत्सर्ग कर दिया है. पद, कद, काम और रूतबा और अपने चाहने वालों को बीच भंवर में त्यागकर उनके अन्दर का "कटप्पा" जागने से सत्ताधारी और बिना सत्ताधारी ही सभी सतर्क हो गए हैं.खुद को साबित करने का संकट उन्हें झेलना पड़ रहा है क्योंकि उनके बहुत पुराने साथी उनके इशारे पर पहले विभिन्न दलों में जा चुके हैं और शेष बचे लोगों को छोड़कर अचानक वो पुराने घर वापस आ गए हैं. नए मुखिया को पहले ही कई युवा कटप्पा घेरे हुए हैं, जो इनकी वापसी से कभी भी बाहर किये जा सकते हैं.
देखना है कि इनकी काट के लिए सत्ताधारी दल के कटप्पा कौन सी चाल चलते हैं......
वाह
ReplyDeletenepotism
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteकटप्पा ने अपनी मृत्यु स्वम चुनी है, क्यों कि अब वो बरगद हो गया है और बरगद के नीचे छोटे पौधे जिंदा नहीं रह पाते।
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