जब से कानपुर के कवि एवं पत्रकार प्रमोद तिवारी जी ने "मैं हूँ अन्ना"/ "हम हैं अन्ना" का नारा देश को दिया है देश इसी रंग में रंग गया.पूरे आंदोलन भर ये सुर्खियाँ बटोरता रहा. यद्यपि कानपुर के मीडिया कर्मी इस महान घटना में प्रमोद जी के श्रेय को समझ न सके और उनके योगदान को कम करके ही आंकते रहे पर देश ने उनके नारे और उसके सन्देश को आत्मसात किया. इस आंदोलन का लाभ उठाने में विपरीत मानसिकता वालों ने कोई कोर-कसर नहीं छोडी.गांधी और गांधीवादी अन्ना की मूल विचारधारा और नीतियों के विपरीत कानपुर के सभी अखबारों और चैनलों की सुर्खियाँ रहने वाले दो युवा कांग्रेसी नेताओं को ये अन्नागिरी खूब रास आ रही है. समानता भी दोनों में ये है कि दोनों कभी भाजपायी थे , आज दोनों कांग्रेसी हैं, दोनों युवा है और दोनों ब्राह्मण हैं. सेवेन-क्रिमिनल एक्ट, आत्महत्या को प्रेरित करने सहित तमाम मुकदमें एक युवा पर हैं. दुसरे महोदय के कारनामे भी कम नहीं हैं. फिलहाल अखबारों में सुर्ख़ियों में रहना ये बखूबी जानते हैं.जैसा कि सरकार करती है सभी आंदोलनकारियों की फाइलें तैयार रखती है, इनकी भी अपराधिक रिकार्डों की फाइलें एकत्र की जा रही हैं. अन्ना के साथी अरविन्द केजरीवाल सहित तमाम लोग जिस प्रकार केंद्र सरकार की टेढी नजर से नहीं बच सके हैं उसी तरह इन दोनों का बच पाना भी नामुमकिन है. कारण ये है कि दागदार दामन के साथ राष्ट्र-निर्माण और भ्रष्टाचार से लडायी संभव नहीं है.
प्रदेश खासकर कानपुर में इन दोनों का मुद्दा देश और लोकपाल है ही नहीं. मुद्दा है सिर्फ छपास का. प्रर्तिस्पर्धा है अधिकतम मीडिया कवरेज की.पूरा मीडिया सेट रखने में माहिर ये दोनों कोई विरोध की इवेंट करें और वो उजागर न हो ऐसा कभी नहीं हुआ. सभी अखबारों और चैनलों में सुर्खियाँ बटोरने वाले ये दोनों महानुभाव अब सरकार की आँखों की किरकिरी बन चुके हैं.कभी बिजली के कम आने पर खटिया लिए "कानपुर मत आना"का आह्वान करता समूह हो या फिर पेयजल समस्या पर मटकी फोडो अभियान, या किसी सुपारी के तस्कर को सेल्स टैक्स से बचाने के लिए की गयी गिरोह बंदी हो, गल्ला-मंडी हटाने के विरोध में जलता हुआ "लाला पंडा" के पीछे रहने वाला ये युवा ब्राह्मण नेता कभी मिलावटी खोये के व्यापारियों का हितैषी बन जाता है. सड़क के लिए लड़ता दूसरा नेता जनता का चुना हुआ एक ऐसा जन-प्रतिनिधि है जो अब खुद को ही अन्ना घोषित कर बैठा है.जल्दी ही वो आमरण अनशन पर बैठने वाला है.अपने संरक्षक विधायक की सरपरस्ती में आने के पहले उसने इन्हीं विधायक जी के खिलाफ क्या नहीं किया ? अब जब बात और समय मुफीद हो गया हो तो विरोध नहीं रहा.अब उनके इशारे पर गोविंदपुरी पुल के लिए आमरण अनशन हो रहा है. जूस पिलाने वाला भी पहले से तय है. और कौन, विधायक जी तो हैं ही. यानी मौसम है इन दोनों की "अन्नागिरी" का.
प्रदेश में सरकार बसपा की है. ये दोनों को पता है. सूत्रों से पता चला है कि प्रशासन कि मदद से इनकी केस हिस्ट्री तैयार की जा रही है. इनके सभी थानों में दर्ज अपराधिक मुकदमों की सूची तैयार की जा रही है. जो प्रदेश शासन को शीघ्र सौंपी जायेगी.जिसमें इन दोनों की वास्तविक जांच की जा सके.
अन्ना हजारे जी ने अनशन तोड़ने के बाद अपने संबोधन में कहा था अब कोई अन्ना नाम लिखी टोपी न पहने. कारण साफ़ करते हुए बताया था कि उसका पूर्व का जीवन साफ़ नहीं है और उसके इरादे मजबूत न हों तो वो ऐसा कदापि न करे. पर जैसा कि शहर के सारे लोग जानते हैं कि दिन भर चार गलत धंधों में लगे रहने वाले इन दोनों लोगों ने बिना अपना मूल्यांकन किये ही इसे अपने सर पर धारण कर लिया है.इन दोनों में से एक ने पिछले दिनों एक आला प्रशासनिक अधिकारी को "अन्ना-टोपी" पहनायी.उस आला अधिकारी की शिकायत पर प्रदेश के शासन का केंद्र "पंचम तल" ने सख्त कार्यवाही की तैयारी की है. तो दुसरे ने विगत दिनों नगर निगम में एक कार्यक्रम में प्रदेश सरकार के मंत्री के समक्ष नारे लगाता हुआ "मैं हूँ अन्ना" टोपी के साथ जमकर दबंगई की.विश्वस्त सूत्रों के अनुसार मंत्री ने इसे व्यक्तिगत विरोध मानते हुए इनकी और इनके संरक्षक विधायक जी कि चर्चा प्रदेश की मुखिया से की है. दबे जबान शहर में चर्चा है कि दोनों वास्तव में टोपियां बदलने के शौकीन हैं. यही शौकीन मिजाजी प्रदेश सरकार की निगाहों की किरकिरी बनी हुयी है. जल्दी ही किसी बड़े राज के खुलासे में पुलिस-प्रशासन लगी हुयी है.जिसके द्वारा इन दोनों के काले कारनामे उन्हीं अखबारों और चैनलों की सुर्खियाँ बटोरें जहाँ अभी इनकी सेटिंग से ख़बरें छपती और चलती हैं.
very accurate and real story .
ReplyDeletegood story
ReplyDeletepramod tewari
सर जी आप सही कह रहे है जब यही मीडिया इनकी पोल खोलेगी तब उन्हे मालुम पड़ेगा कि किसी भी चीज का गलत इस्तेमाल नही करना चाहिए।
ReplyDeleteआन्दोलन की आड़ में अपना उल्लू सीधा करने की पुरानी परंपरा को जीवित रखते हुए ये छुटभैये नेता बताना चाह रहे है कि आन्दोलन के नेतृत्व में कही न कही कमजोरी रह गयी ! अब गेंद आन्दोलन से जुड़े हुए लोगो के पाले में है !...
ReplyDeleteसाथियों,
ReplyDeleteये जानकर आपको आश्चर्य होगा कि कांग्रेस पार्टी के असीम भ्रस्टाचार से लड़ रहे अन्ना हजारे को ठेंगा दिखाते हुए इन दोनों में से एक नेता विधान सभा के ऐसे टिकटार्थी हैं जो "टीम अन्ना" के स्तंभ को कानपुर अपनी रैली की अगुआई के लिए बुक कर चुके हैं.जो जल्दी ही आपके बीच हो सकते हैं. संभव है कि इस खबर के बाद उनका आना टल जाए.
प्रमोद जी ने एक बार लिखा था " इस बार गोडसे कांग्रेस के बीच से ही निकलेगा". क्या ये बात इतना जल्दी सच होने जा रही है ?
arvind bhai gyanesh mishra ko to sale tax me dalali karni hai aur navin pandit ki kya kahe kuch kahne layak hi nahi hai .... par itna jarur hai chahe ye jitna bhi uchal khud kar le inko koi bhi gambhirta se nahi leta hai
ReplyDeleterahi baat ticket ki to guru inko to railway ki ticket bhi nahi mil rahi vidhanshabha to bht dur ki baat hai
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