इस पूरे प्रकरण में होने वाले विरोध से सबसे ज्यादा 'चाचा चकल्लसी' को फिक्र ये है की जब वो अमिया से आम हुई तो किसी को कोई चिंता नहीं हुई की कहाँ का आम हुई ? मलीहाबाद का या हापूस का? अब चाचा को कौन समझाए की वो 'आम' नहीं हो सकती हैं फिर भी हो गई थीं क्योंकि आम तो ठहरा पुल्लिंग? पर भैया वो तो हो गईं जो उनको होना था. देश चिता में परेशान है. करोडो रुपये उनके घर आ गए.
एक वो और दुखी प्राणी मिला, जिसने 'महेंगाई को डाएंन' बनाये देने वाला गाना लिखे था , वो आज मन ही मन अपनी मूर्खता पर कसमसा रहा था की उस गाने को लिखकर कुछ लाख ही कमा पाए. इधर मलैयका झंडू बाम हुईं और लोग उसे और उसकी डाएंन यानी महेंगाई की मारकता को भूल चुके हैं. आजकल वो खुद भी यही गाना गा रहा है. अब डाएंन में तो कोई सौन्दरयबोध आ नहीं सकता इसका खामियाजा इस प्रचलित गीत के लेखक ने उठाया है. साथ ही इस नए गीत के माध्यम से यह भी बताया की देश में चाहे कितनी ही समस्या क्यों न हो झंडू बाम ही सबसे गुणकारी है.
एक दिन चाचा चकल्लसी परेशान-हाल मिले और बताने लगे की गाने की लोकप्रियता से झंडू बाम के मालिकों को दर्द होने लगा है. चाचा को मालिकों के दर्द से मलाइका के बढ़ते दर्द की फिक्र ज्यादा थी. बताने लगे की मालिकों ने अपना नया विज्ञापन भी जारी किया है "झंडू बाम आया रे' . पर इससे भी कम्पनी का दर्द कम नहीं हुआ. तब तो संकट और बढ़ना लाजिमी ही था. मलैयका का दर्द भी बढ़ता गया. जो चाचा के लिए भी पीड़ाकारी था और हमारे लिए भी क्योंकि वो हमें तबतक चैन नहीं लेने देते जब तक वो पीड़ित थे. आखिर मलैयका ने बीच का रास्ता निकाल कर बाम बेचने का फैसला ले लिया और सभी का सर दर्द ठीक हो गया.
जब हमारे देश के प्रधान मंत्री से पूछा गया की इस पूरे विवाद में भारतीय खामखाँ में अपना सिरदर्द बढाते रहे. तो वो बोले क्यों न बढ़ाएं ? हमारे पास खूब टाइम है और कोई काम नहीं है. सबसे बड़ी बात यह है की हमारे पास झंडू बाम है जो दुनिया में किसी और के पास नहीं है. चाचा कहते हैं की मलाइका की दबंगई देखिये बाम पहले हो गई. कम्पनी को ब्रांड अम्बैसडर बनाना ही पड़ा . हम तबसे डरे हुए हैं की गाने में वो हिन्दुस्तान भी हुई हैं अब उन्हें देश को बेचने का काम न मिल जाए. खैर, उनके होने या न होने से देश को भगवान् बचाए. क्योंकि अच्छा ही हुआ वो इतने पर ही रुक गई नहीं तो अगर वो लिट्टे या फिर तालिबान हो जातीं तो सोचिये की क्या होता ?
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