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लो आया खतो-किताबत का मौसम



     ........क्या ख़ाक इक्कीसवीं सदी आई है ? ज़माना आज भी नहीं बदला . कहते हैं की आदमी चाँद को पार कर मंगल सहित दुसरे ग्रहों में जाने और बसने की फिराक में है.अचानक चचा चकल्लसी बडबडाते हुए गली के कुन्ने से निकले. उनकी बातों में एक अजीब सा दंभ और दर्प था. ऐसा लगा की भले ही हम अब दीपावली में सौ रुपये के मिट्टी के ही बने गणेश-लक्ष्मी की पूजा क्यों न करने लगे हों, पर हैं पूरी तरह से पिछड़े हुए ही. हिम्मत करके टोंका तो वो फुलझडी जैसे फुसफुसाए और मुस्कराते हुए बोले क्या ख़ाक प्रोग्रेस की है तुम सबने ? तुम सबसे अच्छे तो हमारे जमाने थे.

    मैं घबराते हुए बोला की ऐसा क्या जुलुम हो गया हमारे जमाने में ? कहीं ये कट्टो गिलहरी बनी श्वेता तिवारी को तो नहीं देख आये ? या फिर रा-वन फिल्म के बहुत तकनीकी तरह से बने होने से उसका भोजपुरी एडिशन न निकल पाने से बौराये हों.पर सोंच नहीं पाया तो डरते-सहमते फिर पूछने का साहस जुटाने लगा. तभी वो बोले की वाह वो भी क्या दिन थे जब हम खतोकिताबत करते थे. उस प्रेम लायक उम्र में हम कलम से कागज़ पर कलेजा निकाल कर रख देते थे. फिर बुरा हो कुरियर के जमाने का. चिट्ठी और खत का समय ही जाता गया. फिर एसएमएस , मोबाइल और इंटरनेट ने चित्ठीबाजी का मजा ही खतम कर दिया. एक जगजीत सिंह थे जो गा गए हैं “चिट्ठी न कोई सन्देश जाने वो कौन सा देश,जहां तुम चले गए”, मैंने सोंचा की शायद वो किसी हाईटेक युग की बात कर रहे होंगे .
       चचा की बातों में ब्रेक न होने से मैं घर को चला आया और टेलीविजन के रिमोट पर हारमोनियम की प्रैक्टिस करने लगा. तभी चचा चीखते हुए ड्राइंग रूम में घुस आये. और बोले की बैठी बरइया हुसका के भाग आये हो? अब जान भी लो की मामला क्या है ? मैंने कहा बताइये तो बोले इस देश में फिर से एक नया मौसम आया है खतोकिताबत का. इसका सारा श्रेय अन्ना हजारे को जाता है. सो कैसे ? तो बोले की देखो अन्ना ने सबसे पहले सभी दलों के लोगों को जन-लोकपाल के समर्थन में चिट्ठी लिखी. सरकार ने अन्ना को चिट्ठी लिखी. फिर मनीष तिवारी ने अन्ना को चिट्ठी लिखी. अन्ना ने अनशन को लेकर मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखी. मनमोहन सिंह ने फिर अन्ना को मनाते हुए चिट्ठी लिखी. फिर अन्ना ने सरकार को बिल को शीतकालीन सत्र में लाने की चिट्ठी लिखी गयी. माया ने मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखी की केंद्र यू.पी. की पूरी आर्थिक मदद नहीं कर रहा. इसी बीच जयराम रमेश ने भी माया को मनरेगा में भ्रष्टाचार होने के सम्बन्ध में चिट्ठी लिखी. और आज तो कुमार विश्वास का भी ‘टीम अन्ना’ पर बढते सरकारी नोटिसों के शिकंजे से घबरा कर विश्वास डगमगा गया. हज़ारों करोड के एनजीओ के मालिक टीम अन्ना के लोगों में कीचड से कीचड धोने की कोशिश इसी चिट्ठी-बाजी से ही रंग लाई है.मैंने कहा की विश्वास का कौन सा एनजीओ है ? वो तो किसी डिग्री कालेज में पढ़ाते हैं. तो बोले की वो डिग्री कालेज में मास्टरी भी तो समाजसेवक की तरह ही केवल फैशन के लिए ही करता है. बाकी असल काम तो कविताई और अन्ना के मंचों के संचालन का ही करता है. मैं समझ गया था, बहस का कोई मतलब नहीं रहा.  चचा हत्थे से उखड चुके हैं. वैसे वो इस बात से बहुत नाराज हैं की कुमार विश्वास ने खत को आम कर दिया, जो उनके जमाने में बेपर्दगी के बराबर का जुर्म था .

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