..... "प्रेम" और "रिश्तों" के तमाम नाम और अंदाज हैं, ऐसा बहुत बार हुआ कि प्रेम और रिश्तों को कोई नाम देना संभव न हो सका. लाखों गीत, किस्से और ग्रन्थ लिखे, गाए और फिल्मों में दिखाए गए. इस विषय के इतने पहलू हैं कि लाखों-लाख बरस से लिखने वालों की न तो कलमें घिसीं और ना ही उनकी स्याही सूखी. "प्रेम" विषय ही ऐसा है कि कभी पुराना नहीं होता. शायद ही कोई ऐसा जीवित व्यक्ति इस धरती पे हुआ हो, जिसके दिल में प्रेम की दस्तक न हुयी हो. ईश्वरीय अवतार भी पवित्र प्रेम को नकार न सके, यह इस भावना की व्यापकता का परिचायक है. उम्र और सामाजिक वर्जनाएं प्रेम की राह में रोड़ा नहीं बन पातीं, क्योंकि बंदिशें सदैव बाँध तोड़ कर सैलाब बन जाना चाहती हैं. आज शशि कपूर और मौसमी चटर्जी अभिनीत और मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर का गाया हुआ हिन्दी फिल्म "स्वयंवर" के एक गीत सुन रहा था- "मुझे छू रही हैं, तेरी गर्म साँसें.....". इस गीत के मध्य में रफ़ी की आवाज में शशि कपूर गाते हैं कि - लबों से अगर तुम बुला न सको तो, निगाहों से तुम नाम लेकर बुला लो. जिसके ...
मूलतया कनपुरिया - बेलौस, बिंदास अन्दाज़ के साथ एक खरी और सच्ची बात का अड्डा…
जूता कांड एक फैशन बन गया हे / जूता मारने वाला फ़ोकट की पब्लिसिटी पाने के लिए नए नए जूता खोरो को ढूंड कर सार्वजानिक तोर पर जुटे मार रहे हे / यह स्थिति किसी भी लिहाज से भारतीय लोकतंत्र के लिए घातक हे / परन्तु इसका पूरा श्रेय बेईमान नेताओ को ही जाता हे जो जोंक की तरह भारतीय जनमानस का खून फिछले ६४ सालो से चूस रहे / अब भी समय हे जब हम सभी को आत्मावलोकन करना चाहिए / ताकि भविष्य में कोई नया जूता खोर / जुटे का शिकार न बन जाए
ReplyDeleteArvind ji, It has become the easiest and most economic method to become known by throwing a shoe. I regret! I wasted all my old shoes against the discount coupons of Big Bazar. Had I kept them carefully, I would have fetched more opportunity to become famous. Great Loss!
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