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“मूवमेंट” के लिए “मूव” तो करना ही होगा...


     बात इक्कीसवीं सदी में अन्ना हजारे के आन्दोलन के समय की है. देश में भ्रष्टाचार समाप्ति की दिशा में मजबूत और आवश्यक कदम माने जाने वाले “लोकपाल बिल” की व्यापक मांग के लिए उस समय देश की आशा का केंद्र रामलीला मैदान के तम्बू में अनशनरत अन्ना हजारे के साथ तमाम छवियाँ जुड़ रही थीं. किसी भी अत्यंत लोकप्रिय खेल के रोमांचक मैच की ही भांति लोगों की साँसें अटकी थीं. दिल्ली से आने वाली हर खबर टेलीविजन पर चर्चा का विषय थी. देश में लगभग सभी शहरों में दिल्ली की तर्ज पर तमाम रामलीला मैदान बन गए थे. साथ ही, हर मैदान के केंद्र में आन्दोलन के बहाने संभावनाओं के समंदर में विद्यमान ढेरों रत्नों में से अपने लिए चिन्हित लाभ पर नजर गड़ाए लाखों आन्दोलनकारी जमे हुए थे. पानी, किसानी और जंगल के आन्दोलनकारी भी इसी आन्दोलन में शामिल हो चुके थे. जनता उस आन्दोलन से तमाम आशा लगाए हुए थी और परम्परागत राजनीतिज्ञ उस आन्दोलन के उफान के उतरने का इंतज़ार कर रहे थे.

वास्तव में, उस या उस जैसे आन्दोलनों यानी मूवमेंट में बहुत से युवा  राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में चमक बनाते हैं. यह चमक स्थाई भी हो सकती है और अस्थाई भी. आजादी के बाद के जयप्रकाश नारायण जी के आन्दोलन से उपजे लोग आज उम्र और समयकाल के चलते राजनीतिक परिदृश्य में गुजरे समय के लोग बनते जा रहे हैं. उस आन्दोलन के मात्र उँगलियों में गिने जा सकने वाले व्यक्ति ही अभी भी राजनीतिक रूप से सक्रिय रह गए हैं. अन्ना आन्दोलन से तमाम नए राजनीतिक नायक उपजे, जिन्हें विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपनी मुख्यधारा में अपना लिया. साथ ही, उपजी बिना राजनीतिक विचारधारा की राजनीतिक पार्टी “आम आदमी पार्टी”, जिसके मुख्य किरदार विभिन्न कारणों से कुचर्चा में रहते हैं. महानायक सी छवियों के टूटने में सबसे अधिक घातक रहा- अन्ना हजारे के नायकत्व का पतन. उनके आभामंडल के बिखरने से देश में किसी भी प्रकार के नए आन्दोलन के जन्म और विकास की संभावनाओं पर कुठाराघात हुआ. महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण जी की ही तरह उनके शिष्यों ने भी उन्हें सत्ता पाने की सीढ़ी की तरह ही इस्तेमाल किया.  

मात्र बदलाव के लक्ष्य की पूर्ति के लिए राजनीतिक विमर्श करने वाले विचारकों और राजनेताओं का हुजूम यह समझने में आज भी पूर्णतः विफल है कि आज इक्कीसवीं सदी के दो दशक जी चुके देश की पसंद क्या है? आजादी के अमृतकाल में समाज और उसकी पसंद व नापसंद के साथ ही आवश्यकता को ध्यान में रखकर राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियाँ करनी होंगी. वास्तव में, राजनीति और राजनीतिक दलों का काम मूल काम समाजसेवा और समर्पण है. वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान यह पूरी तरह से स्थापित हुआ कि केवल चुनावी राजनीति करना ही समाज के प्रति कर्तव्यों की इतिश्री नहीं है. आज भी दुनिया के तमाम देश इस महामारी के कारण आर्थिक दबाव से उबर नहीं सके हैं. आर्थिक मोर्चे पर पडोसी देश श्रीलंका और पाकिस्तान पूरी तरह से विफल रहे हैं. दूसरी तरफ भारत माननीय प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में दिनोंदिन प्रगति के पथ पर आगे बढ़ रहा है. व्यापार, उत्पादन और सामाजिक अर्थायाम के दृष्टिगत नित नए कीर्तिमान स्थापित किये जा रहे हैं. इसके लिए उनकी रात और दिन की मेहनत और समर्पण जिम्मेदार है. आज विरोधी दलों द्वारा केंद्र सरकार पर किये जाने वाले आरोप और आक्षेप को आभूषण बनाकर सफलता के कीर्तिमान स्थापित कर नरेंद्र मोदी ने नायकत्व का एवरेस्ट स्थापित करने में सफलता पाई है.

हैदराबाद के हिन्दी दैनिक समाचार पत्र- शुभ लाभ में दिनाँक 14-03-2023 को प्रकाशित.

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