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अतिक्रमण बनाम जाम का झाम और अखबार का काम

कानपुर भी देश के अन्य प्रमुख और पुराने शहरों की ही तरह से अतिक्रमण की समस्या से बुरी तरह ग्रस्त है. शहर आने वाले देश और प्रदेश की जानी-मानी राजनैतिक, सामाजिक और प्रशासनिक पदों पर आसीन अति महत्वपूर्ण व्यक्तिओं को कानपुर आगमन पर इस समस्या के कारण सड़क के 'जाम के झाम'  से अक्सर दो-चार होना पड़ता रहा है. जिला प्रशासन और कानपुर नगर निगम इस समस्या से निजात पाने के लिए तमाम प्रयासों के बावजूद जन-सहयोग की कमी के कारण कभी सफल नहीं हो पाया है. शहर के किसी भी एक मुख्य मार्ग या बाजार को पूरी तरह से अतिक्रमण-मुक्त अभी तक नहीं किया जा सका है.
क्षेत्रीय सभासद, जोनल अफसरों और पुलिस की मिली भगत से इस अतिक्रमण के कोढ़ को समाप्त करने में सभी जगह बुरी तरह से असफलता का सामना करना पड़ा है. अब इस बार ये अतिक्रमण विरोधी अभियान कड़ाई से चलाने की पूरी तैयारी थी पर एक खास तरीके से इसे पलीता लगाने के लिए पूरी तैयारी  कानपुर के एक समाचार पत्र के माध्यम से शहर के अतिक्रमणकारियों द्वारा कर ली गयी. दूसरी तरफ समाचार पत्र की अति सक्रियता की चाल समझकर कानपुर नगर निगम प्रशासन ने अपने तय अतिक्रमण विरोधी अभियान के कार्यक्रम को परिवर्तित कर 'गुरिल्ला नीति' से अतिक्रमणकारियों की इस तैयारी को बुरी तरह से ध्वस्त करने की योजना बना ली है.
कानपुर के नगर आयुक्त आर. विक्रम सिंह बताते हैं, 15 अप्रैल से अतिक्रमण के विरुद्ध शहर व्यापी अभियान की स्वीकृति के मद्देनजर एक पत्र कानपुर मंडलायुक्त के समक्ष भेजा गया था, जिसमें क्षेत्रवार अभियान के आधार पर पुलिस और पीएसी की मांग सम्बन्धी बातों को कानपुर नगर निगम की तरफ से रखा गया था. ये स्वीकृति पत्र और आदेश गुप्त होना चाहिए जिससे अभियान को वास्तविक लाभकारी बने जा सकता. इसे अखबार को नहीं दिया जाना चाहिए था. इसकी उचित शिकायत की जायेगी और दोषी को दण्डित करवाने की संस्तुति कानपुर के मंडलायुक्त पीके महान्ति से की जायेगी. उन्होंने इस अभियान को उद्देश्यपूर्ण और प्रभावी बनाने के लिए इसे अभियान शुरू होने के एक दिन बाद यानी 16 अप्रैल से उस विज्ञापित तिथिवार और क्षेत्रवार अभियान में परिवर्तन कर दिया है. इस प्रकार अब कार्यवाही गुरिल्ला नीति के तहत होगी. अतिक्रमणकारियों से यूजर चार्ज वसूली के साथ ही साथ अडंगाकारियों पर कड़ी कार्रवाही की योजना बनायी है. पूरे अभियान की वीडीओग्राफी कराये जाने के साथ ट्रैफिक पुलिस विभाग की भी मदद ली जायेगी. श्री सिंह कहते हैं, यद्यपि कानपुर कमिश्नर से स्वीकृति अवश्य ली गयी है पर यह अभियान पूरी तरह से कानपुर नगर निगम के द्वारा ही चलाया जाएगा न की कानपुर कमिश्नर के द्वारा. शहर के इस सम्मानित अखबार की इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग से शहर के अतिक्रमणकारिओं ने राहत की सांस ली थी जो नगर आयुक्त की सक्रियता के बाद फांस बन सकती है.
जैसी की आशंका थी वैसा ही हुआ. 15 अप्रैल से शुरू होने वाला ये अतिक्रमण विरोधी अभियान एक खाना-पूरी बन के रह गया. पूर्व में समाचार-पत्र में प्रकाशित  कार्यक्रम की जानकारी का लाभ उठाते हुए इस प्रथम अभियान क्षेत्र के अतिक्रमणकारी सुरक्षित बच निकलने में सफल रहे. उन्होंने कानपुर के नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी दस्ता के आने के पहले ही अपना सामान और कब्ज़ा हटा लिया. दस्ते ने चबूतरे आदि तोड़कर खाना-पूरी की. ये सभी कुछ 'हर खबर की हमें खबर' रखने वाले अखबार के माध्यम से हो सका. इस अखबार ने आज फिर अपनी गलती को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए, अपनी पाठक संख्या को बढ़ाने और विज्ञापन-प्रदाताओं के हितों को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए अगली कार्यवाही की तारीख 18 अप्रैल बताते हुए अभियान क्षेत्र भी बताया है. अब देखना ये है कि कानपुर नगर निगम के आला अधिकारी इन्हीं के अनुसार अपना अभियान चलाएंगे या फिर वास्तव में 'सच्चा अतिक्रमण विरोधी अभियान'  चलाकर आम शहरियों सहित कानपुर आगमन करने वाले लोगों को एक सुखद एहसास कराएँगे. वैसे कानपुर मंडलायुक्त के नाम से प्रचारित किये जा रहे इस अभियान की गंभीरता को बचाने और बनाए रखने की जिम्मेदारी उक्त समाचार पत्र, कानपुर नगर निगम और स्वयं कानपुर मंडलायुक्त की भी है.अन्यथा ये अभियान भी अखबार की इसी खोजी पत्रकारिता की भेंट चढ़ जाएगा.

Comments

  1. मीडिया ही महागाथा का एक सत्य ये भी है कि इस प्रकार के अतिक्रमण विरोधी अभियान के सन्दर्भ में जब दस्ते के प्रभारी महोदय से शासनादेश के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा "अखबार पढो जा के, हम आपको नहीं दिखाते," खैर मेरी व्यथा शायद उस वर्ग कि उपेक्षा से उत्पन्न हुई जिसे नज़र अंदाज करते हुए ये अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया. यदि इसमें किसी प्रभावशाली व्यक्ति या समूह के अतिक्रमण को नज़र अंदाज़ कर दिया जाये तो मै तो इसे उस निर्बल वर्ग का शोषण ही कहूँगा... इस प्रकार के अभियान में संवैधानिक समता नदारद रहेगी तो इससे सिर्फ वर्ग विभेद, चाटुकारिता और भ्रष्टाचार को ही बढ़ावा मिलेगा.

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